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MP में सपा खुद कन्फ्यूज? अखिलेश ने धड़ाधड़ उतारे कैंडिडेट, डिंपल दे गईं चुनाव बाद कांग्रेस के समर्थन का संकेत 

मध्य प्रदेश चुनाव में सीट बंटवारे को लेकर सपा और कांग्रेस के नेताओं की बयानी जंग के बीच अब डिंपल यादव ने अलग ही संकेत दिए हैं. एक तरफ जहां अखिलेश यादव ने धड़ाधड़ कैंडिडेट उतारे, वहीं अब डिंपल के बयान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या एमपी में सपा खुद कनफ्यूज है?

सपा सांसद डिंपल यादव और अखिलेश यादव (फाइल फोटोः ट्विटर) सपा सांसद डिंपल यादव और अखिलेश यादव (फाइल फोटोः ट्विटर)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:30 PM IST

मध्य प्रदेश के चुनावी रण में इंडिया गठबंधन के तीन घटक दल एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से लेकर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव तक कांग्रेस पर हमलावर हैं. कांग्रेस और सपा नेताओं के बीच बढ़ती तल्खी के बीच अब मैनपुरी से सांसद डिंपल यादव का बयान आया है. 

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डिंपल यादव ने कहा है कि इंडिया गठबंधन में कोई दरार नहीं है. उन्होंने मध्य प्रदेश चुनाव में अपनी पार्टी की भूमिका को लेकर कहा है कि जरूरत पड़ने पर गठबंधन में समाजवादी पार्टी ही ईमानदारी से सबका साथ देती है. ऐसे समय में जब दोनों दलों के नेताओं की जुबानी जंग के कारण इंडिया गठबंधन के भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं, डिंपल यादव के इस बयान के सियासी निहितार्थ तलाशे जाने लगे हैं.

डिंपल के बयान में क्या संदेश

डिंपल यादव ने एक तरफ सपा के सबका साथ देने की प्रवृत्ति बताई है, दूसरी तरफ 'ईमानदारी से' और 'जरूरत पड़ने पर' जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल भी किया है.

मैनपुरी से सांसद हैं डिंपल यादव (फाइल फोटो)

वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि डिंपल यादव का ये बयान कठोरता और उदारता, दोनों का मिश्रण है. डिंपल ने ये भी साफ किया है कि इंडिया गठबंधन में कोई क्रेक नहीं आया है. इसका गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. जरूरत पड़ी तो सपा, कांग्रेस का समर्थन करने के लिए तैयार है.

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सपा की नरमी के पीछे क्या

सपा के सुर में कांग्रेस को लेकर आई इस नरमी के पीछे क्या वजह है? सवाल ये भी उठ रहे हैं. सपा के रुख में आए इस बदलाव के पीछे दो प्रमुख वजहें बताई जा रही हैं. एक- गठबंधन में शामिल टीएमसी, जेडीयू, आम आदमी पार्टी जैसे दलों का मुश्किलों से घिरा होना और दूसरा- एमपी में गठबंधन नहीं हो पाने के बाद सपा का अपनी लकीर खींच लेना.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

कहा जा रहा है कि कांग्रेस के पास सपा और आम आदमी पार्टी जैसे दलों को 6 से 10 सीटें देकर अपने साथ रखने, एक उदाहरण सेट करने का अच्छा मौका था. इससे यूपी जैसे राज्य में बारगेन पावर भी बढ़ती और पार्टी मध्य प्रदेश का उदाहरण देकर अधिक सीटों की मांग भी कर सकती थी लेकिन उसने ये मौका गंवा दिया है.

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अब इन दलों को भी अपनी मजबूत पकड़ वाले राज्यों में अपने मन की करने का बहाना मिल गया है. सपा ने लोकसभा चुनाव में यूपी की 65 सीटों पर लड़ने की बात कर अपनी लकीर खींच भी दी है.

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क्या सपा में कनफ्यूजन है?

अखिलेश यादव ने 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में धड़ाधड़ 74 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए. मध्य प्रदेश की चुनावी जनसभाओं में कांग्रेस को वोट नहीं देने की अपील कर रहे हैं, वहीं उनकी ही पत्नी चुनाव के बाद कांग्रेस का समर्थन करने के संकेत दे रही हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या मध्य प्रदेश को लेकर सपा कनफ्यूज है?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटोः पीटीआई)

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि ये कनफ्यूजन नहीं, सपा की रणनीति है. सपा जानती है कि उसके सभी 74 उम्मीदवार चुनाव जीत जाएं तो भी वह अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं आएगी. गठबंधन के लिए बीजेपी और कांग्रेस के अलावा कोई तीसरा विकल्प है नहीं. वह बीजेपी से गठबंधन कर नहीं सकते. फिर जाएंगे कहां? कांग्रेस का ही विकल्प बचता है. डिंपल ने वही बताया है.

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विकल्प का अभाव तो है ही, सपा की नरमी के पीछे एक वजह छोटे दलों के अलग-अलग मुश्किलों में फंसे होने की वजह से कमजोर स्थिति भी बताई जा रही है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब घोटाले में पूछताछ के लिए ईडी समन कर चुकी है. हेमंत सोरेन भी केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना कर रहे हैं. नीतीश कुमार महिलाओं को लेकर बयान पर घिर गए हैं. ममता बनर्जी की पार्टी भी कैश फॉर क्वेरी केस के बाद बैकफुट पर है.

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मध्य प्रदेश में क्या है बहुमत का जादुई आंकड़ा

मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. सूबे की सभी 230 सीटों पर अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए मतदाता 17 नवंबर को मतदान करेंगे. चुनाव नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे. बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा 116 सीटों का है. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस 114 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन बहुमत के लिए जरूरी 116 सीट के जादुई आंकड़े से पीछे रह गई थी. तब सपा एक सीट जीत सकी थी और पार्टी ने कांग्रेस का समर्थन किया था.

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