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मिजोरम चुनाव: CM और पूर्व CM की जंग का फायदा उठाने की कोशिश में BJP

मिजोरम विधानसभा चुनाव की सियासी रण में इस बार मुख्यमंत्री लालथनहवला को अपने प्रतिद्वंद्वी और मिजो नेशनल पार्टी से मुख्यमंत्री जोरमथांगा से कड़ी टक्कर मिल रही है. ऐसे में बीजेपी दोनों दलों के नेताओं के बीच लड़ाई में अपना सियासी फायदा उठाने में लगी है.                      

लालथनहवला और जोरमथांगा लालथनहवला और जोरमथांगा
इंद्रजीत कुंडू/विवेक पाठक
  • आइजोल,
  • 27 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:41 PM IST

म्यांमार सीमा पर भारत के सबसे पूर्वी कोने पर प्राकृतिक दृष्टिकोण से सुरम्य राज्य मिजोरम शेष भारत में होने वाले विधानसभा चुनाव की गहमागहमी से एकदम विपरीत छवि प्रस्तुत करता है. ना लाउडस्पीकर या ना ही ट्रैफिक रोक देने वाली रैलिया. जहां विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार घर-घर जाकर प्रचार करते है और ईसाई बहुल राज्य में चर्च की अहम भूमिका होती है.

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मिजोरम में भी सोमवार को चुनाव प्रचार थम गया.40 सीटों वाली मिजोरम विधानसभा के लिए 28 नवंबर को मतदान होने हैं और नतीजे 11 दिसंबर को आएंगे.

मुख्यमंत्री बनाम मुख्यमंत्री

1987 में मिजो संधि पर हस्ताक्षर के बाद अस्तित्व में आए मिजोरम की राजनीति परंपरागत तौर पर दो ध्रुवों-कांग्रेस और मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) में बंटी है. इस बार पांच बार से मुख्यमंत्री लालथनहवला को अपने प्रतिद्वंद्वी और मिजो नेशनल पार्टी से दो बार के मुख्यमंत्री जोरमथांगा से कड़ी टक्कर मिल रही है.

इंडिया टुडे से बातचीत में मुख्यमंत्री लालथनहवला ने कहा, 'हमने हमेशा विकास पर ध्यान दिया. मिजोरम की प्रति व्यक्ति आय और साक्षरता दर सबसे ज्यादा है, इसलिए विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है. मिजोरम में कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है.  

लेकिन हकीकत में दस साल लगातार राज करने वाली कांग्रेस को लेकर ना सिर्फ जनता में नाराजगी है बल्कि चर्च भी सरकार द्वारा शराब से प्रतिबंध हटाने के फैसले से नाराज है.

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विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने कहा, 'जनता बदलाव के लिए बेताब है, मिजोरम में विकास की गति कांग्रेस के दस साल के राज में थम गई है. इसके बावजूद वे शराब बेच रहे हैं. हजारों लोग इसकी वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं. यदि हम सत्ता में आते हैं तो शराब पर फिर से प्रतिबंध लगाएंगे.'

मिजोरम के दो बड़े कद्दावर नेताओं की राजनीतिक लड़ाई में आक्रामक बीजेपी आग में घी का काम कर रही है. पूर्वोत्तर के सात राज्यों में से 6 राज्यों में जीत का परचम लहरा चुकी बीजेपी 'कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर' के अभियान को सत्य में तब्दील करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए है.

बीजेपी को उम्मीद है कि यदि विधानसभा चुनाव में खंडित जनादेश आता है तो पार्टी की भुमिका राज्य में सत्ता संतुलन कायम करने वाली होगी. पूर्वोत्तर के राज्यों में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रैटिक अलायंस (NEDA) के संयोजक हिमंत विश्व शर्मा का दावा है कि बीजेपी इतनी सीटे जीतेगी कि उसके बिना कोई सरकार नहीं बन सकती.

हिंदुत्व बनाम ईसाइयत

हालांकि बीजेपी जैसी पार्टी जो बीफ बैन की हिमायती है उसके लिए यह कार्य कठिन होगा. जोरमथांगा का कहना है कि हिंदुत्व और ईसाई धर्म की विचारधारा एकदम अलग है. इसीलिए चर्च भी बीजेपी के खिलाफ है. लिहाजा उनके एक भी सीट जीतने की कोई उम्मीद नहीं है. बता दें कि चर्च नाराज न हो इसलिए बीजेपी द्वारा बनाए गए नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रैटिक अलायंस का हिस्सा होने के बावजूद मिजो नेशनल फ्रंट बीजेपी से दूरी बनाए हुए है.

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हिमंत विश्व शर्मा का कहना है कि बीजेपी की ईसाई विरोधी छवि अब ध्वस्त हो चुकी है. पूर्वोत्तर के चार ईसाई बहुल राज्य में से तीन राज्यों में बीजेपी की सरकार है और वहां को अपने धर्म को मानने की पूरी स्वतंत्रता है.

अकेले लड़ते हुए बीजेपी ने 40 सीटों पर 39 उम्मीदवार उतारे हैं. राज्य में अभी तक खाता ना खोल पाने वाली पार्टी इस बार अपने आपको किंगमेकर की भूमिका देख रही है. ऐसे में सवाल उठता है क्या बीजेपी के अरमान पूरे होंगे?

कांग्रेस के मुख्यमंत्री को ऑफर

बीजेपी ने अपने सारे विकल्प खोले हुए हैं. हेमंत विश्व शर्मा कहते हैं कि चाहे मुख्यमंत्री लालथनहवाला हों या मिजो नेशनल फ्रंट या फिर जोरम पिपल्स मूवमेंट किसी भी दल की सरकार बीजेपी के बिना नहीं बन सकती. शर्मा ने आगे यह भी कहा कि यदि मुख्यमंत्री लालथनहवाला व्यक्तिगत स्तर पर सरकार बनाना चाहें तो कुछ भी संभव है. ऐसे में बीजेपी कांग्रेस मुख्यमंत्री को ही चुनाव के बाद अपने खेमें लाने का विकल्प भी तलाश रही है.

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