
पंजाब चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही राजनीतिक हलकों में सबसे बड़ा सवाल यही उछला कि बीजेपी से इस्तीफा देकर उसके राज्यसभा सांसद और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू अपनी अगली राजनीतिक पारी किस पार्टी के साथ शुरू करेंगे. पहले उनके आम आदमी पार्टी में जाने के कयास लगे, फिर वे अपनी अलग टीम बनाते नजर आए और अब उन्होंने आखिरकार कांग्रेस का दामन थाम लिया है. सिद्धू के कांग्रेस में आने से पार्टी को क्या फायदा होगा और पार्टी में चुनाव के बाद उनकी क्या भूमिका होगी इसपर तो राजनीति के धुरंधर भी कोई बात दावे के साथ नहीं कह सकते लेकिन इतना तय है कि अगले 15 दिन तक सिद्धू के जरिए कांग्रेस पंजाब में खबरों में छाई रहने वाली है.
-पहले पत्नी नवजोत कौर और फिर खुद सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने से पंजाब में वोटरों के बीच साफ संदेश गया है कि इन चुनावों में अगर कोई जीत का सबसे मजबूत दावेदार है तो वो कांग्रेस है. जाहिर है पार्टी को इससे विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का मौका मिला है.
कैप्टन और सिद्धू की साझा प्रेस कांफ्रेंस, अमरिंदर बोले बिना शर्त कांग्रेस में आए सिद्धू-आम आदमी पार्टी और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल बादल परिवार पर हमलावर हैं और चुनाव जीतने पर उन्हें जेल भेजने तक के दावे कर वोटरों को ये संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि बादल सरकार के कुशासन से उसे वही मुक्ति दिला सकते हैं, कांग्रेस और खुद अमरिंदर इस मामले में आप नेताओं से पिछड़ रहे थे लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने ये कमी आकर पूरी कर दी है. अपनी पहली ही प्रेसवार्ता में उन्होंने जिस तरह 'भाग बादल भाग' कहा वो उनके इरादे और तेवर जाहिर करने के लिए काफी है.
-अरविंद केजरीवाल को नेशनल मीडिया में जिस तरह की कवरेज मिलती है उसका भी अमरिंदर और कांग्रेस के लिए मुकाबला करना मुमकिन नहीं था लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू मीडिया की सुर्खियां बटोरने के मामले में केजरीवाल की तुलना में किसी भी तरह से कम नहीं हैं. ऐसे में इस फ्रंट पर वो कांग्रेस को आप के मुकाबले मजबूत कर सकते हैं.
-पंजाब में आम आदमी पार्टी के पास सबसे बड़ी कमी उसका सीएम कैंडिडेट न होना है. अमरिंदर और बादल जैसे कद्दावर नेताओं के मुकाबले जब वोटर आम आदमी पार्टी की ओर देखता है तो उसे केजरीवाल का ही चेहरा दिखाई देता है. पिछले दिनों दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने इन्हीं हालात को देखते हुए केजरीवाल के नाम पर वोट देने की अपील की थी लेकिन उसका उल्टा असर हुआ और अगले ही दिन खुद केजरीवाल को इसका खंडन करना पड़ा.
-आम आदमी पार्टी ने बादल सरकार के खिलाफ टक्कर में खुद को साबित करने के लिए ही मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ लांबी से दिल्ली के अपने विधायक जरनैल सिंह को मैदान में उतारा. लेकिन आप के इस दांव को फेल करने के लिए अमरिंदर ने भी लांबी से लड़ने का ऐलान कर दिया. अमरिंदर भले ही इस सीट पर जीत न पाएं लेकिन बादल के विरोधी वोटों को बांटकर वो जरनैल को भी जीतने नहीं देंगे.
-नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में एंट्री ने सबसे ज्यादा नुकसान शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को पहुंचाया है. आम आदमी पार्टी पहले से ही उसके खिलाफ हमलावर थी और अब सिद्धू का खुलकर सरकार और बादल परिवार के खिलाफ हल्ला बोल रही सही कसर भी पूरी कर देगा. ये गठबंधन पहले ही पिछले 10 साल का एंटी इंकंबैसी झेल रहा है. सारे सर्वे भी गठबंधन को तीसरे स्थान पर धकेल रहे हैं. ऐसे में उसके लिए आगे की राह मुश्किल हो गई है. दूसरी ओर अमरिंदर का आत्मविश्वास और बढ़ गया है. इसका सबूत है आज अमृतसर में उनका जीत की बजाय दो तिहाई बहुमत का दावा.
-नवजोत सिंह सिद्धू की चुनौती को सत्तारूढ़ गठबंधन अब तक यही कहकर खारिज कर रहा है कि उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता. सिद्धू का पिछला राजनीतिक करियर देखें तो ये भी कहा जा सकता है कि अमरिंदर के लिए जीत के बाद सिद्धू को 'कंट्रोल' कर पाना मुश्किल होगा. माना जा रहा है कि खुद अमरिंदर भी ये बात समझते हैं और सिद्धू की पार्टी में एंट्री उनकी हरी झंडी न मिलने के चलते ही अटकी रही लेकिन इस बात से विरोधी भी इनकार नहीं कर रहे कि सिद्धू में भीड़ को खींचने और अपनी बातों से उसे प्रभावित करने की जबर्दस्त क्षमता है और इसका पूरा फायदा कांग्रेस को ही मिलने वाला है.