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पंजाब में कांग्रेस ने अपनाया बीजेपी का 'वन प्लस टू फॉर्मूला', जातीय संतुलन साधने का दांव

बीजेपी हाईकमान ने यूपी में जातीय समीकरण को साधने के लिए एक मुख्यमंत्री और दो डिप्टी सीएम नियुक्त किए थे, उसी तर्ज पर कांग्रेस ने पंजाब में दलित समाज को मुख्यमंत्री बनाया तो जाट सिख और हिंदू को डिप्टीसीएम की कुर्सी सौंपी है. ऐसे में देखना है कि पंजाब में कांग्रेस का वन प्लस टू का फॉर्मूला 2022 के चुनाव में कितना कारगर साबित होता है? 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ पंजाब के सीएम और डिप्टी सीएम कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ पंजाब के सीएम और डिप्टी सीएम
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 20 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:52 PM IST
  • कांग्रेस ने पंजाब में दलित चेहरा चरणजीत को सीएम बनाया
  • सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी ने भी शपथ ली

पंजाब में अगले चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस ने नेतृत्व परिवर्तन कर दिया है. कांग्रेस ने पंजाब में बीजेपी का यूपी 'वन प्लस टू का फॉर्मूला' अपनाया. बीजेपी हाईकमान ने यूपी में जातीय समीकरण को साधने के लिए एक मुख्यमंत्री और दो डिप्टी सीएम नियुक्त किए थे, उसी तर्ज पर कांग्रेस ने पंजाब में दलित समाज को मुख्यमंत्री बनाया तो जाट सिख और हिंदू को डिप्टीसीएम की कुर्सी सौंपी है. ऐसे में देखना है कि पंजाब में कांग्रेस का वन प्लस टू का फॉर्मूला 2022 के चुनाव में कितना कारगर साबित होता है? 

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पंजाब में कांग्रेस ने दलित सीएम बनाया

पंजाब में अगले साल फरवरी में होने वाले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पाटी ने सिख चेहरे को मुख्यमंत्री और दलित को डिप्टी सीएम बनाने  घोषणा कर रखी है. किसान आंदोलन से बैकफुट पर चल रही बीजेपी ने राज्य में दलित को सीएम बनाने का वादा जनता से किया है. वहीं, बसपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी अकाली दल भी दलित डिप्टी सीएम बनाने का ऐलान कर चुकी हैं. 

ऐसे में अब कांग्रेस ने पंजाब को पहले दलित मुख्यमंत्री के तौर पर चरणजीत सिंह चन्नी की ताजपोशी कर दी है. इसी के साथ जातीय संतुलन बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने जाट सिख समुदाय से आने वाले सुखजिंदर सिंह रंधावा और हिंदू समुदाय से आने वाले ओपी सोनी को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है. माना जा रहा कि यह दोनों नेताओं को डिप्टी सीएम की कुर्सी सौंपी जाएगी. 

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पंजाब की सियासत तीन जातियों में बंटी है

बता दें कि पंजाब की सियासत जाट सिखों के इर्द-गिर्द अभी तक सिमटी रही है और सभी मुख्यमंत्री जाट सिख से ही हुआ करते थे. दलित मतदाता 32 फीसदी होने के बाद भी अभी तक सीएम नहीं बन सका था. ऐसे कांग्रेस ने दलित सीएम के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव खेला तो साथ ही जाट सिख और हिंदू वोटों को भी साधकर रखने के लिए सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी को जगह देकर सियासी संतुलन बनाने की कोशिश की है. 

पंजाब का जातीय समीकरण तीन भागों में बंटा है, जिसमें माझा, मालवा और दोआबा. पंजाब में कुल मतदाताओं में करीब 20 फीसदी जाट सिख हैं, जिस पर अकाली, कांग्रेस सहित सभी पार्टियों का जोर रहता है. 2017 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जाट और सिखों में पैठ बनाई थी. पंजाब में अभी तक सभी राजनीतिक दल जाट सिख पर ही अपना दांव खेलते आए हैं. जाट सिख पंजाब का सीएम बनता आया है, लेकिन इस बार कांग्रेस ने दलित कार्ड खेलकर सभी को चौंका दिया है. 

पंजाब का जातीय समीकरण अहम है

पंजाब में जातीय समीकरण को देखे तो 20 फीसदी के करीब जाट सिख और 32 फीसदी दलित तो 38 फीसदी हिंदू वोटर हैं. चरणजीत सिंह चन्‍नी के साथ-साथ सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी को चुनने के पीछे कांग्रेस की सोची-समझी स्‍ट्रैटेजी है. पंजाब की पॉलिटिक्‍स में एक कहावत बहुत चर्चित है कि जो पार्टी मालवा की सियासी बाजी जीत लेता है, वही सरकार बना लेता है. 

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पंजाब में 32 फीसदी दलित मतदाता हैं और दोआबा में जीत का आधार दलित व हिंदू मतदाता ही बनते हैं. पंजाब की 117 विधानसभा सीटों में 69 सीटें मालवा में ही हैं. 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने मालवा क्षेत्र में 40 सीटें जीती थीं. इसके बाद दूसरे अहम क्षेत्र माझा और दोआब को माना जाता है. माझा में 25 विधानसभा सीटें हैं तो दोआब में 23 विधानसभा सीटें आती हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने माझा की 22 सीटों और दोआब की 15 सीटों पर जीत हासिल कर सत्ता पर काबिज हुई थी. 

मालवा जीतने का मतलब सत्ता पर काबिज

मालवा क्षेत्र में डेरा का सबसे ज्यादा प्रभाव मालवा में ही है. एक अनुमान के अनुसार, क्षेत्र के 13 जिलों में करीब 35 लाख डेरा प्रेमी हैं, उसमें भी खास बात यह है कि दलित सिख ही इनमें ज्‍यादा जाते हैं. यही बात चरणजीत सिंह चन्‍नी के समर्थन में गई. डेरा प्रेमी का एकमुश्‍त वोट किसी भी दल का गणित बिगाड़ सकता है. यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्‍व वाली आम आदमी पार्टी मालवा में पूरा दम झोंकती रही है.

2017 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी मालवा क्षेत्र से 18 सीटें जीती थीं. इस बार के चुनाव में वह इसी इलाके के बूते अपना सियासी गणित बनाना चाहती हैं.. आम आदमी पार्टी ही नहीं बल्कि शिरोमणि अकाली दल भी बसपा के साथ मिलकर यहां अपनी मौजूदगी को फिर मजबूत करना चाहती है. अकाली दल इस क्षेत्र से 2012 के चुनाव में 33 सीटें जीती थीं, लेकिन 2017 में उसकी सीटें घटकर 8 रह गई थीं. इस तरह उसने सत्‍ता भी गंवा दी थी जबकि 23 सीटों वाले दोआब क्षेत्र में पारंपरिक तौर पर अकाली दल की पकड़ रही है.

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कांग्रेस का वन प्लस टू फॉर्मूला

कैप्टन के सीएम पद से हटने के बाद कांग्रेस ने दलित हिंदू चेहरे के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी को आगे बढाया है. इतना ही नहीं दो डिप्टी सीएम बनाने का विकल्प साथ लेकर चल रही है, जिसके लिए जाट सिख के तौर पर सुखजिंदर सिंह रंधावा को तो और हिंदू वोटों को साधने के लिए ओपी सोनी को भी शपथ दिलाई है. 


पंजाब में जैसे हालात बन रहे हैं, उसमें एक बात तो तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण होगा. दलित समाज इसका केंद्र बिंदु होगा तो कहीं जाट सिख बनाम गैर जाट वोटों का बंटवारा होगा. कांग्रेस का मुख्य वोट दलित सिख और हिंदू वर्ग से आता है. वहीं, अकाली दल एक तरह से मुख्यधारा के सिखों और धनी जाटों (जट सिख) में अपनी पैठ से ही सत्ता में आता है. आप अभी तक राज्य में अपना कोई विशेष वोट बैंक स्थापित नहीं कर पाई है. इसीलिए कांग्रेस ने जातीय समीकरण को देखते हुए दलित, हिंदू और जाट सिख को साधकर रखने का दांव चला है.  

शहरी हिंदुओं में कैप्टन की पैठ

कैप्टन अमरिंदर सिंह का हिंदूओं में खासा जनाधार था. कारण वह राष्ट्रवाद के मुद्दे पर बेबाक बोलते थे और आतंकवाद के खिलाफ उनकी ललकार सुनने को मिलती थी. ऐसे में शहरी वर्ग कांग्रेस के लिए हमेशा खड़ा होता आया है. शहर के लोगों ने आतंकवाद का काला दौर देखा है. आतंकवाद को पंजाब से खत्म करने का श्रेय कांग्रेस को जाता है. वहीं, कांग्रेस हाईकमान हिंदू नेताओं के तौर पर ओपी सोनी को आगे बढ़ाने का कदम उठाया है. ऐसे में देखना है कि कांग्रेस का यह फॉर्मूला 2022 के चुनाव में कितना सफल रहता है? 

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