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Exit Poll: साइकिल, हाथी और आरी, कमलनाथ के ड्रीम पर भारी... मध्य प्रदेश में शिवराज ने कैसे खिला दिया कमल?

मध्य प्रदेश में बीजेपी बंपर वापसी कर सकती है. राज्य में 18 साल से बीजेपी की सरकार है. 2018 में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा सीटें जीती थीं और छोटे दलों के सहयोग से सरकार बनाई थी. हालांकि, ढाई साल बाद सत्ता का उलटफेर हुआ और कमलनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद बीजेपी ने सरकार बनाई और उन्हीं छोटे ने बीजेपी को भी समर्थन देकर चौंका दिया था. इस बार चुनाव में विपक्षी एकजुटता की चर्चा के बीच कांग्रेस ने सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.

MP विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा ने कांग्रेस-बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाई है. MP विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा ने कांग्रेस-बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाई है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:10 PM IST

India Today Axis My India Exit Poll: मध्य प्रदेश में बीजेपी क्लीन स्वीप करने जा रही है. यहां चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार फिर सत्ता में वापसी कर सकते हैं. इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी मध्य प्रदेश में जबरदस्त जनादेश के लिए तैयार है. हालांकि, नतीजे 3 दिसंबर को आएंगे, लेकिन उससे पहले एग्जिट पोल के रुझान ने सियासी समीकरण और गुणा-भाग की चर्चाओं को तेज कर दिया है. कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश चुनाव में I.N.D.I.A गठबंधन में फूट होने से कांग्रेस और कमलनाथ को जबरदस्त नुकसान पहुंच रहा है. वहीं, बहुजन समाज पार्टी (चुनाव चिह्न हाथी) और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (चुनाव चिह्न आरी) ने रही-सही कसर पूरी कर दी. इन छोटे दलों के अलग-अलग चुनाव लड़ने से बीजेपी को फायदा पहुंचते देखा जा रहा है. जानिए मध्य प्रदेश को लेकर क्या संदेश दे रहा है एग्जिट पोल...

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राज्य में 230 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 116 सीटों की जरूरत होगी. इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल के अनुसार, मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने जा रही है. बीजेपी 140-162 सीटें जीत सकती है. जबकि कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही कांग्रेस 68-90 सीटों के अनुमान के साथ काफी पीछे है. बीजेपी के लिए औसत सीट अनुमान 152 है और कांग्रेस के लिए 76 है.

'शिवराज ने कयासों को किया दरकिनार?'

ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता विरोधी लहर के मात दे दी है. सर्वे में शामिल सबसे ज्यादा 36 प्रतिशत लोगों ने मुख्यमंत्री पद के लिए शिवराज सिंह को पसंद किया है. लोकप्रियता में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ काफी पीछे हैं. 30 प्रतिशत लोगों ने कमलनाथ को पसंद किया है. अन्य एग्जिट पोल ने भी मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत की संभावना जताई है. हालांकि, पोलस्ट्रैट सर्वे में कांग्रेस को बीजेपी पर थोड़ी बढ़त मिलने का अनुमान लगाया गया है. पांच एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी को 130 सीटें और कांग्रेस को 98 सीटें मिलने की संभावना है.

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एग्जिट पोल कहते हैं कि मध्य प्रदेश चुनाव में महिलाओं ने बीजेपी को जमकर वोट किया है. बीजेपी की बढ़त में महिला केंद्रित योजनाओं का योगदान रहा है. ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि बीजेपी को पुरुषों के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा महिलाओं ने वोट किया है.

शिवराज ने इस चुनाव में सबसे ज्यादा मेहनत की!

माना जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान की मेहनत रंग लाई है. उन्होंने इस बार पिछले चुनावों से ज्यादा प्रयास किए हैं. यह बात उन्होंने खुद स्वीकार की है. यहां बीजेपी ने चुनाव में सीएम फेस भी घोषित नहीं किया था. शिवराज ने जमीन पर उतरकर काम किया. ताबड़तोड़ सभाएं और रोड शो किए. हर वर्ग को साधने की कोशिश की. महिलाओं को ध्यान में रखकर योजनाएं लेकर आए और जमीन पर उतारीं. खासतौर पर लाडली बहना योजना ने चर्चा बटोरी. एग्जिट पोल आने के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने खुद कहा, कोई कांटे की टक्कर नहीं है. जो कांटा था, वो लाडली बहना ने निकाल दिया. पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की सभाएं बीजेपी को प्रचंड बहुमत की ओर ले गई हैं.

चुनाव में सपा ने खुलकर कांग्रेस के खिलाफ खोला मोर्चा

पांच राज्यों में चुनाव से पहले विपक्षी एकजुटता का दम भरने वाले प्रमुख दल अब अलग-थलग पड़ गए हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस से सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर बात नहीं बनने पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुलकर मोर्चा संभाला और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने और सपा (चुनाव चिह्न साइकिल) उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अखिलेश ने कांग्रेस नेताओं को धोखेबाज तक बताया. कमलनाथ और दिग्विजय पर खूब जुबानी तीर छोड़े. कांग्रेस से सावधान किया और चुनाव में सबक सिखाने की अपील की. हालांकि, अखिलेश उतना ही मुखर बीजेपी को लेकर भी देखे गए. लेकिन, इसका असर कांग्रेस पर पड़ा है. तीन महीने तक पटना, बेंगलुरु और मुंबई में पहले विपक्षी गठबंधन की हवा और फिर राज्यों के चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ हमलावर होने से सपा-कांग्रेस-आम आदमी पार्टी तीनों दलों को नुकसान पहुंचने की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है.

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'सपा ने इस बार उतारे 74 उम्मीदवार'

बताते चलें कि मध्य प्रदेश चुनाव में सपा ने धड़ाधड़ 74 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. सपा का खास फोकस मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड और बघेलखंड (विंध्य) इलाके में रहा है. यहां सबसे ज्यादा उम्मीदवार उतारे गए. कई सीटों पर सपा को बीजेपी या कांग्रेस के साथ सीधे लड़ाई में देखा गया है. मध्य प्रदेश की निवाड़ी सीट हो या छतरपुर की बिजावर सीट... सपा पिछले चुनाव की तरह ही दमखम के साथ चुनावी मैदान में देखी गई. सपा ने उन सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जहां समीकरण के लिहाज से पार्टी मजबूत स्थिति में देखी गई.

'जनाधार रखने वाले नेताओं को दी वरीयता'

जानकार कहते हैं कि सपा के साथ बढ़ी कड़वाहट का नफा-नुकसान का आकलन का कांग्रेस नेता भी ठीक से नहीं कर पाए हैं. क्योंकि सपा ने ऐसे उम्मीदवार के चयन में इस बात पर जोर दिया, जिनका अपना खुद का भी जनाधार है. उन सीटों पर पार्टी भले ही जीत ना दर्ज कर सके, लेकिन फाइट में बनी रहे. ताकि आने वाले समय में संगठन को भी मजबूती दी जा सके. इतना ही नहीं, सपा ने बीजेपी और कांग्रेस के रूठे नेताओं को भी टिकट देने में गुरेज नहीं की. कांग्रेस से नाराज मिर्ची बाबा को शिवराज सिंह के खिलाफ बुधनी से उतारकर चौंका दिया.

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'बसपा गठबंधन भी नए समीकरण बना सकता है'

इसी तरह, बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने भी कांग्रेस और बीजेपी से दूरी बनाई. राज्य में आदिवासी समाज को साधने के लिए गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) से हाथ मिलाया और अलायंस में चुनाव लड़ा. राज्य में 22 प्रतिशत आदिवासी वोट हैं. बसपा ने 174 सीटों पर चुनाव लड़ा है. आदिवासी इलाकों में सक्रिय जीजीपी ने भी 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं. एग्जिट पोल नतीजों में बसपा गठबंधन को छह फीसदी वोट शेयर मिलते दिख रहा है. हालांकि, सीटों की बात की जाए तो 0 से 2 के बीच उम्मीदवार जीतने की संभावना है. पिछले चुनाव में भी बसपा के दो उम्मीदवार जीते थे. बसपा और जीजीपी गठबंधन मध्य प्रदेश में तीसरी ताकत के रूप में उभरा है. बसपा-जीजीपी गठबंधन और अन्य के वोट शेयर को जोड़ा जाए तो यह बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता की लड़ाई में नए समीकरण बनने की संभावना जता रहा है.

'बीजेपी को पहुंच रहा है सीधा फायदा'

इस चुनाव में बसपा ने अपने अधिकांश उम्मीदवार ग्वालियर चंबल-बुंदेलखंड और विंध्य इलाके में उतारे हैं. महाकौशल-निमाड़ के हिस्से में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के उम्मीदवार दमखम के साथ चुनावी मैदान में देखे गए. बसपा प्रमुख मायावती ने खुद चुनावी सभाएं कीं और दलित-मुस्लिम वोटर्स को साधने में कसर नहीं छोड़ी. बताते चलें कि मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. राज्य की 47 सीटें आदिवासी समाज के लिए आरक्षित हैं. जीजीपी ने इन सभी सीटों पर गठबंधन में अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. इससे आदिवासी वोटों का बंटना तय माना जा रहा था. एग्जिट पोल के अनुमान देखें तो बसपा-सपा, निर्दलीय और छोटे दलों में वोट बंटने से सीधा फायदा बीजेपी को मिलता नजर आ रहा है. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी और जनता दल यूनाइटेड ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं. 

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कांग्रेस को बागियों से भी नुकसान की संभावना...

चुनावी रुझान और जानकार कहते हैं कि कांग्रेस ने जिन सिटिंग विधायकों के टिकट काटे थे, वे चुनावी मैदान में पार्टी को भारी पड़ रहे हैं. कांग्रेस ने गोहद सीट से सिटिंग विधायक मेवाराम जाटव का टिकट काटकर केशव देसाई को मौका दिया है. मुरैना में कांग्रेस ने सिटिंग विधायक राकेश मावई का टिकट काटा है. उनकी जगह पर दिनेश गुर्जर को टिकट दिया है. मावई गुर्जर समाज के नेता माने जाते हैं. पार्टी ने नाराजगी को दूर करने के लिए उन्हें मुरैना-श्योपुर लोकसभा का प्रभारी बनाया है. ब्यावरा से कांग्रेस ने उपचुनाव जीतने वाले रामचंद्र डांगी का टिकट काटकर पुरुषोत्तम डांगी को मौका दिया है. कांग्रेस ने ने सेंधवा सीट पर ग्यारसी लाला रावत का टिकट काटकर मोंटू सोलंकी को मौका दिया है.  यहां कांग्रेस ने जयस को साधने की कोशिश की है.  इससे पुराने कांग्रेसियों में थोड़ी नाराजगी भी देखी गई. गुन्नौर से कांग्रेस ने शिवदयाल बागरी का टिकट काटकर जीवन लाल सिद्धार्थ को मौका दिया है. कांग्रेस के इस निर्णय का अंदरखाने में काफी विरोध हुआ.

Exit Poll: किस इलाके में किसे बढ़त मिलने की संभावना

- निमाड़ इलाके में कुल 18 सीट- बीजेपी को 12 (छह का फायदा), कांग्रेस 6 (चार का नुकसान)
- भोपाल इलाके में कुल 20 सीट - बीजेपी को 12 (दो का नुकसान), कांग्रेस को 8 (दो का फायदा)
- बुंदेलखंड इलाके में कुल 26 सीट- बीजेपी को 18 (चार का फायदा, कांग्रेस को 8 (दो का नुकसान)
- बघेलखंड इलाके में कुल 30 सीट, बीजेपी को 18 (6 का नुकसान), कांग्रेस को 11 (पांच का फायदा)
- चंबल के इलाके में कुल 34 सीट- बीजेपी को 19 (12 का फायदा), कांग्रेस को 14 (12 का फायदा
- महाकौशल में कुल 47 सीट, बीजेपी को 32 (14 का फायदा), कांग्रेस को 15 (13 का नुकसान)

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'बुंदेलखंड में बड़ा उलटफेर करते हैं सपा-बसपा' 

मध्य प्रदेश में सपा और बसपा अक्सर बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल इलाके में अपने उम्मीदवार उतारते आई है. इन दोनों पार्टियों का इन इलाकों में बड़ा वोट बैंक है और चुनाव में यह दल गेमचेंजर बनकर उभरते आए हैं. कई बार बाजी पलटते देखी गई है. सपा-बसपा को बीजेपी और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाते देखा जाता है. जानकार कहते हैं कि सपा के अकेले चुनाव लड़ने से यूपी से सटी सीटों पर कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. इस बार आप ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं. AAP का फोकस विंध्य इलाके में है.

'मध्य प्रदेश में क्या है सपा का आधार?'

मध्य प्रदेश का बड़ा हिस्सा यूपी की सीमा (बुंदेखलंड-ग्वालियर-चंबल) से सटा है. राज्य में यादव वोटर्स की संख्या भी 12 से प्रतिशत से ज्यादा है. एमपी के बुंदेलखंड और विंध्य वाले हिस्से में सपा का असर देखा जाता है. सपा से जुड़े लोग कहते हैं कि पिछले चुनाव में हम परसवाड़ा, बालाघाट और गूढ़ सीट पर दूसरे और तीसरे नंबर में आए थे. बुंदेलखंड में कुल 26 सीटें हैं. यूपी के इटावा से सटी सीमा पर बसे भिंड और चंबल संभाग में भी सपा का अच्छा खासा वोट बैंक है. विंध्य रीजन में 30 सीटें हैं यानी सपा सीधे-सीधे 56 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखती है. पार्टी को इस क्षेत्र से उम्मीदें हैं. इससे पहले सपा ने 1998 और 2003 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है. 2003 में सपा के सात उम्मीदवार जीते थे. जबकि 1998 में चार विधायक चुने गए थे. हालांकि, बाद में पार्टी को उतनी बड़ी सफलता नहीं मिली. 2008 और 2018 में एक-एक उम्मीदवार जीता.

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