
पिछले साल जून महीने की बात है. पटना में विपक्षी पार्टियों के प्रमुख नेताओं का जुटान होना था. तब इस कवायद के अगुवा नीतीश कुमार तत्कालीन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम छेड़े हुए थे. तब जन अधिकार पार्टी (जेएपी) के प्रमुख राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव अपनी पार्टी को भी साथ लेने की अपील कर रहे थे.
पप्पू यादव ने पहली बैठक में नहीं बुलाए जाने पर निराशा जाहिर करते हुए यह दावा किया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के प्रमुख लालू यादव से मिलकर आग्रह किया था कि मुझे महागठबंधन का हिस्सा बनाया जाए. लालू यादव ने कहा कि तेजस्वी इस पर निर्णय लेंगे. तेजस्वी को कई बार फोन कर बात करने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं हो पाई. तेजस्वी एक बार बात तो करें.
पप्पू यादव की पार्टी का कांग्रेस में विलय, बिहार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह फैसले से नाराज
पटना के बाद बेंगलुरु में विपक्षी दलों की दूसरी बैठक में भी पप्पू को निमंत्रण नहीं मिला. पप्पू यादव ने तब यह तक कह दिया था कि INDIA ब्लॉक में शामिल होने के लिए किसके पैर पकड़ें? मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के, लालू यादव के या तेजस्वी यादव के? पप्पू ने यह तक कह दिया था कि अगर जेएपी को गठबंधन में शामिल नहीं किया गया तो हम तीन से पांच सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे. तब से अब तक कई महीने गुजर गए. बुधवार की सुबह-सुबह लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ तस्वीर पोस्ट करते हुए सोशल मीडिया पर पप्पू यादव ने लिखा- पारिवारिक माहौल में एनडीए को हराने की रणनीति पर चर्चा हुई.
यह तस्वीर पोस्ट करने के कुछ घंटे बाद ही पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया है. अब चर्चा इसे लेकर हो रही है कि जो तेजस्वी यादव कुछ महीने पहले तक पप्पू यादव से फोन पर बात करना, कांग्रेस उनका साथ जरूरी नहीं समझ रही थी. आरजेडी और कांग्रेस के लिए वही पप्पू यादव अचानक असेट कैसे हो गए? कोई इसे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की एग्जिट के बाद बने हालात में विपक्ष के एक-एक वोट सहेजने की कोशिश बता रहा है तो कोई उनकी पत्नी और कांग्रेस नेता रंजीत रंजन का प्रयास.
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क ने इसे लेकर कहा कि पप्पू यादव की कोसी और सीमांचल क्षेत्र में मजबूत पकड़ है. जेडीयू के एनडीए में जाने के बाद अगर पप्पू यादव की पार्टी अलग चुनाव लड़ती तो इंडिया ब्लॉक को ही नुकसान उठाना पड़ता, खासकर आरजेडी को यादव वोट का. पप्पू यादव की महत्वाकांक्षाएं भी अधिक नहीं हैं. वह अपने लिए बस एक सीट, पूर्णिया चाहते हैं. उनके आने से यादव वोट का बिखराव रुकेगा ही, पटना की बाढ़ और उसके बाद हर आपदा में पप्पू यादव की सक्रियता के कारण हर वर्ग में उनका जो थोड़ा-बहुत वोट बेस है, पूरे बिहार में इंडिया ब्लॉक को उसका फायदा मिल सकता है.
एक फैक्टर आनंद मोहन के परिवार का लालू से दूरी बनाकर जेडीयू के खेमे में चले जाना भी बताया जा रहा है. आनंद मोहन और पप्पू यादव, दोनों ही कोसी-सीमांचल क्षेत्र में मजबूत पैठ रखते हैं. 20वीं सदी के अंतिम दशक में जब आरक्षण लागू होने के बाद आनंद ने लालू का साथ छोड़कर बिहार पीपुल्स पार्टी नाम से अपना दल बना लिया था, तब पप्पू यादव आरजेडी प्रमुख के और करीब होते चले गए थे. एक बार के पूर्व विधायक और पांच बार के पूर्व सांसद पप्पू यादव ने 2015 में तेजस्वी यादव की बयानबाजियों से खफा होकर आरजेडी छोड़ दी थी. पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन पहले से ही कांग्रेस में हैं.
कोसी-सीमांचल में पप्पू का जनाधार
कोसी और सीमांचल में पप्पू यादव का अपना जनाधार है. कोसी और सीमांचल रीजन में सात लोकसभा सीटें हैं- अररिया, पूर्णिया, किशनगंज, मधेपुरा, कटिहार, खगड़िया और सुपौल. विपक्षी गठबंधन को सबसे अधिक उम्मीदें यादव और मुस्लिम बिरादरी की बहुलता वाले बिहार के इसी रीजन से हैं. ऐसे में अगर पप्पू यादव की पार्टी अलग चुनाव लड़ती तो यादव वोट के बिखराव का डर था.