
लोकसभा के चुनाव सात चरणों में हो रहे हैं. 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश, 40 सीटों वाले बिहार की ही तर्ज पर 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में भी इस बार लोकसभा चुनाव के सभी चरणों में मतदान होना है. सात में से चार चरण का मतदान हो चुका है. पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों के लिए वोट डाले जा चुके हैं, 24 सीटों के लिए वोटिंग होनी है और सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मतदान के चार पड़ाव पार होने के बाद चुनाव बाद की रणनीति को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) का रुख स्पष्ट कर दिया है.
टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा है कि हम इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करेंगे, गठबंधन सरकार का बाहर से समर्थन करेंगे और दिल्ली में ऐसी सरकार बनाएंगे जिससे बंगाल के लोगों को कोई दिक्कत न हो. उन्होंने एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए ये भी कहा कि लेफ्ट-कांग्रेस पर विचार ना करें, बंगाल में ये हमारे साथ नहीं हैं. ये बीजेपी के साथ हैं. ममता बनर्जी के इस बयान के सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि ममता बनर्जी को चार चरण के बाद इंडिया ब्लॉक के समर्थन की बात क्यों कहनी पड़ी?
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि यह राज्य का नहीं, देश की सरकार चुनने का चुनाव है. बीजेपी के साथ सूबे के प्रो मोदी मतदाता इंटैक्ट हैं. एंटी बीजेपी वोट के दो प्रमुख दावेदार हैं- ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी और कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन. ममता बनर्जी भी इस बात को बखूबी समझ रही हैं कि कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन जितनी मजबूती से लड़ेगा, टीएमसी को इसका उतना ही नुकसान उठाना पड़ेगा और इसीलिए वह इस तरह के बयान दे रही हैं. उनकी रणनीति एंटी बीजेपी वोटर्स को यह संदेश देने की है कि बीजेपी को रोकना है तो टीएमसी ही विकल्प है.
2019 के चुनावी आंकड़े भी वजह
ममता के इस बयान के पीछे 2019 चुनाव के आंकड़े भी वजह बताए जा रहे हैं. पिछले आम चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटों पर जीत-हार का अंतर 0.1 फीसदी से 8.5 फीसदी के बीच रहा था. क्लोज कॉन्टेस्ट वाली 18 में से दो सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी और बाकी 16 में से आठ-आठ सीटें टीएमसी और बीजेपी ने जीती थीं. क्लोज कॉन्टेस्ट वाली इन सीटों पर तीन से चार फीसदी वोट स्विंग भी नतीजे बदल सकता है.
बीजेपी की रणनीति सूबे में पीएम मोदी की लोकप्रियता कैश कराने के साथ ही भ्रष्टाचार और संदेशखाली जैसे मुद्दे पर आक्रामक प्रचार के जरिए मतदाताओं को अपने पाले में लाने की है तो वहीं टीएमसी की कोशिश अपने वोटर्स को इंटैक्ट रखते हुए इसे और बढ़ाने की है. बीजेपी का स्ट्रॉन्ग होल्ड माने जाने वाले उत्तर बंगाल में मतदान हो चुका है जहां पार्टी को आठ में से सात सीटों पर जीत मिली थी. अब साउथ बंगाल यानि कोलकाता और आसपास की सीटों पर वोटिंग की बारी है.
'दिल्ली में बैर नहीं, बंगाल में खैर नहीं' की नीति
साल 2019 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के मजबूती से उभरने तक सूबे की सियासत में टीएमसी और लेफ्ट-कांग्रेस ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी हुआ करते थे. दोनों ही दलों का वोट शेयर और सीटों का ग्राफ चुनाव दर चुनाव गिरता चला गया. ममता बनर्जी ने पहले कांग्रेस नेतृत्व की ओर से मान-मनौव्वल के बावजूद पश्चिम बंगाल में टीएमसी के अकेले लड़ने का ऐलान किया तो उसके पीछे भी अस्तित्व तलाश रहे इन दो दलों को फिर से खड़े होने के लिए अपनी जमीन नहीं देने की रणनीति, 2014 का प्रदर्शन दोहराने की कवायद से जोड़कर देखा गया.
अब अगर ममता बनर्जी यह कह रही हैं कि हम दिल्ली में समर्थन करेंगे तो इसके पीछे दिल्ली के लिए एक सॉफ्ट सिग्नल है. ममता और उनकी पार्टी के नेता शुरू से ही सूबे में कांग्रेस के साथ चुनाव नहीं लड़ पाने के लिए अधीर रंजन चौधरी पर हमलावर रहे हैं लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को लेकर आक्रामक बयानबाजियों से परहेज भी किया.
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कांग्रेस नेतृत्व भी पश्चिम बंगाल में चुनाव को पार्टी के नजरिए से कितनी गंभीरता से ले रहा है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि चार चरण में सूबे की 18 सीटों पर मतदान हो गया लेकिन राहुल गांधी, प्रियंका गांधी जैसे नेताओं की एक भी चुनावी रैली नहीं हुई. वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने कहा कि कांग्रेस नेतृत्व भी भविष्य में टीएमसी से गठबंधन की संभावनाएं खुले रखना चाहता है. शायद यही वजह है कि पार्टी बंगाल की लड़ाई अधीर बनाम ममता ही रहने देने की रणनीति पर चल रही है.
2019 और 2014 में कैसे रहे थे चुनाव नतीजे
पिछले चुनाव में टीएमसी, बीजेपी, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां, सभी अलग-अलग चुनाव मैदान में थे. टीएमसी और बीजेपी ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे तो वहीं कांग्रेस ने 40 और सीपीएम ने 31 सीटों पर. टीएमसी 43.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 22 सीटें जीतने में सफल रही थी और 19 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे.
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बीजेपी को 40.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 18 सीटों पर जीत मिली थी और 22 सीटों पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. वोटों के लिहाज से देखें तो टीएमसी को कुल मिलाकर 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 वोट मिले थे और बीजेपी को 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343. दोनों दलों के बीच वोटों के लिहाज से 17 लाख वोट का अंतर था और कांग्रेस-सीपीएम को ही मिला लें तो दोनों को 68 लाख वोट मिले थे.
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साल 2014 के चुनाव की बात करें तो टीएमसी को तब 39.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 34 सीटों पर जीत मिली थी. 9.7 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस को चार, सीपीएम को 23 फीसदी वोट शेयर के साथ दो और बीजेपी को 17 फीसदी वोट शेयर के साथ दो सीटें मिली थीं. 2019 में टीएमसी को 2014 के मुकाबले 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था.