
समाजवादी पार्टी (सपा) ने मुरादाबाद लोकसभा सीट से नामांकन के बाद सांसद एसटी हसन का टिकट काट दिया. मुस्लिम बाहुल्य मुरादाबाद लोकसभा सीट से रुचि वीरा को उम्मीदवार बना दिया है. अब पार्टी ने मेरठ सीट से गुर्जर कार्ड चल दिया है. सपा ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे रामानंद सागर के टीवी सीरियल रामायण के राम अरुण गोविल के सामने अतुल प्रधान को उतार दिया है. मेरठ में मुस्लिम समाज की आबादी प्रभावशाली है. पहले मुरादाबाद और अब मेरठ, सवाल उठ रहे हैं कि मुस्लिम समाज की बहुलता वाली सीटों पर अखिलेश यादव मुस्लिम उम्मीदवार उतारने में क्यों हिचक रहे हैं?
बसपा की आक्रामक मुस्लिम पॉलिटिक्स
सपा की इस हिचक के पीछे सबसे बड़ी वजह मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की आक्रामक मुस्लिम पॉलिटिक्स को बताया जा रहा है. मायावती की पार्टी यूपी में हुए निकाय चुनाव के समय से ही दलित के साथ मुस्लिम का समीकरण सेट कर वोटों का नया गणित गढ़ने की रणनीति पर काम कर रही है. इसकी छाप लोकसभा चुनाव के लिए बसपा उम्मीदवारों की लिस्ट पर भी नजर आई. बसपा की पहली लिस्ट में 16 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान हुआ था और इसमें सात मुस्लिम उम्मीदवार थे.
बसपा से डेंट की भरपाई की रणनीति
अब अगर मुस्लिम बाहुल्य सीट पर बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने सपा भी इसी वर्ग से उम्मीदवार उतार दे तो एक खतरा वोट के बंटवारे का भी है. सपा नेताओं को लगता है कि बसपा के मुस्लिम कैंडिडेट के सामने अखिलेश ने भी इसी समाज से उम्मीदवार उतार दिया तो इसका फायदा कहीं बीजेपी को न मिल जाए.
बसपा ने मुरादाबाद सीट से इरफान सैफी को मैदान में उतारा है. इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि सैफी अगर कुछ मुस्लिम वोट बसपा के पाले में ला पाते हैं तो उस नुकसान की भरपाई के लिए सपा को अपने कोर वोटर्स से हटकर एक बफर वोट बैंक की जरूरत होगी. मुरादाबाद में रुचि वीरा की उम्मीदवारी उसी बफर वोट की तलाश से जुड़ी बताई जा रही है.
वोटों का ध्रुवीकरण रोकने की रणनीति
सपा के लिए एक चिंता वोटों का ध्रुवीकरण भी है. बीजेपी ने मेरठ सीट से टीवी के राम अरुण गोविल को टिकट दे दिया. मेरठ ऐसी सीट है जहां करीब 23 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इस सीट से 2019 में बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल के सामने सपा-बसपा गठबंधन ने हाजी मोहम्मद याकूब को उम्मीदवार बनाया था. बीजेपी के राजेंद्र पांच हजार से भी कम वोट के अंतर से जीत सके थे.
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और उसमें रामलला के विराजमान होने के बाद हो रहे इन चुनावों में जब बीजेपी ने टीवी के राम को उतार विपक्ष को पशोपेश में डाल दिया. राम मंदिर और टीवी के राम के सहारे अपनी चुनावी नैया पार कराने की जुगत में जुटी बीजेपी की रणनीति भांप सपा ने भी अपनी रणनीति बदल ली. सपा नेताओं को भी किसी मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाने की स्थिति में वोटों का ध्रुवीकरण होने की आशंका थी.
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कहा जा रहा है कि सपा ने ध्रुवीकरण की आशंका को कम से कम करने के लिए ही मुस्लिम कैंडिडेट पर दांव लगाने से परहेज किया. सपा को लगता है कि यादव और मुस्लिम उसके वोटर हैं ही, इनके अलावा किसी तीसरी जाति से उम्मीदवार दिया जाए जो प्रभावशाली भी हो तो जीत की संभावनाएं बढ़ सकती हैं. यह वजह भी हो सकती है कि सपा ने मेरठ-हापुड़ सीट से गुर्जर समाज से आने वाले अतुल प्रधान के रूप में एक पिछड़ा चेहरा दिया है.
क्या है मेरठ का जातीय गणित
मेरठ लोकसभा सीट की बात करें तो यहां छह लाख के करीब मुस्लिम वोटर्स हैं. वैश्य समाज के करीब ढाई लाख, डेढ़ लाख के करीब ब्राह्मण और लगभग एक लाख जाट वोटर हैं. गुर्जर 90 हजार, तीन लाख दलित, 60 हजार ठाकुर और 50 हजार के करीब पंजाबी वोटर्स हैं.