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शिवपाल ने बदायूं सीट पर आगे क्यों किया बेटे आदित्य का नाम? सपा नेता ने खुद बताई वजह

अब सार्वजनिक तौर पर शिवपाल यादव हर सभा में यह ऐलान कर रहे हैं कि आधिकारिक तौर पर सपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया हो, लेकिन आदित्य ही चुनाव लड़ेंगे और 15 अप्रैल यानि सोमवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे.

शिवपाल यादव और उनके बेटे आदित्य यादव (फाइल फोटो) शिवपाल यादव और उनके बेटे आदित्य यादव (फाइल फोटो)
कुमार अभिषेक
  • बदायूं,
  • 14 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 4:56 AM IST

लोकसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आ गई है. सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य यूपी में इस बार चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है. अगर बात की जाए बदायूं की तो यहां का चुनावी समीकरण रोचक है. अखिलेश यादव ने इस बार धर्मेंद्र यादव से यह सीट छीन ली. हालांकि पहले उनके नाम का ऐलान किया, लेकिन उनका टिकट काट दिया और बदायूं से चाचा शिवपाल के नाम का ऐलान कर दिया. शिवपाल यादव को इस बात की भनक भी नहीं थी कि अखिलेश ने उन्हें बदायूं से चुनाव लड़ाने का ऐलान कर चुके हैं. खैर जब नाम का ऐलान हो गया तो शिवपाल बदायूं चले आए. कुछ दिनों तक वह इस सीट पर जीत की थाह लेते रहे, लेकिन कुछ दिनों तक बदायूं सीट को समझने के बाद उन्होंने खुद के चुनाव लड़ने से मना कर दिया और अपनी जगह अपने बेटे आदित्य यादव को आगे कर दिया.

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अब सार्वजनिक तौर पर शिवपाल यादव हर सभा में यह ऐलान कर रहे हैं कि आधिकारिक तौर पर सपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया हो, लेकिन आदित्य ही चुनाव लड़ेंगे और 15 अप्रैल यानि सोमवार को अपना नामांकन दाखिल करेंगे. यहां तक कि आदित्य यादव के नाम का पर्चा भी खरीदा जा चुका है और बहुत ही तामझाम से 15 अप्रैल को आदित्य यादव का नामांकन दाखिल होगा.

बीजेपी प्रत्याशी दुर्विजय सिंह ने आजतक से बातचीत में कहा कि अखिलेश यादव ने अपने चाचा को यहां निपटा दिया है, चाचा शुरू में तो जीतने आए थे, लेकिन जब उन्हें जमीनी हकीकत का एहसास हुआ तब वह भाग खड़े हुए और अपनी जगह अपने बेटे को आगे कर दिया. अब उनका बेटा आदित्य बलि का बकरा बन गया है.

पिता-पुत्र बदायूं में जीत के लिए बहा रहे पसीना

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बदायूं में अपनी जीत के लिए शिवपाल यादव और आदित्य यादव दोनों खूब पसीना बहा रहे हैं. एक गांव में शिवपाल यादव छोटी-छोटी सभाएं करते मिल रहे हैं, तो दूसरे गांव में आदित्य यादव. आखिर अपनी जगह अपने बेटे को शिवपाल ने क्यों आगे किया और अखिलेश यादव ने अभी तक आदित्य यादव का नाम आधिकारिक तौर पर क्यों आगे नहीं बढ़ाया, इस पर शिवपाल यादव कहते हैं कि यह उनकी रणनीति का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि जब अखिलेश यादव चुनाव लड़े थे, तो 26 साल के थे. धर्मेंद्र चुनाव लड़े, तो वह 28 साल के थे. उनका बेटा भी इसी उम्र का है. ऐसे में युवाओं की मांग पर वह अपनी जगह अपने बेटे को आगे कर रहे हैं. हालांकि शिवपाल यादव कहते हैं कि 15 तारीख को यह तय होगा कि वह चुनाव लड़ेंगे, आदित्य चुनाव लड़ेंगे या फिर धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ेंगे. शिवपाल के सूत्रों के मुताबिक ज्यादा परिवारवाद का आरोप ना लगे, इसलिए आदित्य यादव के नाम के ऐलान को रोक दिया गया है, जबकि पर्चा भरने को हरी झंडी दे दी गई है. यहां तक कि आदित्य के नाम का फॉर्म बी भी पहुंच गया है. परिवारवाद के सवाल पर शिवपाल कहते हैं कि यह परिवारवाद नहीं, बल्कि परिवार का संघर्ष है.

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परिवारवाद पर क्या बोले आदित्य?

आदित्य यादव भी लगातार गांव-गांव घूम रहे हैं और अपने लिए वोट मांग रहे हैं. आदित्य यादव मुलायम सिंह यादव के नाम पर श्रद्धांजलि का वोट अपने लिए मांग रहे हैं, लेकिन परिवारवाद के आरोप पर कहते हैं कि परिवार की कमाई परिवार में ही बंटती है. इसलिए अगर उन्हें टिकट मिला है, तो इसे परिवारवाद नहीं कह सकते.

सपा का गढ़ मानी जाती है बदायूं सीट

दरअसल बदायूं की दो विधानसभा ऐसी हैं जो सपा को अकेले निर्णायक बढ़त दे देती हैं. एक गुन्नौर विधानसभा और दूसरी सहसवान विधानसभा. यहां 20 लाख वोट में यादव और मुसलमान ही 8 लाख से ज्यादा हैं. ऐसे में सपा हमेशा इस समीकरण से जीतती रही है, इस बार भी तमाम प्रत्याशी गुन्नौर और सहसवान में जोर लगा रहे हैं. बीजेपी अगर गन्नौर में समाजवादी पार्टी को कम अंतर पर रोक लेती है और सहसवान में लगभग बराबर पर आती है, तब बीजेपी बदायूं सीट जीत सकती है, लेकिन अगर गुन्नौर ने सपा को निर्णायक बढ़ाते दी तो बदायूं की सीट बीजेपी की फंस सकती है, इसलिए चाहे बीजेपी हो या सपा, दोनों ने अपना पूरा जोर इन्हीं सीटों पर लगाया है. 

गुन्नौर और सहसवान विधानसभा का सियासी गणित

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गुन्नौर यादव बहुल माना जाता है, जिसमें 60 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी यादव बिरादरी की है. उसके बाद मुस्लिम बिरादरी है. बात सहसवान विधानसभा की करें तो यहां मुसलमान की तादाद ज्यादा है, ऐसे में बीजेपी के लिए इस समीकरण को बदायूं में रोकना मुश्किल भरा काम है. बीजेपी के प्रत्याशी जो कि संगठन के बड़े नेता हैं. ब्रज के क्षेत्रीय अध्यक्ष हैं और जिनके अंदर 19 जिले आते हैं, वह इस बार बीजेपी के प्रत्याशी हैं. उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी और सीएम योगी के नाम पर सारे समीकरण ध्वस्त हो जाएंगे और बीजेपी दूसरी बार बदायूं में जीतेगी.

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