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Karnataka Exit Polls: क्या कर्नाटक में कांग्रेस की गारंटी पर भारी पड़ी मोदी की गारंटी?

कर्नाटक कांग्रेस की गारंटियों में मुफ्त राशन, बिजली, महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को भत्ते पर केंद्रित पांच प्रमुख वादे शामिल थे. कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसकी गारंटी मतदाताओं को प्रभावित करेगी, लेकिन पीएम मोदी की लोकप्रियता एक बार फिर एक बड़ी चुनौती साबित हुई.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
सगाय राज
  • बेंगलुरु,
  • 02 जून 2024,
  • अपडेटेड 6:07 PM IST

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की थी. इसके बावजूद लोकसभा चुनावों में 'गारंटी की लड़ाई' में वह भाजपा से मतदाताओं को दूर नहीं कर पाई. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने 'पांच गारंटियों' की घोषणा की. लेकिन पार्टी को आम चुनाव में इसका फायदा होता नहीं दिख रहा है. इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया पोल में NDA को 23 से 25 सीटें और इंडिया ब्लॉक को मात्र तीन से पांच सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. 

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कर्नाटक में कांग्रेस की गारंटी
कर्नाटक कांग्रेस की गारंटियों में मुफ्त राशन, बिजली, महिलाओं और बेरोजगार युवाओं को भत्ते पर केंद्रित पांच प्रमुख वादे शामिल थे. कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसकी गारंटी मतदाताओं को प्रभावित करेगी, लेकिन पीएम मोदी की लोकप्रियता एक बार फिर एक बड़ी चुनौती साबित हुई. शक्ति योजना के तहत कर्नाटक में महिलाओं को मुफ्त में यात्रा करने की सुविधा मिली. इसके अलावा अन्न भाग्य योजना के जरिये परिवारों को पांच किलो राशन मिला. 

गृह ज्योति योजना में हर महीने 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली की आपूर्ति और गृह लक्ष्मी योजना में परिवार की महिला मुखिया को वित्तीय सहायता दी गई. युवा निधि योजना में बेरोजगारी की समस्या को देखते हुए बेरोजगार स्नातकों और डिप्लोमा धारकों को महीने का भत्ता दिया गया.

'गारंटी योजना' से कांग्रेस को भविष्य की चुनावी रणनीतियों के लिए एक मजबूत खाका तैयार करने में मदद मिली. यहां तक कि पार्टी को तेलंगाना में जीत दर्ज करने में मदद मिली. पार्टी ने विभिन्न राज्यों में कर्नाटक मॉडल को लागू करने की कोशिश की. पिछले 10 महीनों में कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने विभिन्न गारंटी योजनाओं के लिए 36,000 करोड़ रुपये आवंटित किए. अगले साल के लिए उन्होंने बजट में 52,009 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. 

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किसे मिला किसका साथ? 
कांग्रेस की गारंटियों ने भले ही काफी चर्चा बटोरी, लेकिन इससे पार्टी के लिए चुनावी किस्मत बदलने में सफलता नहीं मिली. महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बावजूद पार्टी को पोल अनुमानों के अनुसार महिला समूह से वोटों में कोई बढ़ोतरी नहीं दिखी. बिना किसी बदलाव के कर्नाटक में 44 प्रतिशत महिलाओं ने इंडिया गठबंधन को वोट दिया, जबकि 52 प्रतिशत ने एनडीए को वोट दिया, जो पिछले चुनाव से तीन प्रतिशत अधिक है. 
इस बीच एनडीए को गृहणियों के वोटों में 51 प्रतिशत की वृद्धि और सरकारी या निजी क्षेत्र में कार्यरत लोगों के वोटों में 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखने को मिली. 

इंडिया गठबंधन इन वर्गों का लाभ उठाने में सफल नहीं रहा. जबकि 46 प्रतिशत गृहणियों ने उन्हें वोट दिया, लेकिन वेतनभोगी वर्ग में थोड़ी गिरावट देखी गई. एनडीए 59 प्रतिशत किसानों के वोट हासिल करने में सफल रहा, जो पिछले साल से छह प्रतिशत अधिक है, जबकि इंडिया ब्लॉक में 38 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. बेरोजगारों का झुकाव भी एनडीए की ओर 51 प्रतिशत रहा, जो पिछले चुनाव से 4 प्रतिशत की वृद्धि है, जबकि इंडिया ब्लॉक 2 प्रतिशत के नुकसान के साथ बेरोजगारों से 44 प्रतिशत वोट खींचने में सफल रहा.

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10,000 से 20,000 रुपये के महीने के खर्च वाले परिवारों ने इंडिया के बजाय एनडीए को चुना. 20,000 से 30,000 रुपये की सीमा के भीतर के लोगों के वोट में मामूली वृद्धि देखी गई, जिन्होंने इंडिया ब्लॉक को प्राथमिकता दी. इस बीच, 30,000 रुपये से अधिक खर्च वाले लोग फिर से एनडीए की ओर चले गए.

'मोदी की गारंटी' पर जनता का भरोसा
कर्नाटक की लड़ाई में भाजपा ने कांग्रेस पार्टी की लोकप्रिय गारंटी योजनाओं को बेअसर करने के लिए हर संभव कोशिश की. एग्जिट पोल के पूर्वानुमानों से पता चलता है कि कर्नाटक के मतदाताओं ने कांग्रेस की गारंटी के मुकाबले भाजपा की 'मोदी की गारंटी' को ज्यादा पसंद किया. यह बदलाव मोदी के ब्रांड और लोकप्रियता को दर्शाता है. 

मतदाता तुरंत मिलने वाले कल्याणकारी लाभों के बजाय लंबे समय के विकास नीतियों के पक्ष में दिखते हैं या नहीं, यह 4 जून को देखा जाएगा. कर्नाटक में एक बात स्पष्ट रूप से पता चलती है कि लोगों ने आम चुनावों में हमेशा अलग-अलग तरीके से मतदान किया है. 2004 से कर्नाटक के मतदाताओं ने लगातार भाजपा का समर्थन किया है. भाजपा के राज्य नेतृत्व को भरोसा है कि कर्नाटक में मतदाता एक बार फिर पार्टी का समर्थन करेंगे. पिछले साल के विधानसभा चुनावों में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पार्टी ने बीएस येदियुरप्पा के बेटे, राज्य भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र के नए नेतृत्व में राज्य में दोबारा बढ़ोतरी देखी है. 

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येदियुरप्पा ने अपने बेटे के लिए कर्नाटक भाजपा प्रमुख का पद सुरक्षित करने के लिए सभी तरह बाधाओं और पार्टी के आंतरिक गुटों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. अब, पार्टी और राज्य पर अपना प्रभाव साबित करना पिता-पुत्र की जोड़ी पर निर्भर है. इस बीच, कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार अपनी योग्यता साबित करने की होड़ में हैं.

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