
कृषि कानून के खिलाफ सबसे पहली आवाज पंजाब के किसानों ने उठाई थी. एक साल पहले पंजाब से चलकर दिल्ली की सीमा पर आकर आंदोलन शुरू किया था, जिसके चलते ही अकाली दल ने बीजेपी से 25 साल पुरानी दोस्ती तोड़कर एनडीए से अलग हो गई थी. वहीं, अब पंजाब विधानसभा चुनाव से ठीक पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानून को वापस लेने का ऐलान कर दिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पंजाब में बीजेपी और अकाली दल फिर से हाथ मिला सकते हैं?
पंजाब की सियासत में किसान प्रभावी
पंजाब की सियासत किसानों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. पंजाब में कृषि और किसान ऐसे अहम मुद्दे हैं कि कोई भी दल इन्हें नजरअंदाज कर अपना सियासी वजूद कायम रखने की कल्पना भी नहीं कर सकता है. इसी का नतीजा था कि कृषि कानून के खिलाफ पंजाब के किसान सड़क पर उतरे तो सबसे पहले अकाली दल ने बीजेपी से किनारा किया. किसान आंदोलन के चलते बीजेपी नेताओं को गांव में एंट्री तक नहीं मिल पा रही थी. इस तरह बीजेपी 2022 के चुनाव प्रचार पंजाब में अभी तक शुरू नहीं कर पा रही थी.
कृषि कानून रद्द बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक
पंजाब में करतारपुर कॉरिडोर खोलने के बाद अब मोदी सरकार ने तीन कृषि कानून वापस लेने का फैसला कर 2022 चुनाव से पहले बड़ा मास्टर स्ट्रोक चल दिया है. पंजाब में तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह सियासी तौर पर संजीवनी साबित हो सकता है. पीएम मोदी ने कृषि कानून को वापस लेने के लिए गुरु पर्व का दिन चुना, जिसका सीधा संदेश पंजाब के सिख समुदाय से जोड़कर देखा जा रहा है.
गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर जिस समय पंजाब से लेकर देश भर के सिख समाज खुशिया मना रहा था, उसी बीच पीएम मोदी ने गुरु नानक के सेवा भाव के संदेश देते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. पीएम मोदी इस तरह सिख समाज से भावनात्मक रूप से जुड़ने की कवायद करते दखें हैं, क्योंकि अगले साल शुरू में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं.
अकाली दल और बीजेपी के रिश्ते
पंजाब विधानसबा चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि कृषि कानून के चलते ही अकाली दल ने मोदी सरकार की मंत्री की कुर्सी ही नहीं छोड़ी बल्कि एनडीए से भी नाता तोड़कर बसपा से हाथ मिला लिए हैं. वहीं, किसानों की नारजगी के चलते बीजेपी के साथ कोई दल पंजाब में खड़े होने को तैयार नहीं था. कैप्टन अमरिंदर सिंह भी कांग्रेस से बगावत करने के बाद बीजेपी के साथ कृषि कानून रद्द होने की दिशा में ही हाथ मिलाने के संकेत दिए थे.
किसान आंदोलन पंजाब के 2022 के चुनाव में एक बड़ी मुसीबत बनकर खड़ी हो गई थी, क्योंकि किसान संगठनों ने साफ तौर पर कह दिया था कि इन कानूनों के वापस होने तक किसी तरह का कोई समझौता नहीं होग. कृषि कानूनों की वजह से बीजेपी के लिए सियासी राह मुश्किल हो गई थी. पंजाब में बीजेपी के नेताओं को प्रचार तो दूर, कोई मीटिंग तक नहीं करने दी जा रही थी.
किसानों की नाराजगी कृषि कानून था
पंजाब के किसानों की नाराजगी को दूर करने के लिएतीन कृषि कानून रद्द करना बीजेपी की सियासी मजबूरी बन गया था, क्योंकि इसके बगैर न तो किसान मान रहे थे और न ही कोई दल साथ आने के लिए तैयार था. ऐसे में पीएम मोदी ने गुरु पर्व के दिन तीनों कृषि कानून को वापस लेकर पंजाब चुनाव से ठीक पहले मास्टर स्ट्रोक चल दिया है.
बता दें कि बीजेपी पंजाब की सियासत में शिरोमणि अकाली दल के सहारे करीब ढाई दशक से अपनी राजनीति करती रही है. पंजाब की कुल 117 विधानसभा सीटों में से बीजेपी महज 23 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है. 2017 में बीजेपी ने अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी और सिर्फ तीन सीट ही जीत पाई थी.
किसान आंदोलन के चलते बीजेपी के लिए इस बार सियासी राह मुश्किल नजर आ रही थी और तमाम सर्वे भी यही बता रहे थे कि बीजेपी के लिए 2022 का चुनाव आसान नहीं है. ऐसे में गुरुपर्व पर तीन कृषि कानून वापस ले फैसले से बीजेपी का सिखों से भावनात्मक रूप से जुड़ने की राह खुलेगी. साथ ही 2022 के चुनाव में विपक्ष इस मुद्दे को बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का सपना संजोय हुआ था, उसकी भी हवा निकाल दी है.
पंजाब में हिंदू वोटर अहम है
अकाली दल ने जिस कृषि कानून के मुद्दे पर साल 2020 में बीजेपी से नाता तोड़ाकर अलग हुई थी, अब मोदी सरकार ने उसे ही रद्द कर दिया है. पंजाब की सियासत में शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी ढाई दशक से साथ चुनाव लड़ती रही है और दोनों के बीच बेहतर तालमेल रहे हैं. पंजाब के शहरी सीट पर बीजेपी के चलते अकाली दल को वोट मिलते रहे हैं तो ग्रामीण क्षेत्र में बीजेपी को अकाली के दम पर. इतना ही नहीं हिंदू वोटर भी अकाली को बीजेपी के वजह वोट करता रहा है.
पंजाब में हिंदू मतदाता जिस पार्टी के साथ जाते हैं तो सरकार उसी पार्टी की बनती है. आंकड़ों के हिसाब से राज्य में 38.49 फीसद हिंदू और 31.94 फीसदी अनुसूचित जाति ( इनमें हिंदू और सिख दोनों ही हैं) शामिल हैं. कैप्टन अमरिंदर के अपनी पार्टी बनाने के एलान के बाद हिंदू वोटों पर कांग्रेस की परेशानी और बढ़ गई है, क्योंकि अब तक पंजाब में हिंदू मतदाता कैप्टन के साथ रहे हैं. ऐसे में अकाली दल भी हिंदू वोटों को साधने में जुटी है, लेकिन बीजेपी के साथ न होने के चलते बहुत ज्यादा असर नहीं दिखा पा रही है.
बीजेपी पंजाब में शुरू से ही हिंदुओं पर निर्भर रही है. बीजेपी अपनी नजर अभी तक 45 सीटों पर लगा रखी है, जहां पर 60 फीसद से अधिक हिंदू आबादी है. बीजेपी कृषि कानून को वापस लेकर बड़ा सियासी दांव चल दिया है और अब हिंदू वोटों के साथ-साथ कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ भी हाथ मिला सकती है. कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद पंजाब की सियासी हालत बदल सकते हैं. ऐसे में अकाली दल भी गठबंधन पर नए सिरे से सोच सकता है, क्योंकि उसकी नाराजगी तीन कृषि कानून थे.