
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के रुख के साथ INDIA गठबंधन में शामिल दलों ने दूरियां बनाना शुरू कर दिया है. विधानसभा चुनाव में सहयोगी दल कांग्रेस पर नजरअंदाज करने के आरोप लगा रहे हैं. यही वजह है कि समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी के बाद जनता दल यूनाइटेड ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. वहीं, कांग्रेस का कहना है कि ये अलायंस सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए हुआ है. हालांकि, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बयान ने गठबंधन फॉर्मूले पर बात नहीं बनने के दावे पर मुहर लगा दी.
दरअसल, सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में गठबंधन नहीं होने पर नाराजगी जताई थी. उन्होंने सीधे तौर पर कांग्रेस को निशाने पर लिया था और कहा था, पहले सीटें दिए जाने का आश्वास दिया गया. उम्मीदवारों की सूची भी मंगवाई गई. बाद में सपा को सीटें नहीं दी गईं. अखिलेश का कहना था कि यदि मुझे यह पहले पता होता कि गठबंधन विधानसभा स्तर पर नहीं है तो कांग्रेस से कभी बात ही नहीं करते. अखिलेश ने कांग्रेस को चेतावनी भी दी थी और कहा था, यूपी में कांग्रेस के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाएगा, जैसे हमारे साथ कांग्रेस मध्य प्रदेश में कर रही है.
'इस बार 50 सीटों पर चुनाव लड़ेगी सपा?'
अखिलेश ने बयान के बाद ताबड़तोड़ अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कीं. उन्होंने अब तक 42 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. जल्द ही एक और सूची जारी किए जाने की तैयारी है. सपा ने करीब 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है. इससे पहले 2018 के चुनाव में भी सपा ने 52 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. इनमें 45 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. सिर्फ एक उम्मीदवार चुनाव जीत कर विधानसभा में पहुंचा था. 2020 में सत्ता के उलटफेर के कुछ समय बाद वो सपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे.
'प्रदर्शन के आधार पर चल रही थी सीट शेयरिंग की बात'
सपा से जुड़े लोगों का कहना है कि 2018 में हमने जबरदस्त लड़ाई लड़ी थी. हमने बिजावर (छतरपुर) में जीत हासिल की थी. पृथ्वीपुर, निवाड़ी समेत पांच सीटों पर दूसरे और चार सीटों पर तीसरे नंबर पर आए थे. उसी आधार पर हम सीटें दिए जाने की बात कर रहे थे. हालांकि, कांग्रेस से बात नहीं बनी तो हम अपने उम्मीदवारों के साथ मैदान में आ गए हैं. उन्होंने यह भी कहा, जिन पांच सीटों पर सपा दूसरे नंबर पर आई, उनमें चार पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. यानी वहां कांग्रेस को सपा से बड़ा नुकसान पहुंचा था.
'कैसे बिगड़ी गठबंधन की बात... दिग्विजय ने क्या कहा?'
मध्य प्रदेश में सीट शेयरिंग पर अखिलेश यादव की नाराजगी के बाद कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की और गठबंधन की संभावनाओं पर ब्रेक लगने से बचाया है. दिग्विजय ने कहा, हमने सपा के लिए चार सीटें छोड़ने का सुझाव कमलनाथ जी (प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष) को दिया था. कमलनाथ जी पूरी ईमानदारी के साथ सपा संग अलायंस करना चाहते थे, लेकिन पता नहीं बातचीत कैसे पटरी से उतर गई. उन्होंने आगे कहा, गठबंधन सहयोगियों के बीच दोस्ताना झगड़े होते रहते हैं. दिग्विजय ने अखिलेश की भी तारीफ की और कहा, मैं जानता हूं कि सपा और अखिलेश कभी भी बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे.
'दिग्विजय ने अंदरखाने की क्या बात बताई?'
दिग्विजय ने बताया कि सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा हुई थी. कमलनाथ ने दीप नारायण यादव के नेतृत्व वाले सपा नेताओं के साथ चर्चा के लिए कांग्रेस नेता अशोक सिंह को मेरे पास भेजा था. इस कमरे (भेपाल में उनके निवास पर) में चर्चा हुई. सपा बुंदेलखंड क्षेत्र में एक सीट बिजावर (2018 के चुनाव में) जीती थी. दो अन्य सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही थी. लेकिन, सपा गठबंधन में छह सीटें चाहती थी. मैंने कमलनाथ जी को सपा के लिए चार सीटें छोड़ने का सुझाव दिया था. बाद में यह मामला कांग्रेस कार्यसमिति और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के पास गया. लेकिन उन्होंने यह मसला (सपा के साथ अलायंस) राज्य नेतृत्व पर छोड़ दिया. मुझे नहीं पता कि यह बातचीत कहां पटरी से उतर गई. लेकिन जहां तक कमलनाथ जी का सवाल है, मैं कह सकता हूं कि वो पूरी ईमानदारी के साथ सपा से गठबंधन करना चाहते थे. दिग्विजय ने कहा था, लोकसभा चुनाव INDIA अलायंस मिलकर लड़ेगा, लेकिन राज्यों के चुनाव में हमारे अलग-अलग इश्यू हैं. मुलायम सिंह यादव जी की मुझ पर बड़ी कृपा थी. उन्होंने एक किस्सा सुनाया और कहा, अखिलेश बेहद पढ़ा-लिखा, शरीफ और अच्छा लड़का है. बात कहां बिगड़ गई, मुझे नहीं पता है.
'अलायंस को लेकर कमलनाथ ने क्या बताया था...'
कमलनाथ ने कहा था, हमने सपा के साथ अलायंस की पूरी कोशिश की थी. हम भी चाहते थे कि सपा, बीजेपी को हराने में हमारी मदद करे. लेकिन सपा के साथ अलायंस को लेकर हमारे लोग या कहें हमारी पार्टी के नेता तैयार नहीं थे. अलायंस को लेकर सवाल यह नहीं थी कि कितनी सीटों पर समझौता होगा, बल्कि कौन सीट होगी, जिसे सपा को दें. हम उन सीटों पर अपने लोगों को मनाने में सफल नहीं हो पाए. यही कारण है कि कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है.
'बुंदेलखंड में बड़ा उलटफेर करते हैं सपा-बसपा'
मध्य प्रदेश में सपा और बसपा अक्सर बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल इलाके में अपने उम्मीदवार उतारते आई है. इन दोनों पार्टियों का इन इलाकों में बड़ा वोट बैंक है और चुनाव में यह दल गेमचेंजर बनकर उभरते आए हैं. कई बार बाजी पलटते देखी गई है. सपा-बसपा को बीजेपी और कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाते देखा जाता है. जानकार कहते हैं कि सपा के अकेले चुनाव लड़ने से यूपी से सटी सीटों पर कांग्रेस को नुकसान हो सकता है. इस बार आप ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं. AAP का फोकस विंध्य इलाके में है.
'मध्य प्रदेश में क्या है सपा का आधार?'
मध्य प्रदेश का बड़ा हिस्सा यूपी की सीमा (बुंदेखलंड-ग्वालियर-चंबल) से सटा है. राज्य में यादव वोटर्स की संख्या भी 12 से प्रतिशत से ज्यादा है. एमपी के बुंदेलखंड और विंध्य वाले हिस्से में सपा का असर देखा जाता है. सपा से जुड़े लोग कहते हैं कि पिछले चुनाव में हम परसवाड़ा, बालाघाट और गूढ़ सीट पर दूसरे और तीसरे नंबर में आए थे. बुंदेलखंड में कुल 26 सीटें हैं. यूपी के इटावा से सटी सीमा पर बसे भिंड और चंबल संभाग में भी सपा का अच्छा खासा वोट बैंक है. विंध्य रीजन में 30 सीटें हैं यानी सपा सीधे-सीधे 56 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखती है. पार्टी को इस क्षेत्र से उम्मीदें हैं. इससे पहले सपा ने 1998 और 2003 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया है. 2003 में सपा के सात उम्मीदवार जीते थे. जबकि 1998 में चार विधायक चुने गए थे. हालांकि, बाद में पार्टी को उतनी बड़ी सफलता नहीं मिली. 2008 और 2018 में एक-एक उम्मीदवार जीता.