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Charanjit singh channi: वकालत और सियासत... चमकौर से निकलकर ऐसे चमके चरणजीत सिंह चन्नी

Charanjit singh channi: वकालत और मैनजमेंट की शिक्षा उन्होंने कॉलेज में ली है, लेकिन सियासत का कड़वा अनुभव उन्होंने फील्ड में रहकर, धूप में तपकर सिखा और कमाया है. 32 फीसदी दलितों वाले पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी दलित राजनीति के पोस्टर ब्वॉय हैं. 2022 का विधानसभा चुनाव उनके लोकप्रियता की कड़ी परीक्षा ले रहा है, क्योंकि पिछले 5 सालों में रावी नदी में बहुत पानी बह चुका है.

पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी (फाइल फोटो) पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी (फाइल फोटो)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:19 AM IST
  • निर्दलीय उतरकर जीत हासिल की और सबको चौंकाया
  • मलेशिया जाकर पिता ने पैसे कमाये और टेंट का बिजनेस शुरू किया
  • मंत्री रहते हुए भी पीएचडी कर रहे थे सीएम चन्नी

पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) 2022 का विधानसभा चुनाव दो सीटों से लड़ रहे हैं. वो अपने परंपरागत क्षेत्र चमकौर साहिब से तो चुनाव लड़ ही रहे हैं, पंजाब की भदौर (आरक्षित) सीट से भी वह चुनावी मैदान में उतर गए हैं. चरणजीत सिंह चन्नी दलित समुदाय से आते हैं. पंजाब की राजनीति में वे एक मुखर आवाज हैं. दलित हित के लिए तो उन्होंने कई मौकों पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ बोलने से चूकते नहीं हैं.

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32 फीसदी दलित वोटरों वाले पंजाब में दलितों पर उनकी अच्छी-खासी पकड़ मानी जाती है. अभी वर्तमान में चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब सीट से विधायक हैं. कैप्टन की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया था  और उन्हें तकनीकी शिक्षा मंत्री का पद सौंपा गया था. लेकिन जब पिछले साल सितंबर में पंजाब में राजनीति ने करवट बदली तो कांग्रेस आलाकमान ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम पद की कुर्सी सौंप दी. अब उन्हीं की अगुवाई में कांग्रेस पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ रही है.

चन्नी पंजाब के दलित समुदाय रामदासिया सिख से आते हैं. वह पंजाब के चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे हैं. उन्होंने 2007, 2012 और 2017 में विधानसभा चुनाव जीता था. चन्नी  2015 से 2016 तक पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे. 

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बचपन संघर्ष में गुजरा

58 साल के चरणजीत सिंह चन्नी का चमकौर साहिब के पास मकरोना कलां गांव में जन्म हुआ. चरणजीत ने प्राथमिक शिक्षा सरकारी प्राथमिक स्कूल से प्राप्त की. उनके पिता का नाम एस. हरसा सिंह और माता अजमेर कौर है. उनके पिता ने अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा दिलाने के लिए बहुत संघर्ष किया. परिवार को अच्छी जिंदगी देने के लिए वे मलेशिया चले गए. विदेश से कुछ जमा पूंजी लेकर लौटने के बाद चन्नी के पिता ने मोहाली के नजदीक खरड़ शहर में एक टेंट हाउस का व्यवसाय शुरू किया और वहीं बस गए. सीएम चन्नी के जानकार बताते हैं कि अपने पिता के व्यवसाय को लेकर चन्नी काफी सजग और समर्पित रहते थे. काउंसिलर रहने के दौरान भी वे टेंट लगाने से हिचकते नहीं थे.

राजनीति में एंट्री

चन्नी ने चंडीगढ़ के गुरुगोविंद सिंह खालसा कॉलेज से पढ़ाई की और फिर पंजाब यूनिवर्सिटी से उन्होंने कानून की डिग्री ली. इसके बाद चन्नी ने पंजाब टेक्नीकल यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई की. दलित पृष्ठभूमि, बचपन का संघर्ष ये सब ऐसी वजहें रही कि उन्हें अध्ययन से लगाव रहा. वे मंत्री रहते हुए भी पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे थे. इस तरह से चन्नी न सिर्फ राजनीति के छात्र रहे और इसे अपना प्रोफेशन बनाया बल्कि वे वकील और प्रबंधन के भी कुशल प्रोफेशनल रहे. मैनेजमेंट की पढ़ाई को उन्होंने राजनीति में बखूबी उतारा.

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सीएम चरणजीत सिंह चन्नी (फोटो- ट्विटर)

सीएम चन्नी का राजनीति से पहला वास्ता तब हुआ जब वे खरड़ में खालसा सीनियर सेकेंडरी स्कूल से मैट्रिक कर रहे थे. यहां पर वे स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने. कॉलेज में भी उनकी राजनीति जारी रही. चन्नी की असल राजनीति यात्रा साल 1996 में उस वक्त शुरू हुई जब वे खरड नगर पालिका के अध्यक्ष बने.

टिकट नहीं मिला तो विधायकी के लिए निर्दलीय उतरे और जीत हासिल की

इसी दौरान वे कांग्रेस के नेताओं से संपर्क में आए और पंजाब कांग्रेस में लोग उन्हें दलित चेहरे के रूप में पहचाने जाने लगे. 2007 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने चमकौर साहिब से चुनाव लड़ने की ठानी. चन्नी ने अपनी दरख्वास्त कांग्रेस पार्टी को भेजी लेकिन वे राजनीतिक समीकरण नहीं बैठा पाए. लेकिन चन्नी ने फ़ैसला किया कि वे चमकौर साहिब से स्वतंत्र उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ेंगे. चन्नी लड़े और जीत भी हासिल की. इस तरह से उन्होंने इस जीत के साथ ही कांग्रेस को अपने कद और लोकप्रियता का संदेश दे दिया. इसके बाद तो चन्नी ने पंजाब कांग्रेस में अपना अच्छा खासा रुतबा स्थापित कर लिया.

साल 2012 में  कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में उन्हें टिकट मिला तो वे एक बार फिर चमकौर साहिब से जीत गए. अगले पांच सालों में चन्नी की पहुंच दिल्ली तक हुई. माना जाता है कि कांग्रेस नेता अंबिका सोनी से उनके अच्छे सियासी संबंध हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें फिर से चमकौर साहिब से टिकट मिला. इस बार जीत के साथ ही उनकी एंट्री कैप्टन कैबिनेट में हो गई.  तकनीकी शिक्षा मंत्री रहने के दौरान रोजगार मेले लगवा कर और कौशल केंद्र खोलकर चन्नी ने प्रतिष्ठा कमाई. वे युवाओं के बीच लोकप्रिय हुए. लेकिन सितंबर 2021 आते-आते रावी नदी में बहुत पानी बह चुका था, अब कैप्टन और चन्नी की राहें जुदा थी. 

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चरणजीत चन्नी का विवादों से नाता 

सार्वजनिक जीवन में चरणजीत सिंह चन्नी भी विवादों से अछूते नहीं रहे. साल 2018 में मंत्री रहते चन्नी पर ये आरोप लगाया गया था कि उन्होंने  एक महिला आईएएस अधिकारी को कथित तौर पर 'अनुचित मैसेज' भेजा था. तत्कालीन सीएम कैप्टन अमरिंदर के संज्ञान में ये मामला आया तो उन्होंने चरणजीत को महिला आईएएस से माफी मांगने को कहा था. 

चरणजीत चन्नी एक बार विवादों में तब आए जब सिक्का उछाल कर लोगों की पोस्टिंग करने का फैसला ले रहे थे. आरोप है कि चन्नी ने दो लोगों की एक ही स्थान पर पोस्टिंग का फैसला सिक्का उछाल कर लिया था.

निजी जिंदगी की रोचक कहानी

चरणजीत सिंह चन्नी की पत्नी कमलजीत कौर एक डॉक्टर हैं और उनके दो बेटे हैं. कुछ समय पहले सीएम चन्नी ने आजतक से बात करते हुए अपनी निजी जिंदगी के बारे में बताया था. उन्होंने कहा था," मैं और मेरी पत्‍नी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे. हमारे बीच दोस्ती हुई इसके बाद हमने शादी करने का फैसला किया. मैंने अपने परिवार वालों को बताया कि मैं शादी करना चाहता हूं, वह इस शादी को लेकर रजामंद हो गए.' चन्‍नी इंटरव्‍यू में कहते हैं कि लेकिन मेरे ससुर चाहते थे कि मेरी बेटी डॉक्‍टर (डॉक्‍टर ऑफ मेडिसन) बनने वाली है. मैं तो डॉक्‍टर से ही शादी करवाउंगा. मैसेज आ गया कि शादी नहीं होगी. ऐसे में उन्‍होंने शुरुआत में शादी करने से मना कर दिया था. 

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सीएम चन्नी ने कहा कि इसके बाद मैं खुद ही ससुर जी के पास चला गया. लेकिन उनके ससुर ने कहा कि तुम्‍हारी (चन्‍नी) हिम्‍मत कैसे हुई, चलो निकलो यहां से. हंसते हुए बोले, लेकिन वह घर से ही बाहर चले गए.हालांकि, शादी उनकी इच्‍छा के बिना ही हुई थी. 

इस बार चरणजीत चन्नी सीएम हैं, लेकिन पंजाब की राजनीति में काफी कुछ बदल गया है, अब कैप्टन उनके साथ नहीं है, चन्नी को सीएम बने लगभग 4 महीने ही हुए हैं, उनके सामने चुनौती एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को काटते हुए खुद जीतने और राज्य में कांग्रेस की सरकार बनाने की है.

 

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