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वंशवाद, अदावत और सियासी समीकरण... महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी दोनों के लिए सिरदर्द क्यों बनीं ये सीटें

महाराष्ट्र को लेकर दिल्ली में हलचल बढ़ी हुई है. भाजपा मुख्यालय में बैठकों का दौर जारी है. इन मीटिंग्स में मंथन हो रहा है उन सीटों पर, जिनका ऐलान होना अभी बाकी है. दरअसल, महाराष्ट्र में चार सीटों को लेकर पेच फंसा हुआ है. ये सीटें हैं सांगली, माधा और सतारा.

महाराष्ट्र की कुछ सीटों पर दोनों दलों में पेच फंसा हुआ है महाराष्ट्र की कुछ सीटों पर दोनों दलों में पेच फंसा हुआ है
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 24 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 8:32 PM IST

महाराष्ट्र को लेकर दिल्ली में हलचल बढ़ी हुई है. भाजपा मुख्यालय में बैठकों का दौर जारी है. इन मीटिंग्स में मंथन हो रहा है उन सीटों पर, जिनका ऐलान होना अभी बाकी है. दरअसल, महाराष्ट्र में चार सीटों को लेकर पेच फंसा हुआ है. ये सीटें हैं सांगली, माधा और सतारा. इन सीटों को लेकर महायुति और महाविकास अघाड़ी दोनों ही खेमे में माथापच्ची चल रही है. इन लोकसभा सीटों पर नामों को अंतिम रूप देने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ये चारों सीटें सिरदर्द क्यों बनी हुई हैं. इसे सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं. बता दें कि महाराष्ट्र में पांच चरणों में लोकसभा चुनाव होने हैं. पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को होगा.

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इन सीटों में सबसे प्रमुख है सांगली. जो कि 1962 से 2014 तक कांग्रेस का गढ़ रही थी. लेकिन एनसीपी से भाजपा में आए संजयकाका पाटिल ने 2014 में इसे छीन लिया था. इतना ही नहीं, 2019 में भी इस सीट से संजयकाका पाटिल दोबारा चुनाव जीते. राजनीतिक पर्यवेक्षक गोपाल पडलकर ने बताया कि 2019 के चुनाव में संजयकाका पाटिल को 5 लाख से अधिक वोट मिले, जबकि स्वाभिमानी पक्ष के विशाल पाटिल और गोपीचंद पडलकर को तीन-तीन लाख वोट मिले थे.

कुछ दिन पहले सांगली सीट के लिए महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने विशाल पाटिल के नाम की घोषणा करते हुए कहा था कि विशाल एक राजनीतिक विरासत वाले परिवार से आते हैं और स्थानीय नेतृत्व उनकी उम्मीदवारी चाह रहा है. हालांकि कांग्रेस की सहयोगी होने के बावजूद, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भी इसी सीट से पहलवान चंद्रहार पाटिल के नाम का ऐलान कर दिया. मतलब साफ है कि सांगली सीट पर शिवशेना (यूबीटी) और कांग्रेस दोनों ही अपना-अपना दावा ठोक रही हैं.

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पवार और पाटिल परिवार के बीच पुरानी अदावत

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक राजनीतिक पर्यवेक्षक गोपाल पडलकर ने कहा कि विशाल पाटिल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटिल के वंशज हैं, जिनके खिलाफ एनसीपी संस्थापक शरद पवार ने विरोध किया और 1978 में राज्य का शीर्ष पद हासिल कर लिया. जिसके कारण दोनों परिवार एक-दूसरे के राजनीतिक विरोधी हो गए.

उद्धव गुट-कांग्रेस की तनातनी बीजेपी को लिए बनेगी फायदेमंद?

विशाल पाटिल के एक करीबी सहयोगी ने कहा कि 2019 में भाजपा सांसद संजयकाका पाटिल के खिलाफ बड़े पैमाने पर निराशा थी और शरद पवार को इसकी जानकारी थी, लेकिन इस राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण शरद पवार ने राज्य कांग्रेस के नेताओं को सांगली लोकसभा सीट स्वाभिमानी पक्ष को देने के लिए मना लिया. विशाल पाटिल, जो कांग्रेस के टिकट पर लड़ने वाले थे, उनको स्वाभिमानी पक्ष के चुनाव चिह्न (क्रिकेट बैट) पर चुनाव लड़ना पड़ा, लेकिन फिर भी उन्हें तीन लाख वोट मिले थे. उन्होंने दावा किया कि इस बार, शिवसेना (यूबीटी), जिसके पास केवल एक विधायक हुआ करता था, उसने कांग्रेस से परामर्श किए बिना पहले ही अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. इस तरह के फैसलों का मतलब है कि बीजेपी उम्मीदवार को आसान मौका देना.

सांगली सीट पर क्यों अड़ा है उद्धव गुट?

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इस मामले में शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने कहा कि शिवसेना ने कोल्हापुर में (2019 में) दोनों लोकसभा क्षेत्रों में जीत हासिल की. ​​इस बार हमने कोल्हापुर संसदीय क्षेत्र कांग्रेस को और हटकनंगले लोकसभा सीट किसान नेता राजू शेट्टी को दी है. संजय राउत ने कहा कि अगर हम सांगली पर दावा नहीं करते हैं तो पश्चिमी महाराष्ट्र में शिवसेना (यूबीटी) के लिए कोई सीट नहीं होगी.

सतारा सीट पर भी आसान नहीं है लड़ाई

अब बात करते हैं सतारा लोकसभा सीट की, जिसे लेकर पेच फंसा हुआ है. सतारा में छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोसले ने 2019 में एनसीपी के टिकट पर जीत हासिल की और फिर भाजपा में जाने के बाद उपचुनाव हार गए. वह राज्यसभा के लिए चुने गए थे, लेकिन फिर से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं. अड़चन ये है कि जब वह एनसीपी में थे तो अजित पवार के साथ उनके संबंध कभी अच्छे नहीं थे और अब अजित पवार उपमुख्यमंत्री के रूप में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा हैं. एनसीपी ने सत्तारूढ़ गठबंधन में सतारा सीट पर दावा करते हुए भोसले को 'घड़ी' चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा है. राजनीतिक पर्यवेक्षक ने दावा किया कि भोसले उत्सुक नहीं हैं, क्योंकि इसका मतलब डिप्टी सीएम के नेतृत्व को स्वीकार करना होगा और दूसरी वजह ये है कि पारंपरिक बीजेपी के वोटर्स उन्हें वोट नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि एनसीपी उम्मीदवार के रूप में भोसले "शक्तिशाली" भाजपा का संरक्षण खो देंगे.

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माधा सीट पर दो परिवारों की लड़ाई

माधा लोकसभा क्षेत्र में हालात काफी जटिल हैं. जिसमें सोलापुर के 4 और सतारा के 2 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. सतारा जिले के फलटन विधानसभा क्षेत्र से प्रमुख रामराजे निंबालकर परिवार ने सोलापुर में मालशिरस विधानसभा सीट से विजयसिंह मोहिते पाटिल परिवार के रणजीतसिंह नाइक निंबालकर की उम्मीदवारी पर अपनी नाराजगी व्यक्त की है. रामराजे वर्तमान में अजीत पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी से महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य हैं, जबकि मोहिते-पाटिल परिवार बीजेपी के साथ हैं, विजयसिंह मोहिते-पाटिल के बेटे रणजीतसिंह भी एमएलसी हैं. सांगोला (सोलापुर में) विधानसभा क्षेत्र पीजेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी (पीडब्ल्यूपी) का गढ़ है, जिसने 2019 को छोड़कर दशकों से यहां जीत हासिल की है. कुछ दिन पहले पीडब्ल्यूपी नेता जयंत पाटिल पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करने के लिए सांगोला पहुंचे और बाद में विजयसिंह मोहिते-पाटिल से मुलाकात की. पत्रकारों से बात करते हुए जयंत पाटिल ने कहा कि माधा का नतीजा चौंकाने वाला हो सकता है. इस पर काफी चर्चा चल रही है.

रामराजे नाइक-निंबालकर ने की कैंडिडेट बदलने की वकालत

उधऱ, रामराजे नाइक-निंबालकर का एक सभा को संबोधित करने का एक वीडियो भी वायरल हो गया है, जिसमें वह उम्मीदवार में बदलाव की वकालत कर रहे हैं. 2019 में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीतने वाले भाजपा उम्मीदवार रणजीतसिंह नाइक-निंबालकर ने बेफिक्र होकर कहा कि वह आम सहमति बनाने की कोशिश कर रहे हैं और लोगों के समर्थन के प्रति आश्वस्त हैं. एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने दावा किया कि सतारा के मान विधानसभा से भाजपा विधायक जयकुमार गोरे, रणजीतसिंह नाइक-निंबालकर के कट्टर समर्थक हैं, लेकिन गोरे के अलावा उनके पास ज्यादा समर्थक नहीं हैं. सोलापुर से एनसीपी के दिग्गज नेता विजयसिंह मोहिते-पाटिल के पारिवारिक संबंध कांग्रेस से मजबूत हैं, उन्होंने अपने बेटे रणजीतसिंह मोहिते-पाटिल को 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा में शामिल होते देखा और रणजीतसिंह नाइक-निंबालकर के लिए मार्ग प्रशस्त किया. मोहिते-पाटिल परिवार का भाजपा के साथ रिश्ता असंतोष में बदल गया है. जिले पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए वह एनसीपी में वापस जाने के बारे में सोच रहा है, खासकर शरद पवार द्वारा हाल ही में विजयसिंह मोहिते पाटिल से मुलाकात के बाद. एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा कि लोगों का मानना ​​है कि माधा सीट में सोलापुर के 4 विधानसभा क्षेत्र हैं, ऐसे में उम्मीदवार जिले से होना चाहिए.

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