
विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया ब्लॉक के भीतर सीट बंटवारे को लेकर आंतरिक कलह खत्म नहीं हो रही है. इस बीच, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि वो पश्चिम बंगाल में अपने गढ़ को ना कमजोर होने देना चाहती हैं और ना किसी दूसरे दल को अपना वोट बैंक ट्रांसफर करवाने के मूड में हैं. यही वजह है कि सोमवार को ममता इंडिया अलायंस के सहयोगी कांग्रेस और वाम मोर्चे को नसीहत देते नजर आईं. इसके साथ ही दोनों दलों को आइना भी दिखाया है.
सोमवार को ममता ने कांग्रेस के सामने सीट शेयरिंग का नया फॉर्मूला दिया है. ममता ने बीजेपी को मात देने के लिए खास इलाकों में स्थानीय पार्टियों को कमान दिए जाने की वकालत की है. ममता ने एक सुझाव भी दिया कि कांग्रेस चाहे तो अपने दम पर 300 लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ सकती है. हालांकि, राजनीतिक तौर पर देखा जाए तो ममता का प्रस्ताव और शर्त इतनी आसान नहीं है.
'कांग्रेस-लेफ्ट को हद दिखाने से नहीं चूक रहीं ममता'
दरअसल, पश्चिम बंगाल में सीट शेयरिंग पर पेंच फंसा हुआ है. आगामी आम चुनाव में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए सत्तारूढ़ टीएमसी अलायंस को लीड करना चाहती है और सीट शेयरिंग में कांग्रेस, वाम मोर्चे को हद दिखाने से नहीं चूक रही है. सीपीएम के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा, कांग्रेस और टीएमसी 28 पार्टियों वाले विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक का हिस्सा हैं. हालांकि, पश्चिम बंगाल में सीपीएम और कांग्रेस के नेता लगातार टीएमसी के खिलाफ हमलावर देखे जा रहे हैं.
'टीएमसी के प्रस्ताव पर सहमत नहीं कांग्रेस'
टीएमसी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन के आधार पर दो सीटों का ऑफर दिया है. कांग्रेस को यह प्रस्ताव नागवार गुजरा और दोनों पार्टियों के बीच तनाव बढ़ गया. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने सीधे टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी को निशाने पर लिया था और कहा था कि वो टीएमसी से सीटों की 'भीख' नहीं मांगेंगे.
'पिछले नतीजों को आधार बना रही हैं ममता'
बताते चलें कि 2019 के चुनावों में टीएमसी को 22 सीटें मिलीं थी. जबकि कांग्रेस ने सिर्फ दो सीटें जीतीं थीं. बीजेपी ने राज्य में 18 सीटें हासिल की थीं. उसके बाद विधानसभा चुनाव में भी टीएमसी ने जबरदस्त जीत हासिल की थी और बीजेपी को हराया था. इन दोनों चुनाव के नतीजे के आधार पर ही ममता बनर्जी अलायंस से सीट शेयरिंग का फॉर्मूला निकालने की बात पर जोर दे रही हैं.
'ममता ने अलांयस की वर्चुअल मीटिंग से बना ली थी दूरी'
हाल ही में ममता की नाराजगी तब सामने आई थी, जब उन्होंने इंडिया ब्लॉक की वर्चुअल मीटिंग से दूर रहने का फैसला किया था. टीएमसी का कहना है कि पश्चिम बंगाल में वो सबसे बड़ी पार्टी है, ऐसे में वो ही अपने राज्य में गठबंधन को लीड करेंगी. इसके साथ ही टीएमसी अपने सहयोगी दल कांग्रेस को बंगाल में अपनी सीमाओं को पहचानने की बात पर भी जोर दे रही है.
'अगर बात नहीं बनी तो सभी 42 सीटों पर लड़ेगी TMC'
अब एक बार फिर ममता के बयान ने राजनीतिक माहौल गरमा दिया है. ममता ने कहा, मैं इस बात पर जोर देती हूं कि विशेष क्षेत्रों को क्षेत्रीय पार्टियों के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए. वे (कांग्रेस) अकेले 300 (लोकसभा) सीटों पर लड़ सकते हैं और मैं उनकी मदद करूंगी. मैं उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ूंगी. लेकिन, वे अपने मन की करने पर अड़े हुए हैं. ममता की यह टिप्पणी हाल ही में पार्टी की एक आंतरिक बैठक के बाद आई. इस बैठक के बाद खबर आई थी कि अगर टीएमसी को इंडिया ब्लॉक में 'उचित महत्व' नहीं दिया गया तो सत्तारूढ़ पार्टी पश्चिम बंगाल की सभी 42 लोकसभा सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने के लिए तैयार है.
'अपनी शर्तों पर समझौता करेंगी ममता?'
ममता के इस बयान के बड़े राजनीतिक मायने हैं. पहला यह कि वो अपने गढ़ बंगाल में अपनी शर्तों पर समझौता करना चाहती हैं. इसके साथ ही अलायंस का कोई थोपा गया फैसला स्वीकार करने के मूड में नहीं है. ममता 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनाव नतीजों को भी आधार बना रही हैं और बंगाल में खुद को सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही हैं. ममता ने कांग्रेस को जो 300 सीटों पर अकेले दम पर चुनाव लड़ने का ऑफर दिया है, उसके पीछे भी कांग्रेस की चुनावी रणनीति ही वजह मानी जा रही है.
'कांग्रेस अकेले 290 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में'
पिछले दिनों कांग्रेस की नेशनल अलायंस कमेटी के साथ पार्टी नेताओं की एक बैठक हुई थी, जिसमें यह बात सामने आई थी कि लोकल बॉडी पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली में समझौते करने के मूड में नहीं है और 290 सीटों पर अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहिए. सूत्र कहते हैं कि कांग्रेस हाईकमान का मानना है कि 2019 के चुनाव में जहां उसने जीत हासिल की थी, वहां वो फिर कैंडिडेट उतारेगे. इसके अलावा, जिन सीटों पर दूसरे नंबर पर आई थी, वहां भी अपने कैंडिडेट उतारने का मन बना लिया है. गठबंधन के प्रभाव वाले राज्यों में भी कांग्रेस चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है. ऐसी कुल 290 सीटों की लिस्ट तैयार की गई है, जहां कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है.
'9 राज्यों में गठबंधन करेगी कांग्रेस?'
कांग्रेस करीब 100 सीटों पर सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ना चाहती है. गठबंधन और अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली सीटों की कुल संख्या 390 के आंकड़े तक पहुंच रही है. सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस 10 राज्यों में अकेले दम पर और 9 राज्यों में गठबंधन में चुनाव लड़ने का प्लान बना रही है. गुजरात, हरियाणा, असम, आंध्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और ओडिशा में कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ेगी. जबकि दिल्ली, बिहार, पंजाब, तमिलनाडु, यूपी, पश्चिम बंगाल, कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र में अलायंस के सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग का फॉर्मूला खोज रही है.
कांग्रेस को लेकर क्या चाहते हैं सहयोगी दलों के नेता?
टीएमसी समेत अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि कांग्रेस को उन राज्यों में बड़ी पार्टी का दावा छोड़ देना चाहिए, जहां उसके विधायक-सांसदों की संख्या ना के बराबर है. वहां कांग्रेस की दखलअंदाजी ना हो. क्षेत्रीय पार्टियों और उनके नेताओं को निर्णय लेने की छूट मिलना चाहिए. बड़े भाई की भूमिका में क्षेत्रीय पार्टियों को मौका मिले. कांग्रेस सिर्फ सहयोगी दल की तरह बीजेपी के खिलाफ चुनाव जीतने में मदद करे. ऐसे राज्यों में पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब और यूपी, बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र का नाम प्रमुख है. इन राज्यों के नेता सीट शेयरिंग पर अपना फॉर्मूला स्वीकार करने की बात पर जोर दे रहे हैं.
कांग्रेस के लिए टीएमसी की शर्त आसान क्यों नहीं?
कांग्रेस के अलायंस वाले में स्थानीय नेतृत्व पार्टी को मजबूत बता रहा है. और अपनी शर्तों पर अलायंस करने पर जोर दे रहा है. मसलन, स्थानीय नेतृत्व का कहना है कि अगर हम इसी तरह अलांयस के लिए सीटें छोड़ते रहे तो कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरेगा. जो नेता और पदाधिकारी सालों से संगठन में काम कर रहे हैं, वे चुनाव लड़ने की भी उम्मीद रखते हैं. लेकिन, जब टिकट सहयोगी दलों को मिलेगा तो कांग्रेस का स्थानीय नेतृत्व और पार्टी विचारधारा का कोर वोट बैंक भी हाथ से खिसक जाएगा. इतना ही नहीं, प्रदेश से लेकर जिलों तक में लीडरशिप पर संकट आ जाएगा. सालों से चुनावी तैयारी कर रहे नेता दूसरे दलों में चले जाएंगे.
ममता ने सीपीएम पर भी जताई नाराजगी
ममता ने इस बार सीपीएम को भी निशाने पर लिया और INDIA अलायंस के एजेंडे को कंट्रोल करने की कोशिश का भी आरोप लगाया. ममता ने कहा, मैंने विपक्षी गुट की एक बैठक के दौरान इंडिया नाम का सुझाव दिया था. लेकिन जब भी मैं गठबंधन की बैठकों में हिस्सा लेती हूं तो मुझे लगता है कि वामपंथी कंट्रोल हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. यह स्वीकार्य नहीं है. मैं उन लोगों से सहमत नहीं हो सकती, जिनके साथ मैंने 34 वर्षों तक संघर्ष किया है. ममता का कहना था कि इस तरह के अपमान के बावजूद मैंने समझौता कर लिया और इंडिया ब्लॉक की बैठकों में भाग लिया है.
'बीजेपी को टीएमसी दे रही है सीधी टक्कर'
ममता ने इस बात पर भी जोर दिया कि टीएमसी की तरह बीजेपी को कोई भी विपक्षी पार्टी सीधी टक्कर नहीं दे रही है. ममता का कहना है कि मुझमें बीजेपी से मुकाबला करने और उसके खिलाफ लड़ने की ताकत है. लेकिन, कुछ लोग सीट बंटवारे के बारे में हमारी बात नहीं सुनना चाहते हैं. अगर आप बीजेपी से नहीं लड़ना चाहते हैं तो कम से कम उसके खाते में सीट तो मत जाने दीजिए. कांग्रेस का जिक्र किए बिना ममता ने राज्य में सीट बंटवारे की चर्चा में देरी के लिए भी आलोचना की.
'सिर्फ मंदिर जाना काफी नहीं'
वहीं, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को असम में वैष्णव संत शंकरदेव के जन्मस्थान पर जाने से रोके जाने के संबंध में ममता ने कहा, सिर्फ मंदिर जाना ही काफी नहीं है. ममता ने बीजेपी के खिलाफ अपने सक्रिय रुख के बारे में बताया और कहा, आज कितने राजनेताओं ने बीजेपी का सीधा मुकाबला किया? कोई एक मंदिर में गया और सोचा कि यह पर्याप्त है, लेकिन ऐसा नहीं है. मैं ऐसी अकेली हूं, जो मंदिर, गुरुद्वारा, चर्च और मस्जिद गई. मैं लंबे समय से लड़ाई लड़ रही हूं. जब बाबरी मस्जिद मुद्दा (विध्वंस) हुआ, तब हिंसा हो रही थी और मैं सड़कों पर थी.
'निराधार आरोप लगा रही हैं ममता'
इधर, ममता की टिप्पणियों पर कांग्रेस और सीपीआई (एम) दोनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. पश्चिम बंगाल में कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने कहा, हम टीएमसी नेतृत्व की सोच और इच्छा पर टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं. उन्हें जो अच्छा लगता है, वो करने दें. सीपीआई (एम) के सेंट्रल कमेटी के मेंबर सुजन चक्रवर्ती ने इस आरोप को 'निराधार' बताया कि उनकी पार्टी इंडिया ब्लॉक की बैठकों के एजेंडे को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है. पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) के सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा, यह लड़ाई सांप्रदायिक और कम्युनिस्टों के बीच है.