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पहले चरण में देश की कुल 102 लोकसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे जिसमें रामपुर, सहारनपुर, पीलीभीत, नगीना, बिजनौर, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर और कैराना लोकसभा सीट शामिल है. आइए जानते हैं कि उत्तर प्रदेश की इन आठ लोकसभा सीटों का क्या है सियासी समीकरण.
पीलीभीत : इन 8 लोकसभा सभा चुनाव में पीलीभीत की सीट सबसे हॉट सीट बन गई है, क्योंकि वरुण गांधी का पत्ता बीजेपी ने साफ कर दिया है और कुछ साल पहले कांग्रेस से आए जितिन प्रसाद को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.
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पीलीभीत में सबसे ज्यादा बाघों की तादाद
पीलीभीत को यूपी का पंजाब भी कहा जाता है, क्योंकि विभाजन के बाद पाकिस्तान से आये सिखों ने इसे आबाद किया, उत्तर प्रदेश का पीलीभीत जिला सबसे ज्यादा बाघों की तादाद के लिए जाना जाता है. इसके अलावा गोमती नदी के उद्गम जल, जंगल, जमीन से सजा ये जिला अपनी खूबसूरती के लिये देश दुनिया मे विख्यात है. धान, गेंहू,गन्ना यहां की प्रमुख फसल है, लेकिन बात अगर राजनीति की करें तो यह क्षेत्र मेनका और वरुण गांधी के लोकसभा क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वरुण गांधी का टिकट काटकर यहां से जितने प्रसाद को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. समाजवादी पार्टी ने भी यहां से कुर्मी बिरादरी पर दांव लगाया है, सपा ने भगवत शरण गंगवार को अपना प्रत्याशी बनाया है.
नेपाल और उत्तराखंड से जुड़ी है पीलीभीत की सीमा
पीलीभीत लोकसभा की सीमाएं नेपाल और उत्तराखंड से जुड़ी है. लखीमपुर, शाहजहांपुर बरेली इसके पड़ोसी जिले हैं. बहेड़ी क्षेत्र छोड़ के पीलीभीत लोकसभा क्षेत्र की आबादी 25 लाख के आस पास है और वोट 18 लाख से ज्यादा है. जातिगत आंकड़ों पर नजर डाले तो 5 लाख के आस पास मुस्लिम, किसान 3 से 4 लाख के बीच और कुर्मी वोट लगभग 2 लाख है.
वरुण गांधी को लेकर तरह-तरह के कयास लगने लगे हैं, ऐसे में यह सीट सबसे चर्चित सीटों में एक है. वरुण गांधी ने पिछली बार तकरीबन ढाई लाख वोटो से ये सीट जीती थी. अब जितिन प्रसाद क्या जीत के इस लीड को बढ़ा पाते हैं या फिर भाजपा यह सीट गंवा देती है इस पर सबकी नजर रहेगी.
बिजनौर: बिजनौर से एनडीए के उम्मीदवार के तौर पर आरएलडी के प्रत्याशी चंदन चौहान हैं, जबकि समाजवादी पार्टी ने दीपक सैनी को अपना उम्मीदवार बनाया है. बसपा ने यहां जाट प्रत्याशी चौधरी वीरेंद्र सिंह को दिया है.
बीजेपी ने गुर्जर बसपा ने जाट और समाजवादी पार्टी ने ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं. आरएलडी को इस गठबंधन में दी गई दो सीटों में एक सीट बिजनौर की है.
मुस्लिम और दलित वोटर निर्णायक
बिजनौर लोकसभा में पांच विधानसभा सीट है. इसमें अगर जातिगत वोटर की बात करें तो करीब साढ़े 4 लाख से 5 लाख के आसपास मुस्लिम वोटर हैं. जबकि तक़रीबन चार से साढे चार लाख के बीच दलित वोटर हैं. डेढ़ से पौने दो लाख के करीब जाट वोटर हैं, इसके अलावा 50 से 75000 के बीच में गुर्जर वोटर है और 50 से 60000 के बीच में ब्राह्मण वोटर है. वही इसके अलावा चौहान त्यागी अन्य जातीय सहित कई अन्य जातियों का भी वोट इसमें शामिल है इस सीट पर मुस्लिम और दलित वोटर हमेशा निर्णायक रहा है.
बिजनौर लोकसभा के इतिहास की बात करें तो राम मंदिर आंदोलन के बाद से यानी 1991 से अब तक भारतीय जनता पार्टी चार बार इस सीट पर अपना कब्जा जमा चुकी है. जबकि इस बीच में समाजवादी पार्टी दो बार रालोद एक बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुका है और वर्तमान में इस सीट पर बसपा का कब्जा है. जिसके सांसद मलूक नागर हैं. लोकसभा अध्यक्ष रही मीरा कुमार और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रही मायावती भी इस सीट का एक-एक बार प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.
हाथ की नक्काशी के लिए जाना जाता है नगीना:
नगीना सीट इसलिए खास है क्योंकि चंद्रशेखर आज़ाद रावण यहां से अपनी सियासी जमीन की तलाश कर रहे हैं. वो पहली बार चुनाव मैदान में हैं. बीजेपी ने ओम कुमार तो सपा ने मनोज कुमार को अपना प्रत्याशी बनाया है, वहीं बसपा ने सुरेंद्र सिंह मेनवाल को अपना प्रत्याशी बनाया है. नगीना लोकसभा सीट सुरक्षित सीट है. नगीना को मुख्य रूप से काष्ठ कला के लिए जाना जाता है. नगीना में काष्ठ कला सालाना टर्नओवर 400 करोड़ से ज्यादा है. यहां के कारीगर हाथ की नक्काशी से सुंदर आकर्षक हैंडीक्राफ्ट बनाते हैं जो विदेशों में अपनी पहचान रखते हैं और यहां से विदेशों तक सप्लाई किए जाते हैं. इस सीट पर मुख्य रूप से दलित और मुस्लिम निर्णायक है.
हालांकि यह सीट सुरक्षित सीट है, लेकिन इस सीट पर मुसलमानों की संख्या सबसे ज्यादा है. करीब साढ़े 7 लाख वोटर इसमें मुसलमान है. दलित वोटर की संख्या लगभग साढे चार लाख के आसपास है. 2009 में यह सीट अस्तित्व में आई और इस पर पहली बार लोकसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के यशवीर सिंह पहली बार विजय हुए थे. उसके बाद 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सांसद यशवंत सिंह ने सपा प्रत्याशी को हराकर इस सीट पर अपना कब्जा जमाया था. जबकि 2019 के चुनाव में सपा और बसपा के गठबंधन के चलते बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी गिरीश चंद्र इस सीट पर विजय रहे जो वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
हिन्दू, मुसलमान गुजर बहुल इलाका कैराना
कैराना : ये इलाका हिन्दू और मुसलमान गुजर बहुल माना जाता है, सपा ने इकरा हसन को अपना उम्मीदवार बनाया है, तो बीजेपी ने प्रदीप चौधरी को. दोनों गुजर हैं, लेकिन अब यहां की सियासत में बिरादरी से बड़ा धर्म का झोल है. कैराना लोकसभा में पांच विधानसभा मौजूद है. जिसमें कैराना, शामली, थाना भवन नुकुड और गंगोह विधानसभा सीट है. कैराना लोकसभा में जातीय समीकरण की बात करें तो यहाँ पर सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. जिनकी संख्या करीब 5:45 लाख के आसपास है.
उसके बाद दलित वर्ग के तकरीबन ढाई लाख वोटर है. कैराना में तकरीबन ढाई लाख के आसपास जाट वोटर है. 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो उस दौरान यहां पर भाजपा कैंडिडेट ने करीब 75000 से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी.
सहारनपुर: यहां से समाजवादी पार्टी ने इमरान मसूद को तो बीजेपी ने राघवलखन पाल को मैदान में उतारा है. सहारनपुर लोकसभा सीट का सफर बहुत दिलचस्प रहा है. यह सीट कई मायनों में सभी राजनीतिक दलों के लिए अहम मानी जाती है. सहारनपुर सीट पर सबसे पहला लोकसभा चुनाव 1952 में हुआ था और तभी से यह सीट कांग्रेस का गढ़ बन गयी. 1952 से लेकर 1977 तक इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा था. 1977 में इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव से लेकर 1996 तक इस सीट पर जनता दल या जनता पार्टी का कब्जा रहा. दो बार की हार के बाद 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर यंहा पर बाज़ी मारी थी.
सहारनपुर सीट का ऐसा रहा है इतिहास
1996 के बाद सहारनपुर सीट दो बार भारतीय जनता पार्टी, दो बार बहुजन समाज पार्टी, एक बार समाजवादी पार्टी और फिर 2014 में मोदी लहर के चलते 16 साल बाद यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी. इससे पहले भाजपा 1998 में इस सीट से चुनाव जीती थी. लेकिन 2019 के चुनाव में इस सीट पर एक बार फिर बसपा ने कब्जा कर लिया. 2019 में सहारनपुर लोकसभा सीट से महागठबंधन से प्रत्याशी बने बसपा के हाजी फजलुर्रहमान ने 514139 वोट पाकर जीत दर्ज की. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी राघव लखनपाल को 22,417 वोटों से हरा कर इस सीट पर अपना परचम लहराया और इस सीट से लोकसभा सांसद बने. इस लोकसभा सीट पर दलित और मुस्लिम वोट डिसाइडिंग फ़ैक्टर रहते हैं, जो इसे राजनीतिक दलों के लिए अहम बनाता है.
मुरादाबाद: आज़म खान की जिद्द ने अखिलेश को मुरादाबाद में अपना प्रत्याशी बदलने पर मजबूर कर दिया है, एसटी हसन की जगह सपा. अब रुचिवीरा को अपना उम्मीदवार बनाने जा रही है, जबकि बीजेपी ने फिर कुंवर सर्वेश सिंह पर अपना दाँव लगाया है.
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश की एक महत्वपूर्ण लोकसभा है. मुरादाबाद, पीतल हस्तशिल्प उद्योग के कारण पीतल-नगरी (Pital Nagari) के नाम से मशहूर है. यहां बने पीतल के सामान का निर्यात कई देशों में होता हैं जिसके चलते मुरादाबाद इंपोर्ट एक्सपोर्ट हब भी है. मुरादाबाद लोकसभा की बात करें तो उसमे कुल 5 विधानसभा आती हैं.
मौजूदा सांसद की बात करें तो डॉ एसटी हसन समाजवादी पार्टी से मुरादाबाद लोकसभा के सांसद हैं, हालांकि मुरादाबाद का इतिहास रहा है कि यहां हर लोकसभा चुनावों में अलग पार्टी का सांसद बनता है जैसे 2019 में सपा सांसद, 2014 में भाजपा से सांसद कुंवर सर्वेश सिंह, 2009 में कांग्रेस से क्रिकेटर मोहम्मद अजरूद्दीन सांसद रह चुके है.
मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर से बीजेपी अपने जाट चेहरे संजीव बालियान को तीसरी बार मैदान में उतारा है तो सपा ने कांग्रेस से आये जाट नेता चौधरी हरेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. उत्तर प्रदेश की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट की करें तो यह सीट 2013 दंगे के बाद से उत्तर प्रदेश की मुख्य सीटों में गिनी जाती है. क्योंकि 2013 दंगे के बाद 2014 में जो लोकसभा के चुनाव हुए थे उसमें भारतीय जनता पार्टी ने सभी पार्टियों का एक तरफ सुपड़ा साफ कर दिया था.
2014 के इस चुनाव में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर भाजपा ने डॉक्टर संजीव बालियान को अपना प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा था. बीजेपी की इस आंधी में संजीव बालियान को इस चुनाव में 653391 वोट मिले थे. जबकि दूसरे नम्बर पर रहे बसपा के प्रत्याशी कादिर राणा मात्र 252241 वोट ही मिल पाए थे. जिसके चलते भाजपा प्रत्याशी डॉक्टर संजीव बालियान ने इस चुनाव में बसपा प्रत्याशी कादिर राणा को 401150 रिकॉर्ड मतों से मात दी थी. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने एक बार फिर से डॉक्टर संजीव बालियान पर अपना दाव लगाया था.
इस बार संजीव बालियान के सामने राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे स्वर्गीय अजीत सिंह थे. इस चुनाव में भी संजीव बालियान ने जीत हासिल करते हुए अजीत सिंह को 6526 वोट से हराकर यह चुनाव जीता था. इस चुनाव में डॉक्टर संजीव बालियान को 573780 वोट मिले थे जबकि अजीत सिंह को 567254 वोट मिल पाए थे.
मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो इसी सीट पर 2019 चुनाव के अनुमानित आकड़ो के मुताबिक लगभग 17 लाख के आसपास मतदाता है. जिसमें लगभग 5 लाख मुस्लिम, 2 लाख दलित ,डेढ़ लाख जाट, 130000 कश्यप, 120000 सैनी, 115000 वैश्य और लगभग 480000 ठाकुर ,गुर्जर ,त्यागी ,ब्राह्मण, पाल ,प्रजापत, सुनार और अन्य बिरादरियाँ है.
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान रामपुर रियासत का उदय
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान सितंबर 1774 ईस्वी में रामपुर रियासत का उदय हुआ यहां पर 1949 तक कुल 10 नवाबों में शासन किया है. देश की आजादी के बाद 1952 में हुए आम चुनाव में देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद यहीं से चुनकर संसद तक पहुंचे थे. यहां पर नवाब खानदान के अलावा भाजपा कि मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी अभिनेत्री जयाप्रदा और सपा के फायर ब्रांड नेता आज़म खान जीत हासिल कर चुके हैं.
चुनावी आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो 1952 से 2019 तक के चुनाव में यहां पर काफी उलट फेर देखने को मिले हैं. यहां से 10 बार कांग्रेस, चार बार भाजपा, तीन बार सपा और एक बार भारतीय लोकदल से निर्वाचित हुए सांसद लोकतंत्र के मंदिर यानी संसद में रामपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर राजनीतिक एतबार से धर्म और जाति कोई खास मायने नहीं रखती है.
यही कारण है कि यहां के मतदाता दूसरे धर्म या जाति वाले प्रत्याशी को चुनने में किसी तरह का कोई गुरेज नहीं करते हैं. रामपुर लोकसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि के एतवार से इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े दल के रूप में कांग्रेस की फेहरिस्त में यहां की सीट भी है. जबकि सपा भी यहां पर मजबूत दावा पेश करती देखी जा सकती है. वहीं दूसरी ओर भाजपा के दिग्गजों ने भी विरोधियों को कई मौके पर चुनावी रण में धूल चढ़ाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी है.