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पंजाब में अपनी जमीन तलाश की जद्दोजहद कर रही बीजेपी ने सहयोगी दल रहे अकाली दल को चौंका दिया है. 1 दिसंबर का दिन खत्म होते-होते खबर आ गई कि दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिरसा ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. सिरसा का बीजेपी में शामिल होना पार्टी के लिए एक तरह से बड़ी कामयाबी हो सकती है.
किसान आंदोलन के बाद से सिखों में बीजेपी के खिलाफ खासी नाराजगी देखी जा रही है. वहीं मनजिंदर सिरसा सिखों से जुड़े मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं. हरियाणा के सिरसा जिले में जन्मे और दिल्ली के राजौरी विधानसभा सीट से विधायक सिरसा के बीजेपी में शामिल होने के वक्त केंद्रीय मंत्री धर्मेंन्द्र प्रधान और बीजेपी के पंजाब प्रभारी गजेंद्र सिंह शेखावत मौजूद थे. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जेपी नड्डा ने कहा कि उनका अनुभव और श्रम पार्टी को और मजबूत बनाएगा.
क्या होगा पंजाब में असर?
लेकिन सवाल इस बात का है कि मनजिंदर सिरसा के बीजेपी में शामिल होने पर पार्टी को क्या फायदा होगा. इस सवाल पर पंजाब की राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार बलंवत तक्षक का कहना है कि मनजिंदर सिरसा दिल्ली में प्रभावी थे और उसका फायदा अकाली दल को मिलता था. लेकिन पंजाब में उनका कोई खास असर नहीं दिखता है. बीजेपी की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा सिख नेताओं को जोड़ लिया जाए ताकि सिख समुदाय के बीच पैठ बनाई जा सके.
तक्षक कहना है कि किसान आंदोलन के बाद से सिखों के बीच बीजेपी की छवि बहुत ही नकारात्मक बन गई है. जब बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन था तो ये दोनों मिलकर हिन्दू और सिख वोट बटोरते थे. जिसमें बीजेपी के खाते में हिन्दू और अकालियों के पास सिखों के वोट जाते थे. गठबंधन टूटने के बाद अब बीजेपी सिखों के बीच अपनी जमीन तलाश रही है. कैप्टन अमरिंदर और संयुक्त अकाली दल के नेता सुखदेव ढींढसा के दम पर बीजेपी सिखों के बीच कितना पैठ बना पाती है ये देखने वाली बात होगी.
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वहीं नाम न बताने की शर्त पंजाब के ही और पत्रकार ने दावा किया कि मनजिंदर सिरसा पंजाब में खुद भी किसी सीट पर नहीं जीत सकते हैं. किसान आंदोलन के बाद से बीजेपी की छवि सिखों से नफरत करने वाली बन गई है जिसे मिटाने के लिए मनजिंदर सिरसा को बीजेपी में शामिल किया गया है. उनका कहना है कि सिरसा एक धार्मिक चेहरा और सुखबीर सिंह बादल के करीबी भी रहे हैं. बीजेपी एक संदेश देना चाहती है कि वो सिखों के धार्मिक नेताओं के साथ है. लेकिन इस कवायद का पंजाब की राजनीति में कोई खास असर होता नहीं दिख रहा है.
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गौरतलब है कि पंजाब में किसान आंदोलन, कैप्टन अमरिंदर सिंह की बगावत, सीएम चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जारी रस्साकसी, कृषि कानूनों की वापसी तक कई बार समीकरण उलट-पलट चुके हैं. राजनीति की बिसात पर हर पार्टी अपने मोहरे तैनात कर रहा है. जातिगत समीकरण भी बड़ा फैक्टर हैं. सालों से दोध्रुवीय राजनीति का गवाह रहे पंजाब में इस बार इस कई ध्रुव बन गए हैं और इनके अंदर भी कई केंद्र हैं.