
लोकसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने का समय शेष है और सियासी दलों में सीट शेयरिंग से लेकर उम्मीदवार चयन तक, चर्चा तेज हो गई है. विपक्षी इंडिया गठबंधन के घटक दल अभी सीट शेयरिंग को लेकर मंथन कर रहे हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में उम्मीदवार चयन की कवायद तेज हो गई है.
बीजेपी ने हर सीट से तीन-तीन सबसे लोकप्रिय नेताओं के नाम मांगे हैं. उम्मीदवार चयन में बीजेपी का फॉर्मूला क्या होगा? इसे लेकर भी चर्चा तेज हो गई है. बीजेपी ने हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को मैदान में उतारने का दांव चला था. अब माना जा रहा है कि पार्टी इसी फॉर्मूले पर चलते हुए लोकसभा चुनाव में राज्यसभा सांसदों और राज्यों की सरकार में मंत्रियों, विधायकों को भी उम्मीदवार बना सकती है.
अटकलें यूं ही नहीं लगाई जा रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल अगस्त महीने में हुई बीजेपी संसदीय दल की बैठक में ही इस फॉर्मूले पर आगे बढ़ने के संकेत दे दिए थे. पीएम मोदी ने साफ कहा था कि राज्यसभा सांसदों को लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए.
किन सांसदों को कहां से उतार सकती है बीजेपी
बीजेपी को राज्यसभा सांसदों पर दांव लगाने का दक्षिण के राज्यों में लाभ मिल सकता है. बीजेपी एल मुरुगन और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को तमिलनाडु की किसी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है तो वहीं वी मुरलीधरन को केरल, राजीव चंद्रशेखर को कर्नाटक या केरल से टिकट दिया जा सकता है. इसी तरह पीयूष गोयल के महाराष्ट्र, धर्मेंद्र प्रधान और अश्विनी वैष्णव के ओडिशा, पुरुषोत्तम रुपाला और मनसुख मांडविया के गुजरात, भूपेंद्र यादव के हरियाणा से लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा है.
राज्यसभा सांसदों को उतारने की तैयारी क्यों
बीजेपी ने हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में एक राज्यसभा सांसद समेत 21 सांसदों को उम्मीदवार बनाया था. इनमें से कुछ केंद्रीय मंत्री भी थे. सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने का प्रयोग सफल रहा था और 12 सांसद चुनावी बाजी जीतकर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे. गैर बीजेपी सरकार वाले राज्यों, दक्षिण भारत में पार्टी राज्यसभा सांसदों के साथ ही कुछ विधायकों पर दांव लगा सकती है. इससे बीजेपी को उन राज्यों में बड़े चेहरों को उतारने से अपने पक्ष में माहौल बनाने में मदद मिलेगी, लोगों तक पार्टी की बात पहुंचाने में भी मदद मिलेगी.
निर्मला सीतारमण, भूपेंद्र यादव, धर्मेंद्र प्रधान, वी मुरलीधरन जैसे बड़े चेहरे जब चुनाव मैदान में उतरेंगे तो पार्टी को आसपास की सीटों पर भी इसका फायदा मिल सकता है. बीजेपी को उम्मीद है कि इससे पूरे क्षेत्र में पॉजिटिव माहौल बनेगा जैसा विधानसभा चुनाव में देखने को भी मिला. कमजोर सीट से बड़े नेताओं को उतारने के पीछे बीजेपी की रणनीति यह संदेश देने की भी है कि पार्टी पूरी गंभीरता के साथ चुनाव लड़ रही है.
राज्यसभा के लिए बीजेपी का अघोषित नियम भी वजह
राज्यसभा सांसदों को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी के पीछे उच्च सदन को लेकर पार्टी का अघोषित नियम भी वजह है. कुछ अपवाद छोड़ दें तो बीजेपी उच्च सदन में जाने के दो से अधिक मौके नहीं देती. इससे राज्यसभा में नए चेहरे भेजने का रास्ता भी साफ होता है. बीजेपी ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस फॉर्मूले का इस्तेमाल किया था.
बीजेपी ने 2014 में अरुण जेटली को भी लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बना दिया था. वहीं, 2019 में रविशंकर प्रसाद, स्मृति ईरानी को भी टिकट दिया था. इस बार बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ ही हरदीप पुरी, एस जयशंकर और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनावी रणभूमि में ताल ठोकते नजर आ सकते हैं.
कई विधायकों को उतारने का भी है प्लान?
बीजेपी ने जिस तरह से राज्यों के चुनाव में सांसदों को उतारा था, उसी तर्ज पर पार्टी लोकसभा चुनाव में विधायकों और पूर्व विधायकों को उतार सकती है. इस रणनीति के पीछे यह मैसेज देने की कोशिश है कि जिस तरह राज्य में नए चेहरों को जगह दी गई, उसी तरह कुछ नए चेहरों को केंद्र की सियासत में भी लाया जा रहा है. पार्टी इस तरह के प्रयोग पहले भी कर चुकी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश सरकार में तब मंत्री रहीं रीता बहुगुणा जोशी को भी उम्मीदवार बना दिया था और वह संसद पहुंची भी थीं.
जल्द उम्मीदवारों का ऐलान कर सकती है बीजेपी
बीजेपी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में मुश्किल मानी जाने वाली विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम चुनाव कार्यक्रम के ऐलान से पहले ही घोषित कर दिए थे. पार्टी 2024 के चुनाव में भी इस फॉर्मूले का इस्तेमाल कर सकती है. इससे उम्मीदवार को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा और विपक्षी पार्टियों पर भी जल्द पत्ते खोलने का दबाव बढ़ेगा.