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निर्दलीय विधायक से मुख्यमंत्री तक सफर तय करने वाले इबोबी, मणिपुर में कांग्रेस की वापसी करा पाएंगे?

मणिपुर में निर्दलीय विधायक से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले ओकराम इबोबी सिंह 15 साल तक मुख्यमंत्री रहे. कांग्रेस की सत्ता में वापसी का जिम्मा इबोबी पर है. इबोबी 1884 में पहली बार विधायक बने लेकिन राजनीतिक मुकाम उन्हें कांग्रेस में शामिल होने के बाद मिला. वो पहले मंत्री बने और फिर सीएम और 2022 में देखना है कि क्या सियासी करिश्मा दिखा पाते हैं?

मणिपुर पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह मणिपुर पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 08 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 10:35 PM IST
  • इबोबी सिंह ने छात्र जीवन से सियासत में कदम रखा
  • मणिपुर में स्थाई सरकार देने का श्रेय इबोबी सिंह को
  • इबोबी सिंह की पत्नी दो बार मणिपुर में विधायक रहीं

पूर्वोत्तर का मणिपुर कभी कांग्रेस का मजबूत दुर्ग हुआ करता था, लेकिन अब बीजेपी ने भी अपने सियासी जड़े मजबूत कर ली है. कांग्रेस के हाथ का साथ छोड़कर एन बीरेन बीजेपी के चेहरा बने गए हैं तो मणिपुर में कांग्रेस एक बार फिर से पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के अगुवाई में चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही है. हालांकि, कांग्रेस ने सीएम चेहरा का ऐलान नहीं किया है. 

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इबोबी छात्र जीवन से सियासत में आए

इबोबी सिंह का जन्म 19 जुलाई 1948 को एक गरीब परिवार में हुआ था. गुवाहाटी विश्वविद्यालय से बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद इबोबी घर का खर्च चलाने के लिए सरकारी विभागों में ठेकेदारी का काम भी किया करते थे. इबोबी छात्र जीवन से ही कई प्रमुख सामाजिक संगठनों से जुड़े रहें हैं. थाउबल के साउथ ईस्टर्न ट्रांसपोर्ट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड में 1981 में सचिव बनने के बाद इबोबी को एक राजनेता के रूप में पहचान मिली.

इबोबी की पत्नी दोबार की विधायक हैं

इबोबी का विवाह लांधोनी देवी से हुआ है, जिन्होने थौबल जिले के खंगाबोक विधानसभा से लगातार दो बार जीत हासिल की है. वह थौबल जिले की पहली महिला विधायक भी हैं. इबोबी सिंह वर्तमान में थौबल विधानसभा सीट से विधायक हैं. हालांकि, इस बार इस सीट पर उनके बेटे को कांग्रेस ने टिकट दिया है. 

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इबोबी ने 1984 में एक निर्दलीय विधायक के रूप में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था. खंगाबोक विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने के कुछ समय बाद इबोबी कांग्रेस में शामिल हो गए. इस बीच उन्हें खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद उन्होंने मणिपुर की सियासत में कभी पलटकर नहीं देखा. 

निर्दलीय विधायक से सीएम तक का सफर

साल 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सीट पर जीतकर आए इबोबी को आरके दोरेंद्रो की सरकार में पहली बार मंत्री बनने का मौका मिला. मंत्री के तौर पर उन्हें नगर निगम प्रशासन, आवास और शहरी विकास विभाग की जिम्मेवारी सौंपी गई. अपनी विनम्रता और ईमानदारी से इबोबी ने दिल्ली में गांधी परिवार का भरोसा जीता और उसके सहारे प्रदेश की राजनीति में आगे बढ़ते चले गए.

कांग्रेस ने 1995 में इबोबी को मणिपुर प्रदेश कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्ष बनाया तो उन्होंने पार्टी में कई अहम जिम्मेदारियां निभाई और महज तीन साल के भीतर सभी वरिष्ठ नेताओं को पीछे छोड़ते हुए प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी हासिल कर ली. यहीं से उनके लिए सत्ता के दरवाजे खुल गए.

मणिपुर में स्थाई सरकार का श्रेय इबोबी को

मणिपुर को 1972 में राज्य का दर्जा मिला था लेकिन राजनीतिक उथल-पुथल के कारण छोटे से इस राज्य में 18 बार सरकारें बदलीं. ऐसी परिस्थितियों में केवल 20 विधायकों को साथ लेकर 2002 में इबोबी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और इस तरह वे पिछले 15 सालों से लगातार शासन करने वाले नेता बन गए. 2002 में पहली बार मुख्यमंत्री बने और 2017 तक इस पद पर रहे. 

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इबोबी सिंह ने 2012 में अपनी पार्टी को तीसरी बार राज्य में जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी. 2017 के चुनाव में इबोबी सिंह ने बीजेपी के लैंथम बसंत सिंह को हराया था. पिछले चुनाव में मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी थी. हालांकि, इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला है और कांग्रेस की वापसी का सारा जिम्मा इबोबी पर है.

 

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