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Exit Poll: ममता और बसपा का एकला चलो, BRS का सफाया... 5 सियासी फैक्टर जो मोदी की हैट्रिक की सीढ़ी बने

एग्जिट पोल में तीसरी बार मोदी सरकार के अनुमान जताए गए हैं. इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में एनडीए को 361 से 401 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. पांच पॉइंट में समझिए वो सियासी फैक्टर जो एग्जिट पोल में पीएम मोदी की हैट्रिक की सीढ़ी बनते दिख रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2024,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST

लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद अब एग्जिट पोल के अनुमान भी सामने आ चुके हैं. एग्जिट पोल नतीजों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 2019 से भी बड़ी जीत के साथ सत्ता में वापसी करने के अनुमान जताए गए हैं. इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में एनडीए को 361 से 401 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. एग्जिट पोल अनुमान अगर असल नतीजों में बदले तो विपक्षी इंडिया ब्लॉक को 131 से 166 और अन्य को 8 से 20 सीटें मिल सकती हैं.

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एग्जिट पोल के अनुमानों में यूपी जैसे बड़े राज्य में बीजेपी और एनडीए 2019 के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन करती नजर आ रही है तो वहीं पश्चिम बंगाल में चौंकाती नजर आ रही है. इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में दक्षिण भारत के तेलंगाना में भी बीजेपी का वोट शेयर और सीटों की संख्या बढ़ने के अनुमान जताए गए हैं. पश्चिम बंगाल से यूपी और तेलंगाना तक, वो कौन से सियासी फैक्टर रहे जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाले गठबंधन की हैट्रिक के लिए सीढ़ी बन गए?

1- ब्रांड मोदी की बढ़ी वैल्यू

एग्जिट पोल नतीजों में बीजेपी और एनडीए के प्रचंड जीत के साथ लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के अनुमान हैं. मोदी की हैट्रिक (अगर एग्जिट पोल के अनुमान वास्तविक चुनाव नतीजों में तब्दील होते हैं तो) के पीछे ब्रांड मोदी को बड़ा फैक्टर बताया जा रहा है. पिछले चुनावों की बात करें तो 2014 में एनडीए को 331 और 2019 में 351 सीटों पर जीत मिली थी.

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इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में एनडीए को कम से कम 361 सीटें मिलने का अनुमान है. ये आंकड़ा भी पिछले दो चुनावों के मुकाबले कहीं अधिक है. 10 साल सरकार चलाने के बाद इस तरह का जनादेश इस बात का संकेत माना जा रहा है कि ब्रांड मोदी की ब्रांड वैल्यू चुनाव दर चुनाव बढ़ी ही है. राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने जैसे फैसलों के जरिए पीएम मोदी वादे पूरे करने वाले नेता की इमेज गढ़ने में सफल रहे हैं.

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2- ममता बनर्जी और मायावती का एकला चलो

नीतीश कुमार ने बिहार में महागठबंधन सरकार की अगुवाई करते समय जब विपक्षी एकजुटता की कवायद शुरू की, तब उन्होंने एक फॉर्मूला दिया था- एक पर एक. नीतीश ने बीजेपी और एनडीए उम्मीदवारों के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारने का फॉर्मूला दिया था. उनका तर्क था कि इससे एंटी बीजेपी वोट एकमुश्त पड़ेंगे और एंटी वोटों का बिखराव नहीं होगा. इंडिया ब्लॉक ने नीतीश के गठबंधन छोड़ एनडीए में चले जाने के बाद सूबे में इस फॉर्मूले पर अमल किया. तेजस्वी यादव ने मुकेश सहनी की पार्टी को अंतिम समय में अपने कोटे से सीटें देकर साथ जोड़ा, उन्हें साथ लेकर चुनावी रैलियों में जाते रहे और नतीजे एग्जिट पोल के अनुमानों में दिख भी रहे हैं.

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उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में विपक्षी एकजुटता आकार नहीं ले सकी. यूपी में सपा और कांग्रेस जहां गठबंधन कर मैदान में उतरे तो वहीं मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एकला चलो का नारा बुलंद कर दिया. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने भी अपनी राहें कांग्रेस से जुदा कर लीं और हर सीट से उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया. इसका नतीजा ये हुआ कि इन राज्यों में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया. एंटी बीजेपी वोट दो तरफ बंट गए और केंद्र की सत्ता पर काबिज गठबंधन को एग्जिट पोल अनुमानों में इसका लाभ सीटों के रूप में मिलता नजर आ रहा है.

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3- तेलंगाना का बदला सियासी मिजाज

तेलंगाना राज्य गठन से लेकर 2023 चुनाव के पहले तक, सूबे की सियासत का मिजाज क्षेत्रीयता की भावना के इर्द-गिर्द रहा है और यही वजह रही कि सत्ता पर के चंद्रशेखर राव की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब भारत राष्ट्र समिति) ही काबिज रही. 2023 के तेलंगाना चुनाव में सूबे की सियासत का बदला मिजाज दिखा और पहली बार जनता ने किसी राष्ट्रीय पार्टी (कांग्रेस) को प्रदेश में सरकार चलाने का जनादेश दिया था. लोकसभा चुनाव में भी यही ट्रेंड रिपीट होता दिख रहा है.

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इंडिया टुडे एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक सूबे में 43 फीसदी वोट शेयर के साथ बीजेपी को 17 में से 11 से 12, इंडिया ब्लॉक को 39 फीसदी वोट शेयर के साथ 4 से 6 सीटें मिल सकती हैं. इस एग्जिट पोल में केसीआर की पार्टी बीआरएस के 13 फीसदी वोट शेयर के साथ शून्य से एक, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के दो फीसदी वोट शेयर के साथ शून्य से एक सीट पर सिमटने के अनुमान जताए गए हैं. बीआरएस का जनाधार खिसकने का सबसे अधिक लाभ बीजेपी को होता दिख रहा है.

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4- प्रचार रणनीति

प्रचार के मोर्चे पर सत्ताधारी एनडीए और बीजेपी की रणनीति से भी चुनाव में बड़ा अंतर पड़ा. बीजेपी ने अलग-अलग राज्य, अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग रणनीति, अलग-अलग नेताओं को टार्गेट किया. बीजेपी के किसी बडे़ नेता की जब पश्चिम बंगाल में रैली हुई तो संबोधन के केंद्र में ममता सरकार के मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, केंद्र की वो योजनाएं जो सूबे में लागू नहीं हैं और राज्य सरकार की नीतियां रहे तो वहीं, बिहार में आरजेडी के 15 साल की सरकार निशाने पर रही.

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इसी तरह बीजेपी नेताओं ने ओडिशा में नवीन पटनायक की बजाय वीके पांडियन और अन्य बीजेडी नेताओं को अपने रडार पर रखा. एग्जिट पोल में बीजेपी को इसका लाभ भी मिलता नजर आ रहा है. यूपी में डबल इंजन सरकार की उपलब्धियां गिनाने के साथ ही पूर्ववर्ती सपा सरकार को तुष्टिकरण के मुद्दे पर कठघरे में खड़ा किया. बीजेपी के प्रचार अभियान में मुद्दों का डिसेंट्रलाइजेशन नजर आया तो वहीं इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने किसी एक मुद्दे को पकड़ लिया तो उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक, वो उसे लेकर ही हमलावर रहे. विपक्षी नेताओं ने हर रैली में संविधान और लोकतंत्र बचाने के साथ ही एससी-एसटी और ओबीसी आरक्षण को मुद्दा बनाया. 

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5- विपक्ष की सुस्त चाल

विपक्ष की सुस्त चाल भी एनडीए के पक्ष में जाती दिख रही है. एग्जिट पोल के अनुमान यदि वास्तविक चुनाव नतीजों में बदलते हैं तो इसके पीछे विपक्ष की सुस्ती भी बड़ा फैक्टर होगी. बिहार की ही बात करें तो शुरुआती चरण की सीटों के लिए नामांकन की अंतिम तारीख बीत जाने के बाद तक इंडिया ब्लॉक में सीट शेयरिंग नहीं हो सकी थी. यूपी में सीट शेयरिंग के बाद भी अखिलेश और राहुल की संयुक्त रैलियां भी बहुत देर से होनी शुरू हुईं और हुईं भी तो गिनती की. पश्चिम बंगाल में तो इंडिया गठबंधन के स्वरूप को लेकर अंतिम फेज की वोटिंग तक सस्पेंस बना रहा.

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