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दो चुनाव, 11 में 0 का स्कोर... बीजेपी से ज्यादा आरएलडी को है नए गठबंधन की जरूरत, समझें पश्चिमी यूपी का गणित

लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया ब्लॉक को एक और बड़ा झटका लग सकता है. यूपी में जयंत चौधरी की पार्टी RLD विपक्षी दलों के गठबंधन से अलग हो सकती है. कहा जा रहा है कि जयंत बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं. हालांकि, जयंत लगातार 'इंडिया' ब्लॉक के साथ होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन जानकार कहते हैं कि जयंत ने अपने दरवाजे दोनों तरफ खोल रखे हैं. जयंत जल्द अपने पत्ते खोल सकते हैं.

लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच इंडिया ब्लॉक को झटका लग सकता है. लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच इंडिया ब्लॉक को झटका लग सकता है.
उदित नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 07 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 1:58 PM IST

आम चुनाव करीब हैं और बीजेपी की चुनावी रणनीतियां लगातार चौंका रही हैं. पहले बिहार में महागठबंधन में सेंधमारी की और अब यूपी में बड़ी तोड़फोड़ की तैयारी है. खबर है कि राष्ट्रीय लोकदल (RLD) प्रमुख जयंत चौधरी से अलायंस को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है. यानी आरएलडी जल्द ही एनडीए का हिस्सा बन सकती है. अगर यह संभव होता है तो इसे बीजेपी की बड़ी रणनीतिक जीत माना जाएगा. क्योंकि आरएलडी अब तक INDIA ब्लॉक का हिस्सा है और कुछ दिन पहले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जयंत के साथ सीट शेयरिंग का ऐलान किया था. सवाल उठ रहा है कि आखिर वो क्या वजह है कि आरएलडी यूपी में INDIA ब्लॉक और एनडीए के लिए क्यों इतनी जरूरी है या दोनों की कोई मजबूरी है?

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पश्चिमी यूपी को जाट और मुस्लिम बाहुल्य इलाका माना जाता है. यहां लोकसभा की कुल 27 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि 8 सीटों पर महागठबंधन ने कब्जा किया था. इनमें 4 सपा और 4 बसपा के खाते में आई थी. लेकिन, आरएलडी को किसी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई थी. यहां तक कि जयंत को पश्चिमी यूपी में जाट समाज का भी साथ नहीं मिला था. यही नहीं, 2014 के चुनाव में भी जयंत को निराशा हाथ लगी थी और एक भी सीट नहीं मिली थी.

'लगातार दूसरी बार आम चुनाव में आरएलडी की हार'

2019 के आम चुनाव में जयंत चौधरी की पार्टी RLD ने सपा-बसपा के साथ गठबंधन में तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीनों सीटों पर दूसरे नंबर पर आई थी. जयंत चौधरी अपने पुश्तैनी क्षेत्र बागपत से चुनाव लड़े और बीजेपी के डॉ. सतपाल मलिक से 23 हजार वोटों से हार गए थे. मथुरा से आरएलडी के कुंवर नरेंद्र सिंह को हेमा मालिनी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था. इसी तरह जाटों के लिए बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली मुजफ्फरनगर सीट से अजित सिंह पहली बार चुनाव लड़े थे और बीजेपी के संजीव बालियान से 6500 से ज्यादा वोटों से हार गए थे. अजित और जयंत चौधरी को सपा-बसपा के अलावा कांग्रेस का भी समर्थन मिला था. यह लगातार दूसरा आम चुनाव था, जब चौधरी परिवार को खाली हाथ रहना पड़ा था.

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2014 में आरएलडी का 0.9% था वोट शेयर

पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की इस छोटी जीत से पश्चिमी यूपी की राजनीति में बड़ा संदेश गया. दंगों के कारण चर्चा में आई मुजफ्फनगर सीट पर बीजेपी की जीत को पोलराइजेशन  का नतीजा माना गया था. संजीव की जीत से मुजफ्फरनगर में चौधरी परिवार की एंट्री नहीं हो पाने की बातों भी बल मिला था. आरएलडी को 2014 के चुनाव में सिर्फ 0.9% वोट मिले थे. तब सपा और कांग्रेस का साथ मिला था. लेकिन, 2019 के चुनाव में बसपा के भी साथ आने से आरएलडी का वोट प्रतिशत बढ़ गया था और 1.7% वोट शेयर हो गया था. 

'मोदी लहर में दिग्गज नेता भी नहीं बचा पाए सीट'

इससे पहले 2014 के चुनाव में आरएलडी ने कांग्रेस के साथ मिलकर 8 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी सीटों पर निराशा हाथ लगी थी. मथुरा से जयंत चौधरी को हार मिली थी. बागपत से अजित सिंह, अमरोहा से राकेश टिकैत, बिजनौर से एक्ट्रेस जया प्रदा, बुलंदशहर से अंजू उर्फ मुस्कान, फतेहपुर सीकरी से अमर सिंह, हाथरस से निरंजन सिंह धनगर, कैराना से करतार सिंह भड़ाना मैदान में उतरे थे और इन सभी को हर मिली थी. एक्ट्रेस जयाप्रदा रामपुर संसदीय सीट से लगातार दो बार लोकसभा का चुनाव जीतीं, लेकिन बिजनौर में करारी हार का सामना करना था. बिजनौर में रालोद के टिकट पर चुनाव में उतरीं जयाप्रदा को सिर्फ 24348 वोट मिले थे. सपा छोड़कर आरएलडी से चुनाव लड़ रहे अमर सिंह के समर्थन में प्रचार करने के लिए फतेहपुर सीकरी में कई फिल्मी स्टार उतरे थे, जिससे यह चुनाव सुर्खियों में रहा था. लेकिन, अमर सिंह वोटर्स की पसंद नहीं बन पाए थे.

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'दो चुनाव में 11 सीटों पर चुनाव लड़े, मिली हार'

राजनीतिक जानकार कहते हैं कि आरएलडी ने 2014 और 2019 के आम चुनाव में कुल 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और इन सभी सीटों पर हार मिली. बॉलीवुड एक्ट्रेस से लेकर उद्योगपति अमर सिंह जैसे दिग्गज भी अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाए. जाट बहुल मानी जानी वाली सीटों पर भी चौधरी परिवार की चमक फीकी पड़ गई. 2014 और 2019 में कांग्रेस का साथ तो मिला ही, 2019 सपा और बसपा के साथ गठबंधन करके भी देख लिया, लेकिन एक अदद सीट नहीं जीत सके. यही वजह है कि जयंत चौधरी को 2024 के आम चुनाव में जाने से पहले नफा-नुकसान के बारे में सोचना पड़ रहा है.

'जयंत भी समझ रहे हैं समीकरण'

जानकार कहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर की लहर है और जाट समाज भी राम की भक्ति में डूबा है. यह बात जयंत अच्छे से जानते हैं. वे यह भी जानते हैं कि जब सपा-बसपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में एक सीट नहीं जीत पाए तो इस बार सिर्फ सपा के साथ अलायंस में जीत की उम्मीद करना कितना ठीक रहेगा? और इससे पक्ष में किस हद तक परिणाम आ सकते हैं. 

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'सपा से मुजफ्फरनगर सीट को लेकर फंसा पेंच'

इसके अलावा, एक अन्य फैक्टर भी जयंत को सोचने पर मजबूर कर रहा है. सपा ने जयंत को सात सीटों पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है. कहा जा रहा है कि इनमें दो सीटों पर आरएलडी के चुनाव चिह्न पर सपा नेता चुनाव लड़ेंगे. यानी दो सीटें वैसे भी सपा नेताओं के हिस्से आनी है और परिणाम भी पूरी तरह पक्ष में आने को लेकर भी संशय है. भले सातों सीटों पर सपा-कांग्रेस के साथ अलायंस में चुनाव लड़ा जाए, लेकिन हार-जीत और वोट शेयरिंग के समीकरण आशंकित कर रहे हैं. INDIA ब्लॉक में एक बड़ा पेंच मुजफ्फरनगर सीट को लेकर भी फंसा है. जयंत इसे अपनी पारंपरिक सीट मानते हैं और चौधरी परिवार वहां से चुनाव लड़ता आ रहा है. लेकिन, अलायंस में सपा ने यह सीट आरएलडी को नहीं दी है.

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'मुजफ्फरनगर से सपा से अलायंस के पक्ष में नहीं आरएलडी कार्यकर्ता'

सपा के साथ अलायंस में 7 सीटों पर चर्चा हुई थी, इनमें आरएलडी के दावे पर बागपत, मुजफ्फरनगर, कैराना, मथुरा और हाथरस पर मुहर लगी थी. दो सीटों पर अभी भी नाम को लेकर संशय बना हुआ है. लेकिन तीन सीटें मुजफ्फरनगर, बिजनौर और कैराना में सपा अपना कैंडिडेट आरएलडी के सिंबल पर लड़ाना चाहती है और इसके खिलाफ आरएलडी का एक धड़ा बगावती सुर अपना रहा है. मुजफ्फरनगर में प्रत्याशी को लेकर सपा और आरएलडी में खींचतान मची है. सपा चाहती है की हरेंद्र मलिक को वहां से चुनाव लड़ाया जाए. बेशक सपा के हरेंद्र मलिक आरएलडी के टिकट पर लड़ जाएं लेकिन उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाए. जबकि आरएलडी के कई स्थानीय नेता इसके विरोध में हैं और वे नहीं चाहते कि हरेंद्र मलिक को मुजफ्फरनगर की सीट दी जाए.

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'जयंत राज्यसभा सदस्य, नहीं लड़ेंगे आम चुनाव'

दरअसल, हरेंद्र मलिक जब कांग्रेस में थे तब से चौधरी परिवार से पुरानी अदावत रही है और मुजफ्फरनगर सीट चौधरी परिवार की कोर सीट मानी जाती है. इसलिए जयंत चौधरी या तो खुद के लिए या अपने किसी करीबी को यहां से लड़ाना चाहते हैं लेकिन जैसा कि तय हो चुका है कि ना तो जयंत चौधरी चुनाव लड़ेंगे और ना ही उनकी पत्नी चारू. ऐसे में पार्टी के भीतर कई नेता मुजफ्फरनगर सीट की दावेदारी कर रहे हैं.

'कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते जयंत?'

सपा के अपने तर्क हैं. सपा का मानना है कि बीजेपी के संजीव बालियान को अगर कोई चुनौती दे सकता है तो वह या तो चौधरी परिवार या फिर हरेंद्र मलिक ही संभव हैं. लेकिन जयंत की पार्टी का काडर हर हाल में यह सीट अपने लिए चाहता है. वह नहीं चाहता कि सपा का कैंडिडेट हो और आरएलडी का सिंबल. यही लड़ाई अब सतह पर आ गई है. दावे तो यह भी किया जाने लगे हैं कि अगर मुजफ्फरनगर पर सपा अपना कैंडिडेट देती है तो आरएलडी कार्यकर्ताओं की नाराजगी संभालना मुश्किल हो सकता है.

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'बीजेपी को लेकर जयंत का सॉफ्ट रुख?'

वहीं, बीजेपी को लेकर पश्चिम यूपी में माहौल बदला है. खुद जयंत चौधरी का रुख भी इसका गवाह है. बात 26 दिसंबर 2023 की है. जयंत चौधरी ने एक ट्वीट किया और सियासी हलकों में चर्चाएं तेज हो गईं. उन्होंने यूपी की योगी सरकार को सीधे तौर पर धन्यवाद दिया. जयंत ने एक्स पर लिखा, कल मेरा जन्मदिवस है और इससे अच्छा तोहफा नहीं मिल सकता. उत्तर प्रदेश में 60,244 सिपाही भर्ती में 3 साल की आयु सीमा बढ़ेगी. योगी जी ने उचित निर्णय लिया है. आरएलडी कार्यकर्ताओं ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को जबरदस्त तरीके से उठाया और अपनी बात मनवाई है. उसके बाद जयंत का दूसरी ट्वीट एक महीने बाद फिर चर्चा में आया. उन्होंने जननायक और बिहार के पूर्व सीएम दिवंगत कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने पर खुशी जताई और एक्स पर लिखा, बिहार ही नहीं, हर भारतीय के लिए गर्व के पल.

चर्चा यह भी आई कि जयंत चौधरी ने हाल ही में अपने कार्यक्रम रद्द किए हैं. 12 फरवरी को छपरौली में जयंत के पिता चौधरी अजीत सिंह की जयंती पर उनकी प्रतिमा का लोकार्पण होना था. यहां रैली का आयोजन प्रस्तावित था. उन्होंने यह कार्यक्रम इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि इस कार्यक्रम में INDIA ब्लॉक से जुड़े नेताओं को भी आमंत्रित करना पड़ता. यह नए समीकरणों की चर्चा को देखते हुए फैसला लिया है. आरएलडी ने भी कार्यक्रम को टालने की वजह साफ नहीं की है. चर्चा यह भी है कि अलायंस होने के बाद रैली आयोजित की जा सकती है और उसमें प्रधानमंत्री को भी बुलाया जा सकता है.

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'बीजेपी और आरएलडी... दोनों के जीत के चांस बढ़ेंगे'

राजनीतिक जानकार कहते हैं कि आरएलडी का एक समय पश्चिमी यूपी में खासा प्रभाव था. बागपत को चौधरी अजित सिंह की कर्मभूमि माना जाता था. लेकिन मोदी लहर में दोनों आम चुनाव में आरएलडी को हार मिली है. ऐसे में आरएलडी नेता यह बात अच्छे से समझते हैं कि बीजेपी से किसानों समेत जिन मुद्दों को लेकर नाराजगी थी, उसे दूर कर दिया गया है. यूपी में गन्ना किसानों को भी सीधा फायदा पहुंच रहा है. पश्चिमी यूपी में कानून व्यवस्था में जबरदस्त सुधार हुआ है. राम मंदिर निर्माण के बाद लोगों में भी खुशी देखने को मिल रही है. अगर बीजेपी से बात बनती है तो अलायंस में आने से कोई गुरेज नहीं करना चाहिए. जीत के चांस भी ज्यादा बढ़ जाएंगे. 

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'बीजेपी ने जयंत को क्या ऑफर दिया?'

इन सभी चर्चाओं के बीच मंगलवार को खबर आई है कि जयंत चौधरी बीजेपी के साथ एनडीए में शामिल हो सकते हैं. सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने यूपी में आरएलडी को चार लोकसभा और एक राज्यसभा की सीट दिए जाने की पेशकश है. चर्चा है कि अगर दोनों के बीच गठबंधन हो जाता है तो यूपी में जो 10 राज्यसभा की सीटें खाली हो रही हैं और जिन पर चुनाव होना है, उसमें एक सीट जयंत को भी दी जा सकती है. दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व की ओर से बातचीत की जा रही है. जल्द ही सहमति बन सकती है.  जयंत भी इंडिया ब्लॉक से लगातार दूरी बनाते दिख रहे हैं.

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी ने आरएलडी को कैराना, बागपत, मथुरा और अमरोहा सीट का ऑफर दिया है. जानकार कहते हैं कि बीजेपी की तरफ से चार सीटों का ऑफर दिया जा रहा है. लेकिन, जीत की संभावना बढ़ सकती है. वहीं, सपा भले सात सीटों का ऑफर दे रही है, लेकिन जीत के चांस कम हैं. इस बार बसपा का भी साथ नहीं है. बसपा अलग चुनाव लड़ रही है और पश्चिमी यूपी में उसका अपना जनाधार है.

2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी पश्चिमी यूपी में बीजेपी को जबरदस्त फायदा हुआ था. यहां जाट-मुस्लिम समीकरण के बावजूद बीजेपी ने कुल 136 विधानसभा सीटों में से 94 सीटों पर कब्जा किया था. वहीं, पश्चिमी यूपी की 22 जाट बहुल सीटों पर बीजेपी ने 16 पर जीत हासिल की थी. 

बीजेपी के लिए जयंत क्यों जरूरी?

यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 64 सीटों पर जीत हासिल की थी. 62 सीटें बीजेपी और 2 सीटें अपना दल (एस) को मिली थीं. इससे पहले 2014 के चुनाव में एनडीए ने 73 सीटों पर कब्जा किया था. बीजेपी को 71 और अपना दल (एस) को दो सीटें मिली थीं. बीजेपी का प्लान है कि यूपी में पुराने रिकॉर्ड को तोड़ा जाए. क्योंकि पार्टी ने उपचुनाव में सपा के दो बड़े गढ़ आजमगढ़ और रामपुर में भी जीत का परचम लहराया है. हाल ही में विपक्षी दलों ने इंडिया ब्लॉक का गठन किया है. इसमें सपा के साथ जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी भी हिस्सा है. आरएलडी का जाटलैंड में खासा प्रभाव है. यह बात बीजेपी भी जानती है. बीजेपी नेतृत्व पश्चिमी यूपी में जीत का कारवां और आगे बढ़ाना चाहता है और आरएलडी के समर्थन से यह प्लान आसान हो सकता है. हाईकमान भी अलायंस की संभावनाएं तलाश रहा है. यही वजह है कि बीजेपी को आरएलडी का साथ लेने में परेशानी नहीं है. सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी आसानी से फाइनल हो सकता है.

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'पश्चिमी यूपी में 18 प्रतिशत जाट आबादी'

पश्चिम यूपी में करीब 18 प्रतिशत जाट आबादी है, जो सीधे चुनाव पर असर डालती है. यानी जाट समुदाय का एकमुश्त वोट पश्चिमी यूपी में किसी भी दल की हार-जीत तय करता आ रहा है. 2019 के चुनाव में जाटलैंड की सात सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी. बीजेपी को मुजफ्फरनगर, मेरठ समेत तीन सीटों पर काफी कम अंतर से जीत मिली थी. अगर आरएलडी एडीए के साथ आ जाती है तो फिर बीजेपी की जीत की राह आसान हो जाएगी.

RLD को कौन 4 सीटें देने की चर्चा?

कैराना: कैराना में दो बार से बीजेपी का कब्जा है. 2014 में हुकुम सिंह चुनाव जीते थे. 2019 में प्रदीप कुमार ने जीत हासिल की.
बागपत: बागपत में भी दो बार से बीजेपी सीट रही है. 2014 और 2019 में बीजेपी के डॉ. सत्यपाल सिंह चुनाव जीतकर आए.
मथुरा: मथुरा में दो बार से बीजेपी चुनाव जीत रही है. यहां 2014 और 2019 में बीजेपी की हेमा मालिनी ने जीत हासिल की.
अमरोहा: 2019 के चुनाव में बसपा के कुंवर दानिश अली ने चुनाव जीता था. ये जीत सपा गठबंधन के जरिए मिली थी. 2014 में बीजेपी के कंवर सिंह तंवर चुनाव जीते थे.

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