
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा ने अपने एक बयान पर शुरू हुए विवाद के बाद पद से इस्तीफा दे दिया है. सैम पित्रोदा ने उत्तर भारत के लोगों की तुलना गोरों, पश्चिम में रहने वालों की तुलना अरब, पूर्व में रहने वाले लोगों की तुलना चाइनीज़ और दक्षिण भारत में रहने वालों की तुलना अफ़्रीकियों से की थी. पित्रोदा के बयान से कांग्रेस ने किनारा तो कर लिया लेकिन BJP ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया.
इतिहास गवाह है कि सैम पित्रोदा जब भी चुनावों के दौरान ऐसे बयान देते हैं तो कांग्रेस मुसीबत में पड़ जाती है. ताजा मामला भी अलग नहीं है, जब संविधान और लोकतंत्र पर पूछे गए सवाल पर जवाब देते देते सैम पित्रोदा BJP को बैठे बिठाए बड़ा मुद्दा दे बैठे. बयान सैम पित्रोदा ने दिया और BJP जवाब राहुल गांधी से मांग रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि कि चुनाव के बीच क्या सैम पित्रोदा ने 2019 वाली गलती कर दी है? और क्या सैम पित्रौदा के पद से इस्ताफा देने से कांग्रेस की मुसीबतें कम होंगी?
दरअसल, चुनावों के बीच सैम पित्रोदा का बयान कांग्रेस के गले की हड्डी बन सकता है. हांलाकि पित्रोदा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो जाएगा और प्रधानमंत्री मोदी उसे राष्ट्रपति से जोड़ देंगे. इससे पहले सैम पित्रोदा ने विरासत टैक्स को लेकर बयान दिया था, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने मुद्दा बनाकर कांग्रेस को जमकर घेरा. पित्रोदा के ताजा बयान के बाद कांग्रेस बैकफुट पर है. INDIA गठबंधन ने भी पित्रोदा के बयान से किनारा करते हुए इसे गलत करार दिया है.
सैम पित्रोदा को राहुल गांधी का राजनीतिक गुरु माना जाता है. राहुल गांधी समय-समय पर उनसे मुलाकात कर कई मुद्दों पर उनसे सलाह-मिशवरा करते रहे हैं. यही वजह है कि BJP उनको राहुल गांधी का अंकल कहकर तंज कसती रही है. अब सवाल ये है कि चुनावों में पित्रोदा के एक के बाद एक विवादित बयानों का क्या असर होगा?
गांधी परिवार से सैम पित्रौदा का पुराना रिश्ता
बता दें कि भारत में सूचना क्रांति के जनक के तौर पर मशहूर सैम पित्रोदा का रिश्ता गांधी परिवार से पुराना है. साल 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बुलावे पर उन्होंने टेलीकॉम के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए सी-डॉट यानी 'सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ टेलिमैटिक्स' की स्थापना की थी. उनकी क्षमता से प्रभावित होकर राजीव गांधी ने उनकी डोमेस्टिक और फॉरिन टेलीकॉम पॉलिसी को दिशा देने का काम किया. इस्तीफा दिए जाने से पहले सैम पित्रोदा भारत के बाहर राहुल गांधी के कार्यक्रमों की कमान संभालते थे.
UPA सरकार के कार्यकाल में सैम पित्रोदा साल 2005 से 2009 तक भारतीय ज्ञान आयोग के चेयरमैन रहे. वो भारत के दूर संचार आयोग के संस्थापक और पहले अध्यक्ष भी रह चुके हैं. इस दौरान उन्होंने 21वीं सदी के लिए ज्ञान से संबंधित संस्थानों और बुनियादी ढांचे के लिए सुधार का खाका तैयार किया. इसके अलावा UPA सरकार में वो UN के लिए प्रधानमंत्री के सलाहकार भी रह चुके हैं. इसीलिए जब उन्होंने एक और ताजा बयान दिया तो प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे राहुल गांधी को घेर लिया.
2019 में भी पित्रोदा ने बढ़ा दी थी कांग्रेस की मुश्किलें
5 साल पहले भी लोकसभा चुनावों में सैम पित्रोदा कांग्रेस के लिए मुसीबत बने थे. मई 2019 में पित्रोदा ने 1984 सिख दंगों पर एक बयान दिया था, जिस पर काफी हंगामा हुआ था. तब दरअसल, मई 2019 में जब उनसे 1984 के सिख विरोधी दंगों पर सवाल किया गया तो उन्होंने दंगों में पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की कथित संलिप्तता पर एक सवाल का 'तो क्या हुआ' जवाब देकर हंगामा खड़ा कर दिया था. सैम पित्रोदा ने तब कहा था, "अब क्या है ’84 का? आपने 5 साल में क्या किया, उसकी बात करें। 84 में हुआ तो हुआ। आपको नौकरियां देने के लिए वोट दिया गया था। आपको 200 स्मार्ट शहर बनाने के लिए वोट दिया गया था। आपने वो भी नहीं किया। आपने कुछ नहीं किया इसलिए आप यहां वहां गप लगाते हैं।”
पुलवामा हमले पर भी बयान देकर घिर गए थे
यही नहीं, पुलवामा हमले और फिर भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद सैम पित्रोदा ने कहा था, "हमले होते रहते हैं. मुंबई में भी हमला हुआ था. हम भी प्रतिक्रिया देते हुए प्लेन भेज सकते थे लेकिन ये सही नहीं होता. मेरे हिसाब से आप दुनिया से ऐसे नहीं निपटते हैं. कुछ आतंकियों की वजह से पाकिस्तान को दोष देना गलत है. मुंबई में 8 लोगों ने हमला किया तो उसके लिए पूरे पाकिस्तान को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. इसके अलावा पिछले चुनाव में पित्रोदा ने मिडिल क्लास को ये कहते हुए नाराज कर दिया था कि देश में अगर न्यूनतम आय योजना लागू की जाती है तो इससे थोड़ा टैक्स बढ़ जाएगा। ऐसे में मिडिल क्लास को स्वार्थी नहीं होना चाहिए और उन्हें बड़ा दिल दिखाना चाहिए. इस तरह पित्रोदा के हर बयान के बाद विवाद हुआ था और कांग्रेस की किरकिरी हुई थी और उन्हें माफी मांगनी पड़ी थी. लेकिन बावजूद इसके सैम पित्रौदा नहीं बदले.
राम मंदिर और अंबेडकर पर भी बयान देकर घिर चुके हैं सैम
पिछले साल जून में राम मंदिर पर सैम पित्रोदा कह चुके हैं कि हम बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन इन मुद्दों पर कोई बात नहीं करना चाहता है. हर कोई राम, हनुमान, मंदिर की बात करता नजर आता है, मैंने कई बार कहा है कि मंदिर लोगों को रोजगार नहीं दे सकते हैं. पित्रोदा ने 6 महीने बाद फिर कहा 'मंदिर और राम जन्मभूमि, दीया जलाओ, यह मुझे परेशान करता है. इसके बाद इस साल की शुरुआत में उन्होंने संविधान में बीआर अंबेडकर से ज्यादा नेहरू के योगदान की बात कही. उन्होंने कहा कि जवाहरलाल नेहरू ने संविधान के निर्माण में बीआर अंबेडकर से ज्यादा योगदान दिया था.
तो सैम पित्रोदा ने जब भी कुछ बोला, बीजेपी को बिना मांगे सियासी फुलटॉस मिली और कांग्रेस को बगलें झाकने को मजबूर होना पड़ा. ताजा मामले में सैम पित्रोदा ने भले ही इस्तीफा दे दिया हो लेकिन चुनावों में उनके बयान की गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी.
(आजतक ब्यूरो)