Advertisement

कन्हैया कुमार के आने से मनोज तिवारी की सीट पर कैसे टाइट हो गई है फाइट, समझें नॉर्थ ईस्ट दिल्ली का गणित

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट से बीजेपी उम्मीदवार मनोज तिवारी के सामने कांग्रेस के कन्हैया कुमार की चुनौती होगी. कन्हैया के चुनावी मैदान में उतरने से मनोज तिवारी की सीट पर किस तरह से फाइट, टाइट हो गई है? आइए समझें इस सीट के वोटों का गणित.

मनोज तिवारी और कन्हैया कुमार (फाइल फोटो) मनोज तिवारी और कन्हैया कुमार (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 7:07 PM IST

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट से सांसद मनोज तिवारी पर ही फिर से भरोसा जताया है. भोजपुरी गायक और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार मनोज तिवारी के सामने कांग्रेस ने अब युवा चेहरे कन्हैया कुमार को मैदान में उतार दिया है. कन्हैया कुमार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं और उनकी गिनती अच्छा वक्ता के रूप में होती है.

Advertisement

कन्हैया कुमार कांग्रेस के टिकट पर मैदान में हैं लेकिन ग्रैंड ओल्ड पार्टी में शामिल होने से पहले वह लेफ्ट का चेहरा रहे हैं. 2019 के चुनाव में कन्हैया को लेफ्ट ने मोदी सरकार के फायरब्रांड मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ बेगूसराय सीट से उम्मीदवार बनाया था. हालांकि, तब वह हार गए थे. कभी लेफ्ट का चेहरा रहे कन्हैया कुमार को अब कांग्रेस ने नॉर्थ ईस्ट दिल्ली सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया है तो इसके पीछे का गणित क्या है?

पूर्वांचली कार्ड

बीजेपी ने दिल्ली के अपने सात में से छह सांसदों के टिकट काट दिए और केवल एक सांसद जो अपना टिकट बचाने में सफल रहा. टिकट बचाने वाले इकलौते सांसद थे मनोज तिवारी. बीजेपी ने दो बार के सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी पर लगातार तीसरी बार भरोसा जताया है तो उसके पीछे उनका पूर्वांचली होना भी बड़ी वजह माना जा रहा है. अब कांग्रेस ने भी एक पूर्वांचली के सामने पूर्वांचली को ही टिकट दे दिया है. मनोज तिवारी बिहार के कैमूर जिले के निवासी हैं तो कन्हैया कुमार भी बिहार से ही आते हैं. 

Advertisement

लेफ्ट बैकग्राउंड

कन्हैया कुमार की सियासत का आधार लेफ्ट की लाइन रही है. कन्हैया के भाषणों में गरीब-मजदूर-दलित-शोषित-वंचित की बात अधिक रहती है. नॉर्थ ईस्ट लोकसभा क्षेत्र में बड़ी तादाद यूपी, बिहार, हरियाणा जैसे राज्यों से आकर मेहनत-मजदूरी कर जीवनयापन कर रहे मजदूरों की है. लेफ्ट से आए कन्हैया के चेहरे पर कांग्रेस की रणनीति इस वोटर वर्ग को साधने की भी है.

जातीय गणित

जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष को कांग्रेस ने इस सीट से उतारा तो इसके पीछे भी उसका अपना गणित है. कांग्रेस की रणनीति कन्हैया के सहारे मनोज तिवारी के पूर्वांचली वोटबैंक में सेंध लगाने के साथ ही दलित-पिछड़ा-अल्पसंख्यक और मजदूर वर्ग को साथ लाकर वोटों का नया समीकरण गढ़ने की भी है. कन्हैया कुमार अपने भाषणों में युवाओं और रोजगार के साथ ही दलित-पिछड़े और दबे-कुचले वर्गों की बात करते हैं.

यह भी पढ़ें: मनोज तिवारी ने कन्हैया को बताया 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' का सदस्य, कन्हैया ने कहा- BJP काम नहीं करती

पिछले 10 साल से सांसद मनोज तिवारी को लेकर एंटी इनकम्बेंसी कैश कराने की कोशिश में जुटी कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के समर्थन से एकमुश्त दलित-मुस्लिम-ओबीसी वोट की आस है. कांग्रेस नेताओं को लगता है कि थोड़े-बहुत पूर्वांचली वोटर्स का साथ भी मिल गया तो यह बफर का काम करेगा और ऐसे में पार्टी के यहां से जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.

Advertisement

यह भी पढ़ें: मनोज तिवारी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे कन्हैया कुमार, कांग्रेस ने जारी की उम्मीदवारों की लिस्ट

दूसरी तरफ, बीजेपी को भरोसा है कि पूर्वांचली और दलित-पिछड़ा वोटर्स के समर्थन से मनोज तिवारी जीत की हैट्रिक लगाएंगे. दो पूर्वांचलियों की लड़ाई में ओबीसी-दलित के साथ ही सवर्ण वोटर्स का रोल अहम हो गया है. कहा यह भी जा रहा है कि पूर्वांचली वोट स्थानीय अस्मिता के आधार पर बंट सकता है. मनोज तिवारी भोजपुरी बेल्ट से आते हैं. वहीं, कन्हैया कुमार जिस बेगूसराय से आते हैं, वहां अंगिका और मगही भाषा बोली जाती है. नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में भोजपुरी भाषी वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है और यह मनोज तिवारी के पक्ष में जा सकता है.  

सीट के समीकरण

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट के तहत बुराड़ी, तिमारपुर, सीमापुरी, रोहतासनगर, सीलमपुर, घोंडा, बाबरपुर, गोकलपुर, मुस्तफाबाद और करावल नगर विधानसभा सीट आती है. यह सीट सांप्रदायिक लिहाज से भी बेहद संवेदनशील मानी जाती है और 2020 के दिल्ली चुनाव के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा से सीलमपुर जैसे इलाके प्रभावित रहे थे.

यह भी पढ़ें: दिल्ली में मनोज तिवारी Vs कन्हैया कुमार का मुकाबला क्यों है अहम, पांच पॉइंट में समझिए

इस लोकसभा क्षेत्र की कुल आबादी में मुस्लिम समाज के लोगों की भागीदारी करीब 21 फीसदी है. मुस्तफाबाद, सीलमपुर, करावल नगर और घोंडा जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है तो वहीं यूपी की सीमा से सटे इलाकों में पड़ोसी राज्य के साथ ही बिहार और हरियाणा के लोगों की आबादी प्रभावी है. विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो रोहतास नगर, घोंडा और करावल नगर सीट से बीजेपी के विधायक हैं जबकि बाकी सात सीटों से आम आदमी पार्टी के.

Advertisement

पूर्वांचली वोटर कितने प्रभावशाली

नॉर्थ ईस्ट दिल्ली लोकसभा सीट के चुनाव नतीजे तय करने में पूर्वांचली वोटर्स का रोल निर्णायक माना जाता है. इस सीट के समीकरणों की बात करें तो यूपी और और बिहार से नाता रखने वाले मतदाताओं की तादाद करीब 28 फीसदी है.  इलाके में अनुसूचित जाति की आबादी 16.3 फीसदी, मुस्लिम 20.74 फीसदी, ब्राह्मण 11.61 फीसदी हैं. वैश्य 4.68 फीसदी, पंजाबी 4 फीसदी, गुर्जर 7.57 फीसदी और ओबीसी की आबादी इस लोकसभा क्षेत्र में 21.75 है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement