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पंजाब में चरणजीत चन्नी को CM फेस बनाकर क्या फिर वापसी कर पाएगी कांग्रेस?

कांंग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का चेहरा रविवार को घोषित कर दिया है. चन्नी के चेहरे के सहारे कांग्रेस ने 32 फीसदी दलित वोटबैंक को साधने का दांव चला है जबकि बाकी विपक्षी पार्टियों ने जाट सिख को सीएम चेहरा बना रखा है. ऐसे में देखना है कि चन्नी क्या कांग्रेस की वापसी करा पाएंगे?

राहुल गांधी, चरणजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिद्धू राहुल गांधी, चरणजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिद्धू
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 07 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 11:05 AM IST
  • सिद्धू और जाखड़ पर क्यों भारी पड़े चरणजीत सिंह चन्नी
  • चन्नी के चेहरे के सहारे दलित वोटों को साधने का दांव
  • पंजाब में देश का सबसे ज्यादा दलित दलित मतदाता

पंजाब में मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर कांग्रेस में लंबे समय से चल रही सियासी उथल-पुथल पर रविवार शाम को आखिरकार विराम लग ही गया. लंबी जद्दोजहद के बाद पंजाब में कांग्रेस के सीएम चेहरे से सस्पेंस हट गया है. राहुल गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू के सेलिब्रिटी चेहरे के आगे चरणजीत सिंह चन्नी के दलित चेहरे का चुनाव किया. राहुल गांधी ने कहा कि पंजाब के लोगों को गरीब घर का बेटा चरणजीत चन्नी ही मुख्यमंत्री के तौर पर चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि चन्नी को सीएम फेस घोषित कर कांग्रेस क्या पंजाब की सत्ता में वापसी कर पाएगी? 

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पंजाब में सभी दलों का सीएम चेहरा

बता दें कि पंजाब में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. आम आदमी पार्टी ने अपने सांसद भगवंत सिंह मान को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है तो बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन कर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ रही. अकाली दल के पास बादल परिवार नेतृत्व के रूप में पहले से मौजूद है और सुखबीर सिंह बादल सीएम चेहरा हैं. वहीं, कांग्रेस ने अपने मौजूदा सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर चुनावी मैदान में उतरने का दांव चला है. 

माना जा रहा है कि दलित चेहरा, बेदाग छवि और बेहद सादगी भरे व्यवहार के कारण जनता के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहे चरणजीत सिंह चन्नी को नवजोत सिंह सिद्धू पर प्राथमिकता दी गई. राहुल गांधी ने लुधियाना में एक जनसभा के बीच उन्हें कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया. चन्नी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने का दांव कांग्रेस का बड़ा मास्टर प्लान साबित हो सकता है. 

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पंजाब की राजनीति में 20 सितंबर 2021 का दिन काफी अहम था. यही वह दिन था जब पंजाब के तकनीकी शिक्षा मंत्री रहे चरणजीत सिंह चन्नी को अचानक मुख्यमंत्री बना दिया गया था. गांधी परिवार के करीबी रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर अचानक कांग्रेस आलाकमान ने चन्नी के नाम पर दांव खेला था. इसी के साथ पंजाब को पहला दलित मुख्यमंत्री मिला.

क्या है कांग्रेस की रणनीति

चरणजीत सिंह चन्नी को चुनने के पीछे कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति है. कांग्रेस चन्नी के जरिए अपने परंपरागत वोट बैंक के साथ दलित समाज के वोट पाने की कोशिश में है. पंजाब में 32 फीसदी दलित वोट बैंक है और आजतक इस वोट बैंक को साधने के लिए किसी ने दांव नहीं खेला था. कांग्रेस ने चन्नी के नाम पर मुहर लगाकर इस 32 फीसदी वोटबैंक पर निशाना साधा है. अगर पार्टी का यह दांव सफल साबित हुआ, तो इसका मुकाबला कर पाना आम आदमी पार्टी या अकाली दल के लिए आसान नहीं होगा. 

दरअसल, बीजेपी जब चुनाव के मैदान में होती है तो वह गरीब पिछड़े और सोसाइटी में इमोशनल मुद्दों को सामने लेकर आती है जहां पर कांग्रेस आज के वक्त मात खा रही है. वो कहते हैं पंजाब में चन्नी को सामने लाकर कांग्रेस ने एक तरह से बीजेपी की इमोशनल ग्राउंड वाली स्ट्रेटजी का मुकाबला करने के लिए प्लेटफार्म तैयार कर लिया है. इसी रणनीतिक के तहत कांग्रेस ने चन्नी को उतारा है. 

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सादगी और सामान्य जिंदगी चन्नी की ताकत

चरणजीत सिंह चन्नी की सादगी और सामान्य परिवार से आना उनकी सबसे बड़ी ताकत है. इस तुलना पर उनके सामने कोई अन्य नहीं ठहरता. वे बेहद सामान्य परिवार से आते हैं जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखबीर सिंह बादल पहले से काफी संपन्न और सियासी परिवार से हैं. यही वजह है कि राहुल गांधी ने कहा कि मुख्यमंत्री के रूप में वे ऐसा व्यक्ति चाहते थे जो आम गरीब जनता का दुख-दर्द समझे. इस कसौटी पर सामान्य परिवार से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी ही पहली पसंद बन सकते थे वे आम जनता के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई पड़ते हैं.  

पंजाब में सबसे ज्यादा दलित आबादी है, लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी से पहले तक सूबे में कोई भी दलित चेहरा मुख्यमंत्री नहीं बना था. ऐसे में चरणजीत सिंह चन्नी को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाकर पंजाब दलितों की राजनीति में एक बड़ा दांव खेला था. वहीं. कैप्टन अमरिंदर सिंह, अकाली दल के सुखबीर बादल और आम आदमी पार्टी के भगवंत मान पंजाबी जट्ट बिरादरी से आते हैं. ऐसे में कांग्रेस ने अपना दांव सबसे अलग होकर खेला है और दलित चेहरे के सहारे एक बड़े समुदाय को साधने की रणनीति है. 

पंजाब में सबसे अधिक आबादी अनुसूचित जाति की है जबकि जाट सिखों की आबादी केवल 20 फीसदी है. इसके बावजूद राज्य की सियासत में जट्ट सिख का दबदबा रहा है. कांग्रेस ने जट्ट सिख के बजाय चरणजीत सिंह चन्नी के जरिए दलितों को साधने का दांव चला है. बीजेपी से अलग होने के बाद अकाली ने बसपा के साथ गठबंधन कर लिया था. अकाली दल व बसपा को आरक्षित सीटों पर जबरदस्त उत्साह व इनपुट मिल रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने चन्नी को आगे अकाली दल-बसपा गठबंधन की गाड़ी पर ब्रेक लगाने का प्रयास किया. वैसे ही भागवत मान के जरिए आम आदमी पार्टी सामान्य लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही थी तो कांग्रेस ने उसी तर्ज पर चन्नी को उतारा. 

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पंजाब में 32 फीसदी दलित आबादी

पंजाब में 32 फीसदी अनुसूचित जाति हैं, जबकि दोआबा क्षेत्र में 42 फीसदी हैं. दोआबा इलाके में 23 विधानसभा आती हैं और इतिहास साक्षी है कि दोआबा में जीत हार का फैसला अनुसूचित जाति के वोट ही करता है. कांग्रेस ने दलित चेहरे के जरिए दलित वोटों का अपने पाले में रखने की कवायद की है. वहीं, पंजाब की राजनीति में एक कहावत बहुत चर्चित है कि जो मालवा जीत लेता है, वही सरकार बना लेता है. पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में 69 सीटें मालवा में ही हैं. 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने मालवा क्षेत्र में 40 सीटें जीती थीं. 

मालवा क्षेत्र में डेरा का सबसे ज्यादा प्रभाव मालवा में ही है. एक अनुमान के अनुसार, क्षेत्र के 13 जिलों में करीब 35 लाख डेरा प्रेमी हैं, उसमें भी खास बात यह है कि अनुसूचित जाति सिख ही इनमें ज्यादा जाते हैं. यही बात चरणजीत सिंह चन्नी के समर्थन में गई. डेरा प्रेमी का एकमुश्त वोट किसी भी दल का गणित बिगाड़ सकता है. पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मालवा से 18 सीटें जीती थीं. आम आदमी पार्टी इस बार भी भगवंत सिंह मान को सीएम चेहरा घोषित कर इसी बूते गणित बिगाड़ना चाहती है. ऐसे में कांग्रेस ने भी चन्नी को आगे कर आम आदमी पार्टी के गणित को बिगाड़कर सत्ता में वापसी का दांव चला है. 

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