
MP Election 2023: मध्य प्रदेश में चुनावी माहौल चल रहा है. विधानसभा चुनाव के मैदान में उतरे प्रत्याशी जनसंपर्क में जुटे हुए हैं. चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अलग-अलग ढंग से मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए जनसंपर्क कर रहे हैं. लेकिन इसी बीच चंबल की गलियों में एक ऐसा युवा चुनावी बिसात बिछा रहा है, जो अपने राजनीतिक कौशल का लोहा इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी में भी मनवा चुका है. इस युवा का नाम चौधरी भरत सिंह चतुर्वेदी है. जो कि इन दोनों अपने पिता चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी के लिए भिंड की गलियों में लोगों के बीच पहुंच रहे हैं. इंग्लैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में अंग्रेजों को किया परास्त...
भरत सिंह चतुर्वेदी वह पहले युवा है जिन्होंने चंबल की धरती से इंग्लैंड पहुंचकर वहां की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में अंग्रेजों को परास्त किया. दरअसल, भरत सिंह चतुर्वेदी अपनी शिक्षा के लिए इंग्लैंड की स्कॉटलैंड में स्थित एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में पहुंचे थे. यहां जब छात्र संघ के चुनाव हुए तो भरत सिंह चतुर्वेदी ने इस चुनाव में शामिल होकर अन्य प्रत्याशियों को परास्त किया और एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में छात्र संघ प्रेसिडेंट चुने गए. साल 2017 में भरत सिंह चतुर्वेदी प्रेसिडेंट चुने गए थे. दूसरी साल वे स्टूडेंट ट्रस्टी बने. इस तरह उन्होंने न केवल भारत देश बल्कि चंबल की माटी का गौरव बढ़ाया.
अब भिंड की गलियों में पिता के लिए कर रहे हैं जनसंपर्क
इंग्लैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में अपनी कुशल राजनीति का लोहा मनवा चुके भरत सिंह चतुर्वेदी अब भिंड की गलियों में अपने पिता के लिए जनसंपर्क करते हुए नजर आते हैं. भरत सिंह चतुर्वेदी के पिता राकेश सिंह चतुर्वेदी भिंड विधानसभा से चुनाव मैदान में है. कांग्रेस ने उन्हें अपना प्रत्याशी बनाया है. पिता को चुनाव मैदान में देखकर बेटे भरत सिंह चतुर्वेदी ने चुनाव अभियान की कमान संभाल ली है.
बाबा चौधरी दिलीप सिंह चतुर्वेदी से मिली राजनीतिक प्रेरणा
भरत सिंह चतुर्वेदी ने aajtak.in से हुई बातचीत में बताया कि उन्हें राजनीति की प्रेरणा अपने बाबा दिलीप सिंह चतुर्वेदी से मिली थी. दिलीप सिंह चतुर्वेदी साल 1955 में लखनऊ यूनिवर्सिटी में छात्र संघ के प्रेसिडेंट चुने गए थे. यह बात भरत सिंह चतुर्वेदी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी. इसके साथ ही भरत सिंह चतुर्वेदी के पिता राकेश सिंह चतुर्वेदी भिंड विधानसभा से अब तक छह बार चुनाव लड़ चुके हैं. वह दिग्विजय सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. राजनीतिक समझ और राजनीतिक कौशल भरत सिंह चतुर्वेदी को विरासत में मिला और यही वजह रही कि इंग्लैंड की एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में भरत सिंह चतुर्वेदी ने इस राजनीतिक कौशल का परिचय भी दिया.
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी और भिंड के मुद्दों में है काफी अंतर
भरत सिंह चतुर्वेदी बताते हैं कि एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में वे जिन मुद्दों को लेकर इलेक्शन में खड़े हुए थे, वो मुद्दे भिंड से काफी अलग हैं. भरत सिंह चतुर्वेदी ने बताया कि भिंड के प्रमुख मुद्दे बेरोजगारी, पलायन और असुरक्षा है जो कि एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के मुद्दों से काफी अलग हैं. भिंड के मुद्दों को देखते हुए भरत सिंह चतुर्वेदी युवाओं को अपने साथ जोड़कर भिंड की परेशानियों को समझ रहे हैं.
बुजुर्ग को देखकर छू लेते हैं पैर और युवाओं को देखकर लगा लेते हैं गले
एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी में चुनाव प्रचार का तरीका अलग होता था. लेकिन भिंड में भरत सिंह चतुर्वेदी यहां के परंपरागत तरीके ही अपना रहे हैं. वह जब भी किसी बुजुर्ग को देखते हैं तो उनके पैर छू लेते हैं और युवा सामने आता है तो उसे गले लगा लेते हैं. भरत सिंह चतुर्वेदी बताते हैं कि भिंड में जनसंपर्क का भी एक अलग तरीका है और वह इसे बरसों से देखते आ रहे हैं इसलिए उन्हें इसकी पूरी समझ है.
अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर अभी नहीं लिया निर्णय
भरत सिंह चतुर्वेदी से जब उनके राजनीतिक भविष्य के बारे में बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर अभी कोई निर्णय नहीं लिया है. भरत सिंह चतुर्वेदी बताते हैं कि वह एक सेवक की तरह ही कार्य करते रहना चाहते हैं, उन्होंने कभी अपने पिता से भी राजनीति को लेकर बात नहीं की है. वह हमेशा स्पोर्ट्स और अन्य विषयों पर अपने पिता से बातचीत करते रहे हैं.