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पवार VS पवार: किसके हिस्से जाएगी बारामती की लोकसभा सीट, क्या शरद पवार के गढ़ में कामयाब हो पाएगा NDA?

बारामती सीट पर लोकसभा चुनाव चर्चा में है. मतदाताओं को सीनियर राजनेता शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच की लड़ाई में एक तरफ का रास्ता चुनना है.

शरद पवार और अजित पवार (फाइल फोटो) शरद पवार और अजित पवार (फाइल फोटो)
साहिल जोशी
  • मुंबई,
  • 23 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 7:21 AM IST

महाराष्ट्र (Maharashtra) के बारामती लोकसभा इलाके में, 'शरद पवार बनाम अजित पवार' का सवाल हवा में घुला हुआ है. कुछ मौकों को छोड़कर, यह निर्वाचन क्षेत्र 1985 से ही पवारों का गढ़ रहा है, जिस तरह गांधी परिवार के साथ अमेठी और रायबरेली का जुड़ाव रहा है. बारामती में मतदाताओं की पसंद में कोई कन्फ्यूजन नहीं था, इस सीट पर या तो पवार परिवार का कैंडिडेट होता था या उनके द्वारा समर्थित कोई दूसरी कैंडिडेट चुनाव लड़ता था. 

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हालांकि, आगामी लोकसभा चुनाव एक नई तस्वीर पेश कर रहा है, जिसमें मतदाताओं को सीनियर राजनेता शरद पवार और उनके भतीजे अजित पवार के बीच एक को अपनी पसंद बनाना है.

इस लड़ाई ने बीजेपी का ध्यान खींचा है, जो लंबे वक्त से बारामती में शरद पवार की विरासत को चुनौती देने की कोशिश कर रही है. 2014 और 2019 में काफी कोशिशों के बावजूद बीजेपी हार गई और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने जीत हासिल की थी.

साल 2014 में बीजेपी समर्थित राष्ट्रीय समाज पार्टी के नेता महादेव जानकर ने सुप्रिया सुले को चुनौती दी थी. मोदी लहर और जातिगत समीकरण पर भरोसा करते हुए जानकर ने सुले को कड़ी टक्कर दी लेकिन फिर भी 67 हजार वोटों के अंतर से हार गए. विशेष रूप से, यह बारामती में पवार की जीत का सबसे कम अंतर था.

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क्या कामयाब होगी बीजेपी की रणनीति?

सुप्रिया सुले की जीत 2019 में ज्यादा आसान रही. यह वही साल था, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी पार्टी के गढ़ अमेठी में स्मृति ईरानी से चुनाव हार गए थे. रणनीति में बदलाव की जरूरत को समझते हुए, बीजेपी ने शरद पवार और अजित पवार के बीच आंतरिक मतभेदों का एक मौका तलाश लिया.

जुलाई 2023 में अजित पवार के एनडीए में शामिल होने और उसके बाद अपने चाचा से एनसीपी का नाम और चुनाव चिह्न हासिल करने से पारिवारिक टकराव की स्थिति तैयार हो गई. बारामती से अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा को मैदान में उतारकर, बीजेपी का लक्ष्य पिछले चुनावों के उलट, एक असली लड़ाई की तस्वीर पेश करना है.

जबकि अजित पवार और बीजेपी मुकाबले को पवार बनाम पवार के बजाय नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. अपनी पत्नी को उम्मीदवार के रूप में उतारने के बावजूद, अजित पवार इस बात पर जोर देते हैं कि इस चुनाव में असली दावेदार वही हैं.

हालांकि, इस चुनाव ने पवार परिवार के अंदर विभाजन को उजागर कर दिया है. अजित पवार के भाई और भतीजे सुप्रिया सुले का समर्थन कर रहे हैं और उनके लिए प्रचार भी कर रहे हैं. पारिवारिक झगड़े से परे, बारामती की लोकसभा सीट की लड़ाई बदलती जनसांख्यिकी और राजनीतिक सिनेरियो को दर्शाती है. कभी मुख्य रूप से ग्रामीण इलाका, पुणे शहर के विस्तार के साथ विकसित हुआ है और अब इसमें एक अहम शहरी इलाका भी शामिल है.

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साल 2009 में परिसीमन के बाद, बारामती में खड़कवासला विधानसभा क्षेत्र जैसे शहरी बेल्ट इलाके हैं, जिसमें पांच लाख से ज्यादा वोटर्स हैं और 2014 से इसे बीजेपी का गढ़ माना जाता है. बीजेपी ने दौंड सीट भी जीती.

खड़कवासला और दौंड के अलावा, बारामती में भोर और पुरंदर सहित चार और विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां पर 2019 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. लेकिन इन सीटों पर शिवसेना की भी अच्छी मौजूदगी है. साल 2019 में, इंदापुर और बारामती विधानसभा सीटें एनसीपी ने जीती थीं और दोनों अब अजित पवार के नेतृत्व वाले एनसीपी गुट के पास हैं.

हालांकि कागज पर अजित पवार बढ़त बनाए रख सकते हैं, लेकिन शरद पवार का वोटर्स के साथ भावनात्मक जुड़ाव (खासकर बारामती विधानसभा क्षेत्र में) नतीजे पर असर डाल सकता है.

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भारतीय जनता पार्टी, बारामती में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी और ऐसा करते वक्त, उसके कैडर को एनसीपी के एकजुट होने पर अजित पवार और उनकी ताकत का सामना करना पड़ा. अजित पवार की सत्ता की राजनीति के कारण कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले नेता भी उनके एनडीए में आने से परेशान थे. इसलिए बीजेपी आलाकमान उनसे सुलह के लिए हर एहतियात बरत रहा है.

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अजित पवार अपने सभी पहले वाले प्रतिद्वंदियों से भी मुलाकात कर रहे हैं, जिससे उनके खिलाफ उनका रुख नरम हो सके.

साल 2019 में बीजेपी में शामिल हुए एक पूर्व कांग्रेस नेता ने कहा, "पार्टी द्वारा डेली रिपोर्ट ली जा रही है कि वे सुनेत्रा पवार के लिए कैसे प्रचार कर रहे हैं. पार्टी आलाकमान यह तय करना चाहता है कि उनकी तरफ से कोई ढील न हो."

जैसे-जैसे पवारों के बीच लड़ाई सामने आएगी, इसका नतीजा न केवल बारामती का नेतृत्व तय करेगा, बल्कि महाराष्ट्र की सियासत के भविष्य की दिशा भी तय करेगा. ऊंचे दांव और स्पष्ट तनाव के साथ, यह मुकाबला पारिवारिक संबंधों से आगे बढ़कर राज्य के लिए ऐसी स्थिति बनाता है, जिसका आगे चलकर दोनों तरफ असर देखने को मिलेगा. 

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