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तल्खी भी...तरफदारी भी, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच अजब-गजब रही है सियासी केमिस्ट्री

मध्य प्रदेश की सियासत में दिग्विजय और कमलनाथ के बीच की केमिस्ट्री को लेकर बहस छिड़ी है. कमलनाथ के कुर्ते फाड़ने वाले बयान को लेकर शुरू हुई बहस के बीच चर्चा उनकी दिग्विजय के साथ केमिस्ट्री को लेकर भी चर्चा हो रही है. मध्य प्रदेश के दो दिग्गजों के बीच केमिस्ट्री कैसी रही है?

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह (फाइल फोटो) कमलनाथ और दिग्विजय सिंह (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 10:44 AM IST

मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान एक वीडियो सामने आया. इस वीडियो में मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ टिकट नहीं मिलने से नाराज नेता के समर्थकों से कह रहे थे- जाकर दिग्विजय सिंह और उनके बेटे के कपड़े फाड़ो. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने भी ये वीडियो एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर दिया. चुनावी मौसम में सामने आया ये वीडियो तेजी से वायरल हो गया और सूबे की सियासत में सियासी बवाल हो गया. हंगामा खड़ा हुआ तो कांग्रेस का वचन पत्र जारी करते हुए कमलनाथ ने इसे लेकर सफाई भी दी.

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दिग्विजय सिंह के साथ उनकी नोकझोंक भी खबरों में रही, खूब सुर्खियां बनीं. मध्य प्रदेश चुनाव के लिए वचन पत्र जारी करने के कार्यक्रम में दोनों नेताओं की तल्खी भी नजर आई. कमलनाथ ने ये भी कहा कि गाली खाने के लिए उन्होंने दिग्विजय सिंह को पावर ऑफ अटॉर्नी दी हुई है. वहीं, दिग्विजय ने कहा कि विष पीने को भी तैयार हूं. हालांकि, दिग्विजय ने कमलनाथ से ये सवाल जरूर पूछ लिया कि फॉर्म ए और बी पर किसके दस्तखत होते हैं. ये सब हुए चार दिन बीत चुके हैं लेकिन इसे लेकर चर्चा थम नहीं रही.

चर्चा के केंद्र में सवाल एक- कि क्या कमलनाथ और दिग्विजय के बीच सब ठीक है? दोनों ही नेता कई मौकों पर ये कह चुके हैं कि उनके बीच सियासी से अधिक पारिवारिक रिश्ते हैं. दिग्विजय सिंह, कमलनाथ से तनाव की खबरों पर कई बार ये कह चुके हैं कि हमारी दोस्ती में कोई दरार नहीं आएगी. अब कहा ये भी जाता है कि सियासत में कोई किसी का सगा नहीं होता. समय-समय पर ये दिखा भी है. लेकिन दिग्विजय के दावे को आसानी से खारिज कर देना भी मुश्किल है.

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दरअसल, कमलनाथ और दिग्विजय की केमिस्ट्री भी बहुत अजब-गजब रही है. दोनों नेताओं के रिश्तों में तल्खी रही है तो तरफदारी भी. दिग्विजय सिंह ने जहां साल 1971 में राघौगढ़ नगरपालिका के अध्यक्ष का चुनाव लड़कर सियासत में कदम रखा और 1977 में राघौगढ़ से पहली बार विधानसभा पहुंचे. वहीं, कमलनाथ के सियासी सफर का आगाज साल 1980 में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने से हुआ. कमलनाथ जब पहली बार चुनाव लड़ रहे थे, दिग्विजय सिंह दूसरी बार विधानसभा पहुंचने की जुगत में थे.

कमलनाथ के सहयोग से ही CM बने थे दिग्विजय 

कमलनाथ दिल्ली तो दिग्विजय मध्य प्रदेश की सियासत में पैर जमाते चले गए. साल 1993 के चुनाव में कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में आई. तब केंद्र में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. चुनाव नतीजों के बाद ये मंथन चल रहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी किसे दी जाए. पार्टी पर नरसिम्हाराव की ही पकड़ मजबूत थी. तब मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की रेस में तीन नाम थे- माधवराव सिंधिया, श्यामाचरण शुक्ल और दिग्विजय सिंह. सिंधिया ने श्यामाचरण का समर्थन कर दिया जिसके बाद दो ही दावेदार बचे.

कहा जाता है कि पीवी नरसिम्हा राव ने शुक्ल के नाम पर मुहर भी लगा दी थी. लेकिन तभी कमलनाथ ने उनको विधायकों की राय जानने और उसके अनुरूप फैसला लेने की सलाह दे दी. नरसिम्हाराव को कमलनाथ की ये सलाह पसंद आई. उन्होंने इस कार्य के लिए कमलनाथ को ही जिम्मेदारी सौंप दी. कमलनाथ की मौजूदगी में सीएम के लिए विधायकों की राय ली गई. अधिकतर विधायकों ने दिग्विजय के नाम का समर्थन कर दिया.

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कमलनाथ ने ही इसकी जानकारी नरसिम्हाराव को दी और नेतृत्व की मुहर के बाद दिग्विजय सिंह 1993 में पहली बार मध्य प्रदेश के मु्ख्यमंत्री बने और 2003 तक इस पद पर रहे. इसके लिए कमलनाथ को श्रेय दिया गया. साल 2018 के चुनाव में कमलनाथ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े और जीते तो उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में दिग्विजय का अहम योगदान रहा.

दिग्विजय ने 2018 में चुकाया 1993 का 'सियासी कर्ज'

कहा तो ये भी गया कि दिग्विजय ने 1993 का सियासी कर्ज चुकाया है. दरअसल, 2018 के चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते कमलनाथ सीएम के दावेदार थे तो ज्योतिरादित्य सिंधिया भी रेस में थे. दिल्ली में कई दौर की मैराथन बैठक हुई लेकिन सीएम पर सहमति नहीं बन पा रही थी. ऐसे में दिग्विजय ने नेतृत्व के सामने कमलनाथ का समर्थन कर दिया. दिग्विजय ने राहुल गांधी की मौजूदगी में ये कहा कि सिंधिया के पास अभी बहुत समय है. कमलनाथ के नाम पर नेतृत्व की मुहर लग गई.

कमलनाथ सरकार की विदाई के बाद भी मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दिग्विजय सिंह के रिश्तों में तनाव की खबरें आईं. दिग्विजय ने इन खबरों को खारिज किया था. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद भी कमलनाथ और दिग्विजय के बीच ऐसी ही नोकझोंक नजर आई थी. कमलनाथ ने मंच से नाराजगी जताते हुए कहा था कि दिग्विजय ने अपना चेहरा खूब दिखाया. दरअसल, कमलनाथ का इशारा दिग्विजय की सक्रियता की ओर था.

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कमलनाथ को दूसरी बार CM बनाने के लिए लगा रहे जोर

पिछले दिनों जब ये बहस छिड़ी थी कि कांग्रेस की ओर से सीएम के लिए कमलनाथ चेहरा होंगे या कोई और? पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव और विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे अजय सिंह राहुल ने कहा था कि चुनाव बाद विधायक और आलाकमान तय करेगा कि सीएम कौन होगा. तब भी दिग्विजय ने खुलकर कमलनाथ का समर्थन करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री के लिए वही पार्टी का चेहरा हैं. दिग्विजय सिंह, कमलनाथ को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनाने के लिए एक्टिव भी हैं, तहसील स्तर पर दौरे भी किए. 

कहा तो ये भी जा रहा है कि दिग्विजय, कमलनाथ के नेतृत्व में अपने बेटे जयवर्धन सिंह को सियासत में सेट करने की संभावनाएं देख रहे हैं. वजह 19993 का कर्ज हो या बेटे को सेट कराने की कोशिश, दिग्विजय खुलकर कमलनाथ के साथ नजर आ रहे हैं. ताजा कुर्ताफाड़ बयानों का असर अब कितना पड़ता है, ये देखने वाली बात होगी.

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