
पहले चरण के मतदान में केवल दस दिन रह गए हैं. इस बीच करप्शन रोकने वाली एजेंसियों का नाम चुनावी नारों में आ रहा है. खुद को बेदाग बताने की सियासत में हर कोई दूसरे को चोर बताकर भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने की याद दिला रहा है. एक तरफ भ्रष्टाचारियों पर एक्शन के साथ लोकतंत्र की मजबूती की गारंटी दी जा रही है तो वहीं दूसरी तरफ उसी एक्शन में लोकतंत्र को जेलतंत्र बनाए जाने की आशंका पर सियासत जारी है.
इस कड़ी में टीएमसी ने सोमवार को चुनाव आयोग के बाहर सभी जांच एजेंसियों के प्रमुखों को हटाने के लिए धरना प्रदर्शन किया. टीएमसी के दस नेता चुनाव आयोग के दफ्तर के बाहर बैठे हुए नजर आए. ये नेता जांच एजेंसियों के प्रमुखों को हटाने की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रहे थे. इसके बाद पुलिस उन्हें उठाकर आयोग के दफ्तर के सामने से थाने में ले गई. इसके बाद सभी नेता थाने में ही धरने पर बैठ गए.
टीएमसी ने आरोप लगाया कि दिल्ली पुलिस ने इन सभी को हिरासत में ले लिया. वहीं दिल्ली पुलिस ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. दिल्ली के मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन ने कहा कि हमने किसी को हिरासत में नहीं लिया है. नेता जाने के लिए स्वतंत्र हैं. वे थाने के अंदर ही बैठे हैं. उधर, अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में टीएमसी के 10 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने बंगाल के राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस से मुलाकात की. बनर्जी ने बंगाल में एनआईए एसपी पर कार्रवाई नहीं करने पर चुनाव आयोग की आलोचना की. बनर्जी का कहना है कि राज्यपाल ने उन्हें इस पर एक्शन लेने का आश्वासन दिया है.
देश में चार एजेंसी हैं-
CBI- 1963 में बनी.
ED- 1956 में बनी.
NIA- 2008 में बनी.
आयकर विभाग आजादी के पहले से बना हुआ है.
इन्हीं चार एजेंसियों के इर्द-गिर्द 2024 का चुनाव घूम रहा है. कारण, एक तरफ बीजेपी कह रही है कि जांच एजेंसियां स्वतंत्र रूप से काम करते हुए भ्रष्टाचारियों पर नकेल कस रही हैं तो दूसरी ओर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सत्ताधारी पार्टी एजेंसियों का इस्तेमाल विपक्ष की कमर तोड़ने के लिए कर रही है. इसको लेकर चुनाव आयोग के पास पहुंचकर टीएमसी के नेताओं ने जो शिकायत दी है, उसमें कहा है कि तुरंत चुनाव आयोग जांच एजेंसियों के निदेशकों को बदल दें, क्योंकि इनकी वजह से चुनाव में लेवल प्लेइंग फील्ड यानी निष्पक्षता नहीं हो पा रही है.
जांच एजेंसियों के खिलाफ प्रदर्शन क्यों?
अब बात आती है कि आखिर ईडी, सीबीआई, एनआईए और आयकर विभाग के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहा है. तो ये समझने के लिए पहले सोमवार की बड़ी खबरों पर ध्यान देने की जरूरत है. कारण, सोमवार को ईडी ने दिल्ली के शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी के विधायक दुर्गेश पाठक को पूछताछ के लिए बुलाया. सोमवार को ही ईडी ने केजरीवाल के सहायक विभव को बुलाकर पूछताछ की.
सोमवार को ही उत्तर पश्चिम मुंबई से उद्धव की पार्टी के उम्मीदवार अमोल कीर्तिकर को खिचड़ी घोटाले में पेश होने के लिए ईडी ने बुलाया. इन सभी मामलों को और इससे पहले भी जांच एजेंसियों की कार्रवाई को लेकर ममता बनर्जी समेत कई दलों के नेता यही आरोप लगाते आ रहे हैं कि चुनाव के बीच और चुनाव के बाद विपक्ष को गिरफ्तार करके खत्म करने में सत्ता जुटी है.
अभिषेक बनर्जी ने बीजेपी पर साधा निशाना
अभिषेक बनर्जी ने राज्यपाल से मुलाकात के बाद कहा कि जिस तरह से महिला सांसदों और नेताओं को घसीटा गया, ये लोकतंत्र की हत्या है. इसके लिए चुनाव आयोग जिम्मेदार है. मशीनरी अब चुनाव आयोग के अधीन है, इसलिए मैं ऐसा कह रहा हूं. हमारे नेता शांति से बैठे थे, उनके पास हथियार थे? हम चुनाव आयोग के पास गए और उनसे कहा कि सरकार को अपना काम करने दें और जलपाईगुड़ी में तूफान में नष्ट हुए घरों का पुनर्निर्माण करें. हम मंजूरी के लिए गए. हम यह भी चाहते थे कि एनआईए एसपी डीआर सिंह, जिन्होंने आचार सहिंता लागू होने के बाद एक बीजेपी नेता से उनके आवास पर मुलाकात की थी, उन्हें क्यों नहीं हटाया गया? बीजेपी की शिकायत पर ही बदले जा सकते हैं अधिकारी? जब हम सबूत दिखाते हैं तो कुछ नहीं?
'एनआईए के डायरेक्टर को क्यों नहीं बदला जाएगा?'
उन्होंने कहा कि जो लोग सोचते हैं कि वोट से पहले एनआईए और ईडी का इस्तेमाल करेंगे, एनआईए वोट देगी? वे 2 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने के लिए सक्षम नहीं है. इन दोनों सीटों पर ईडी और एनआईए निदेशक को खड़ा कर दीजिए. राज्यपाल से अनुरोध किया है कि वे चुनाव आयोग को इस संबंध में लिखें. अगर बिना सबूत के बीजेपी के कहने पर बंगाल के डीजी को बदला जा सकता है तो एनआईए के डायरेक्टर को क्यों नहीं बदला जाएगा? बंगाल के राज्यपाल ने कहा है कि वह मंगलवार को इस मामले को चुनाव आयोग के समक्ष उठाएंगे. वह निष्पक्ष खेल में विश्वास करते हैं.