
झारखंड का मिथिलांचल कहे जाने वाले गोड्डा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के टिकट पर निशिकांत दुबे मैदान में हैं. निशिकांत के सामने कांग्रेस ने महागमा विधायक और पार्टी की राष्ट्रीय सचिव दीपिका पांडेय सिंह को उम्मीदवार बनाया था. निशिकांत के खिलाफ कांग्रेस ने अब उम्मीदवार बदल दिया है. दीपिका की जगह अब प्रदीप यादव लगातार चौथी जीत तलाश रहे निशिकांत दुबे को चुनावी चुनौती देते नजर आएंगे.
दीपिका पांडेय सिंह भी कांग्रेस से विधायक हैं तो अब उम्मीदवार घोषित किए गए प्रदीप यादव भी. पोरैयाहाट विधायक प्रदीप यादव 2002 में बीजेपी के टिकट पर उपचुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. सवाल उठ रहे हैं कि गोड्डा सीट से कांग्रेस ने उम्मीदवार क्यों बदला?
कांग्रेस ने क्यों बदला उम्मीदवार?
वरिष्ठ पत्रकार ओमप्रकाश अश्क इसे 'चेक एंड चेंज' रणनीति बताते हैं. उन्होंने कहा कि दीपिका की इमेज साफ-सुथरी है लेकिन चुनाव बस इमेज से नहीं जीते जाते. जातीय समीकरणों से लेकर प्रतिद्वंदी उम्मीदवार तक, कई फैक्टर्स नतीजे निर्धारित करते हैं. दीपिका के मैदान में आने से मुकाबला दो सवर्णों के बीच हो जाता. दीपिका के सियासी जीवन में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद यह दूसरा ही चुनाव होता. हिंदी बेल्ट में जाति देखकर वोट करने का ट्रेंड रहा है और अगर ऐसा हुआ तो ओबीसी कहीं बीजेपी के साथ न चला जाए, कांग्रेस को यह आशंका भी थी.
दीपिका की जगह प्रदीप ही क्यों?
प्रदीप यादव की उम्मीदवारी के पीछे चुनावी अनुभव से लेकर ओबीसी वोट के गणित तक, कई तर्क दिए जा रहे हैं. प्रदीप यादव 2002 में बीजेपी के टिकट पर गोड्डा सीट से उपचुनाव में जीतकर सांसद निर्वाचित हुए थे. वह तब से अब तक, अलग-अलग दलों के टिकट पर गोड्डा से चुनाव लड़ते आ रहे हैं, हालांकि उन्हें दोबारा जीत नसीब नहीं हुई. गठबंधन के तहत कांग्रेस के हिस्से जो सीटें भी आई हैं, पार्टी ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहती जिससे जीत की संभावनाएं कमजोर हों. यही वजह है कि कांग्रेस ने तीन बार के सांसद के सामने नए चेहरे को टिकट देने के बाद यू-टर्न लिया और पूर्व सांसद पर दांव लगा दिया.
M-Y समीकरण का लाभ उठाने की रणनीति?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदीप यादव झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे और 4 लाख 50 हजार से अधिक वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. प्रदीप यादव ओबीसी से आते हैं और कांग्रेस को उम्मीद है कि उनकी उम्मीदवारी से मुस्लिमों के साथ यादव वोटर्स भी गोलबंद हो सकते हैं. कांग्रेस की उम्मीदें यदि हकीकत में बदलीं तो निशिकांत के लिए जीत का चौका लगाने की राह मुश्किल हो सकती है.
गोड्डा का जातीय गणित क्या?
गोड्डा लोकसभा सीट के जातीय गणित, सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां सबसे अधिक तादाद मुस्लिम मतदाताओं की है. अनुमानों के मुताबिक गोड्डा में करीब साढ़े तीन लाख मुस्लिम, ढाई-ढाई लाख यादव, ब्राह्मण और वैश्य आबादी है. ब्राह्मण आबादी में भी एक विभाजन है- मैथिल और कान्यकुब्ज. मैथिल ब्राह्मणों की तादाद यहां ज्यादा है. करीब दो लाख एसटी के साथ ही राजपूत, भूमिहार और कायस्थ जैसी सवर्ण जातियों की आबादी भी एक लाख के करीब है.
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पंचगनिया दलित भी यहां अच्छी तादाद में हैं. वोटिंग पैटर्न की बात करें तो ब्राह्मण और वैश्य बीजेपी के कोर वोटर माने जाते हैं तो वहीं यादव और मुस्लिम वोट कांग्रेस के साथ जाते रहे हैं. दीपिका पांडेय सिंह को टिकट देने के पीछे कांग्रेस की रणनीति बीजेपी के ब्राह्मण वोटबैंक में सेंध लगाने की थी लेकिन इसका रिएक्शन ये हुआ कि पार्टी का कोर वोटर माने जाने वाले यादव समाज के अंदर से नाराजगी के सुर उभरने लगे.
कैसा रहा है गोड्डा का चुनावी अतीत?
संथाल परगना की तीन लोकसभा सीटों में से एक गोड्डा सामान्य सीट है. इस लोकसभा क्षेत्र में देवघर, महागमा, गोड्डा, पोरैयाहाट, मधुपुर समेत छह विधानसभा सीटें आती हैं. गोड्डा संसदीय सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो यह बीजेपी का गढ़ रही है. साल 1989 से 2019 तक, एक उपचुनाव समेत कुल 10 चुनाव हो चुके हैं. 10 में से आठ बार इस सीट से बीजेपी के उम्मीदवार जीते हैं और चार बार यादव सांसद रहे हैं. एक बार झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और एक ही बार कांग्रेस को यहां जीत नसीब हुई है.
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साल 1989 में बीजेपी के टिकट पर जनार्दन यादव जीते थे तो वहीं 1991 में जेएमएम के सूरज मंडल गोड्डा सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे. 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी से जगदंबी प्रसाद यादव जीते. गोड्डा सीट से 2002 के उपचुनाव में बीजेपी के प्रदीप यादव जीते थे तो वहीं 2004 में कांग्रेस के टिकट पर फुरकान अंसारी संसद पहुंचे. 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भागलपुर के रहने वाले निशिकांत दुबे को गोड्डा सीट से मैदान में उतारा. निशिकांत कांग्रेस के फुरकान को हराकर लोकसभा पहुंचे. 2014 और 2019 में भी निशिकांत दुबे की जीत का सिलसिला जारी रहा.
निशिकांत लगा पाएंगे जीत का चौका?
निशिकांत दुबे बीजेपी के टिकट पर लगातार चौथी बार किस्मत आजमा रहे हैं. तीन बार के सांसद निशिकांत जीत का चौका लगाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं. विपक्षी कांग्रेस को 15 साल की एंटी इनकम्बेंसी वोटों में कैश कराने की उम्मीद है. निशिकांत दुबे अडानी पावर प्रोजेक्ट से लेकर देवघर एयरपोर्ट तक, पिछले 15 साल में हुए विकास कार्य गिना रहे हैं. बीजेपी बदलती डेमोग्राफी को लेकर भी आक्रामक है. वहीं, विपक्ष समस्याओं को लेकर बीजेपी सांसद को घेर रहा है.