
लोकसभा चुनाव के बीच देशभर में सियासी माहौल गरमाया हुआ है. देश की दो प्रमुख पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस ने जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. इस बीच एक के बाद एक नेता लगातार पार्टियां बदल रहे हैं. सबसे ज्यादा कांग्रेस के नेताओं ने पाला बदला है. किसी ने 'अंतरात्मा' जागने का हवाला दिया तो किसी ने अपमानित महसूस होने के बाद पार्टी को अलविदा कहने की बात कही. ऐसे में नजर डालते हैं ऐसे ही 10 नेताओं पर जिन्होंने चुनाव से ऐन पहले पाला बदल लिया.
चुनाव के बीच पार्टी बदलने का ताजा मामला छत्तीसगढ़ कांग्रेस की नेता राधिका खेड़ा का है. कांग्रेस की नेशनल कॉर्डिनेटर/राष्ट्रीय प्रवक्ता राधिका खेड़ा ने रविवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने कहा कि मैं लड़की हूं और लड़ सकती हूं और मैं अब वही कर रहीं हूं.
राधिका खेड़ा ने अपने इस्तीफे में लिखा कि हर हिंदू के लिए प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली पवित्रता के साथ बहुत मायने रखती है. रामलला के दर्शन मात्र से जहां हर हिंदू अपना जीवन सफल मानता है. वहीं कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं. राधिका ने कहा कि मैंने जिस पार्टी को अपने 22 साल से ज्यादा दिए. जहां NSUI से लेकर AICC के मीडिया विभाग में पूरी ईमानदारी से काम किया. आज वहां ऐसे ही तीव्र विरोध का सामना मुझे करना पड़ा है, क्योंकि मैं अयोध्या में रामलला के दर्शन करने से खुद को रोक नहीं पाई.
राधिका का दावा है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ कांग्रेस की कम्युनिकेश विंग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला के गलत व्यवहार को लेकर सचिन पायलट से लेकर जयराम रमेश, भूपेश बघेल और पवन खेड़ा तक को जानकारी दी थी लेकिन हर किसी ने मुझे चुप रहने को कहा और कॉर्डिनेट नहीं करने के लए फटकार भी लगाई.
राधिका ने कहा कि माता कौशल्या के मायके में बेटी सुरक्षित नहीं हैं, पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित लोग आज भी बेटियों को पैरों तले कुचलना चाह रहे हैं.
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले नेताओं में एक नाम अरविंदर सिंह लवली का भी है. दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष लवली ने 28 अप्रैल को पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद वह चार मई को बीजेपी में शामिल हो गए. लवली के साथ ही कांग्रेस नेता राजकुमार चौहान, अमित मलिक, नसीब सिंह और नीरज बसोया ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया था.
लवली ने बीजेपी में शामिल होने के बाद कहा था कि आप जानते हैं कि मैंने किन परिस्थितियों में दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया. हमारे समर्थकों ने हमसे कहा कि आपको घर पर बैठने की जरूरत नहीं है, मैंने अपने इस्तीफे के बाद घर पर रहने का फैसला किया था, लेकिन हमें दिल्ली और देश के लिए लड़ने के लिए कहा गया.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके संजय निरुपम ने तीन मई को शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) का दामन थाम लिया था. वह एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में शिवसेना में शामिल हुए थे. निरुपम को पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से अप्रैल महीने में कांग्रेस से निकाल दिया था.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेसी नेता मिलिंद देवड़ा 14 जनवरी को शिवसेना (शिंदे गुट) में शामिल हो गए थे. वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए थे. मिलिंद देवड़ा ने शिवसेना में शामिल होने के बाद कहा था कि यह मेरे लिए बहुत भावुक दिन है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं एकनाथ शिंदे जी के नेतृत्व में पार्टी में शामिल होने के लिए कांग्रेस के साथ अपने 55 सालों के साथ को छोड़ दूंगा.
देवड़ा ने कहा था कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे सभी के लिए उपलब्ध हैं. वह जमीन से जुड़े हुए हैं. देश के लिए मोदी जी और अमित शाह जी का विजन बहुत बड़ा है इसलिए मैं उनके साथ जुड़ना चाहता था.
कांग्रेस से इस्तीफा देने वालों की झड़ी लग गई है. कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ पार्टी से इस्तीफा देकर चार अप्रैल को बीजेपी में शामिल हो गए थे. उन्होंने अपने इस्तीफे में कहा था कि कांग्रेस आज जिस तरह से दिशाहीन होकर आगे बढ़ रही है, उसमें मैं खुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था. मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूं और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता हूं. इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी के सभी पदों एवं प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं.
दिल्ली सरकार में मंत्री रहे आम आदमी पार्टी (AAP) नेता राजकुमार आनंद बहुजन समाज पार्टी (BSP) में शामिल हो गए हैं. उन्होंने बसपा ज्वॉइन करने के बाद कहा कि वह अपनी पार्टी में वापस आ गए हैं. वह बसपा के टिकट पर नई दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ेंगे.
कांग्रेस नेता रोहन गुप्ता ने पार्टी का टिकट ठुकराकर बीजेपी ज्वॉइन कर ली थी. उन्होंने कांग्रेस पर अपमानित करने का आरोप लगाया था. बीजेपी की सदस्यता लेने के बाद रोहन ने कहा था कि मैंने अपने आत्मसम्मान के लिए कांग्रेस का साथ छोड़ा. वहां मुझे हर रोज अपमानित किया जाता था.
लोकसभा चुनाव में अपनी उम्मीदवारी वापस लेते हुए गुप्ता ने 22 मार्च को पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को चिट्ठी भेजकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर कई गंभीर आरोप लगाए थे.
गुप्ता ने कहा था कि मैं तत्काल प्रभाव से कांग्रेस के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं. मुझे ये बताते हुए दुख हो रहा है कि बीते दो सालों से पार्टी के संचार विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ नेता द्वारा लगातार अपमानित किया जा रहा है. ऐसे में व्यक्तिगत संकट के समय मुझे ये इस्तीफा देने का फैसला लेना पड़ा.
खुद को बेदाग बताते हुए रोहन गुप्ता ने कहा था कि मैंने कई बार खुद बीजेपी की वॉशिंग मशीन पर सवाल उठाए हैं. मेरी शर्ट बिल्कुल बेदाग है. सनातन को गाली देने वालों के साथ काम नहीं किया जा सकता है. जिनके नाम में राम हैं, वो हर रोज राम के और सनातन के खिलाफ बोलने वालों के पक्ष में बोलने के लिए कहते थे.
पाला बदलने वाले नेताओं की लिस्ट में एक और नाम अक्षय कांति बम का है. मध्य प्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने पहले तो अपना नामांकन वापस ले लिया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया.
अक्षय कांति बम ने दावा किया था कि चुनावी प्रचार के लिए कांग्रेस संगठन की ओर से सहयोग न मिलने के कारण उन्हें चुनाव की दौड़ से बाहर होना पड़ा. पेशे से बिजनैसमैन बम ने इंदौर के BJP कार्यालय में मीडिया से अपनी सफाई में कहा था कि कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने जाने के बाद मैंने वोट हासिल करने के लिए खुद कड़ी मेहनत की, लेकिन इतना बड़ा चुनाव पार्टी संगठन के सहयोग के बिना नहीं लड़ा जा सकता था.
कांग्रेस की ओर से की गई आलोचना का जवाब देते हुए बम ने कहा था कि गद्दार' की परिभाषा क्या है? कांग्रेस ने स्थानीय नेता मोती सिंह को डमी उम्मीदवार क्यों बनाया? इससे पता चलता है कि उन्होंने ऐसा किया? इससे पता चलता है कि उन्हें मुझ पर भरोसा ही नहीं था.
गुजरात कांग्रेस के नेता अर्जुन मोढवाडिया पांच मई को बीजेपी में शामिल हो गए थे. पोरबंदर से विधायक मोढवाडिया ने रविवार को गुजरात विधानसभा अध्यक्ष शंकर चौधरी को अपना इस्तीफा सौंपा था. मोढवाडिया ने 2022 के चुनावों में पोरबंदर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी के दिग्गज नेता बाबू बोखिरिया को हराया था.
अर्जुन मोढवाडिया ने इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि आज मैंने गुजरात कांग्रेस के हर पदों से इस्तीफा दे दिया है, मैं छात्र नेता से लेकर मौजूदा समय तक कांग्रेस से जुड़ा था. ब्लॉक कांग्रेस से राजनीति शुरू करके विधानसभा और विरोध पक्ष के नेता के साथ प्रदेश का अध्यक्ष भी बना था. मैंने खून, पसीना देकर पार्टी को मजबूत करने की कोशिश की. लेकिन जिस कल्पना से मैंने कांग्रेस ज्वॉइन की थी, बीते कुछ सालों से मुझे पार्टी में वो देखने को नहीं मिल रही थी.
उन्होंने कहा कि मैंने सोचा था कांग्रेस में रहकर जनता में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लेकर आऊंगा. हमें आजादी 1947 में मिली थी, लेकिन महात्मा गांधी ने कहा था कि हमें राजकीय आजादी मिली है, आर्थिक और सामाजिक आजादी अभी बाकी है. इस कल्पना के साथ मैं कांग्रेस में काम कर रहा था. जिस तरह से कांग्रेस पार्टी जनता से दूर चली गई है. उस पर मैंने कई बार ध्यान आकर्षित करने की कोशिश भी की. लेकिन, मैं उसमें विफल रहा. इसलिए आज मैंने कांग्रेस के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.
महाराष्ट्र कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने 12 फरवरी को पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले को पत्र भेजकर कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने का ऐलान किया था.
वह कांग्रेस छोड़ने के अगले ही दिन 13 फरवरी को बीजेपी में शामिल हो गए थे. चव्हाण ने बाद में कहा था कि महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है.
अशोक चव्हाण ने कहा कि जब मैं कांग्रेस में था, तो मैंने कांग्रेस को अच्छी सीटें दिलाने का प्रयास जरूर किया. उन्होंने कहा कि मैंने भिवंडी सीट नहीं छोड़ने का कड़ा रुख अपनाया था. सांगली सीट छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता. मैं इन सीटों के लिए प्रयास कर रहा था. मैं इस बात पर जोर दे रहा था कि कांग्रेस को मुंबई में 3 सीटें मिलें.
उन्होंने कहा कि मूल रूप से महाराष्ट्र कांग्रेस में कूटनीति की कमी है, उनके पास कोई व्यावसायिक कौशल नहीं है, वे इतने ट्रेंड नहीं हैं कि अपने वर्ग में अधिकतम स्थान प्राप्त कर सकें. ये सब सिर्फ मीटिंग्स में बैठने और बातचीत करने, फाइव स्टार होटलों में जाने और खाना खाने का नतीजा है. दरअसल, महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं को सीट बंटवारे में कोई दिलचस्पी नहीं है. यही कारण है कि असफलता उनके हाथ लगी है.