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कुर्सी मिली मोहलत नहीं: चरणजीत सिंह चन्नी को चार महीने में पार करनी होंगी ये बड़ी चुनौतियां 

पंजाब में कांग्रेस ने भले ही चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम की कुर्सी सौंप दी हो, लेकिन  यह सफर उनके लिए आसान नहीं होने वाला है. चार महीने बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में चन्नी के सामने खुद के साबित करने से लेकर 2022 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी जैसी कई चुनौतियां हैं. 

पंजाब के नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 20 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST
  • पंजाब में पहले दलित सीएम चरणजीत सिंह चन्नी
  • चन्नी के सामने कांग्रेस की सत्ता में वापसी बड़ी चुनौती
  • पंजाब के जातीय और क्षेत्रीय संतुलन बनाने का चैलेंज

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के 24 घंटे के बाद कांग्रेस ने मुख्यमंत्री का नाम तय कर लिया है. चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. सियासी गलियारों में नवजोत सिंह सिद्धू और सुखजिंदर रंधावा जैसे नामों की चर्चा चल रही थी, लेकिन भारी उलटफेर के बाद चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर मुहर लगी. चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री होंगे.

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कांग्रेस ने भले ही चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम की कुर्सी सौंप दी हो, लेकिन  यह सफर उनके लिए आसान नहीं होने वाला है. चार महीने बाद पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में चन्नी के सामने खुद के साबित करने से लेकर 2022 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी जैसी कई चुनौतियां हैं. 

कांग्रेस के सामने 2022 की चुनौती

कांग्रेस पंजाब में नए चेहरे के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी, जिसके चलते अमरिंदर की जगह दलित नेता चरणजीत सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई है. ऐसे में उनके के कंधों पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराना एक बड़ी चुनौती होगी. पंजाब में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने है और विपक्षी दल चुनावी अभियान में जुटे हैं. ऐसे में चरणजीत सिंह चन्नी को साबित करने के लिए महज चार महीने का ही समय बचा है. इसमें उन्हें सरकार से लेकर संगठन के लिए कुछ कर खुद को साबित करके दिखाने की चुनौती होगी. 

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खेमों के बीच संतुलन बनाने की चुनौती

पंजाब में कांग्रेस कई गुटों और खेमों के बीच बंटी हुई है. कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू, प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलो जैसे नेताओं के अपने-अपने खेमे हैं, जो एक दूसरे को पावर में नहीं देखना चाहते. अमरिंदर सिंह की कुर्सी भी इसी गुटबाजी के चलते गई है. पिछले साढ़े चार सालों से कांग्रेस पंजाब में बाहरी चुनौती से कहीं ज्यादा पार्टी की आंतरिक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में चरणजीत सिंह चन्नी को सत्ता की कमान संभालने के साथ ही इन्हीं चुनौतियों का सामना करना होगा. अमरिंदर सिंह से लेकर सिद्धू और बाजवा तक के बीच संतुलन कैसे चन्नी बनाकर रखते हैं, यह देखना होगा. 

जाट सिख के विश्वास को बनाए रखना

पंजाब की सियासत अभी तक जाट सिख के इर्द-गिर्द सिमटी रही है और उन्हीं का मुख्यमंत्री बनता रहा है. पंजाब में पहली बार कोई दलित सिख मुख्यमंत्री बनने जा रहा है. चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर कांग्रेस भले इसे मास्टर स्ट्रोक बता रही हो. लेकिन यह जाट सिख नेताओं के गले से नहीं उतर रहा. सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा है कि पंजाब में जट्ट सिख को ही मुख्यमंत्री के रूप में आगे किया जाना चाहिए, क्योंकि पंजाब सिख बहुल राज्य है. अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो चुनाव में सिखों के वोट नहीं मिलेंगे. 

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वहीं, कांग्रेस ने पंजाब के 32 फीसदी दलित वोटों का साधने के लिए चरणजीत सिंह चन्नी को सत्ता सौंप दी है, लेकिन जाट सिख को कैसे साधकर रखेगी यह बड़ी चुनौती है. हालांकि, कांग्रेस ने पंजाब में संगठन की कमान जाट सिख नवजोत सिंह सिद्धू को जरूर सौंप रखी है. ऐसे में चरणजीत सिंह चन्नी के सामने जाट सिख के विश्वास जीतने की भी चुनौती होगी, जिसमें उन्हें सिद्धू, कैप्टन और बाजवा जैसे नेताओं के मदद की भी दरकरार होगी. 

एंटी-इंकम्बेंसी से निपटने की चुनौती

कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी इसी बात पर गई है कि पंजाब में उनके खिलाफ जबरदस्त एंटी-इंकम्बेंसी का माहौल है. पार्टी में कई नेताओं को लगता है कि अगर कैप्टन की अगुवाई में चुनाव हुआ तो उनका जीतना मुश्किल है. ऐसे में कैप्टन को कुर्सी से हटाकर उनकी जगह नए चेहरे को लाती है तो पार्टी के खिलाफ एंटी-इंकम्बेंसी को भी काफी हद तक उनके साथ ख़त्म हो जाएगी. ऐसे में आने वाले चार महीनों के अंदर अगर चुनाव हुए तो पार्टी के लिए जीत का रास्ता साफ़ हो सकता है. कांग्रेस ने इसी फॉर्मूले को अमलीजामा पहनाने के लिए कैप्टन की जगह चरणजीत सिंह चन्नी को सत्ता की कमान सौंपी है, लेकिन देखना है कि सत्ताविरोधी लहर से वो कैसे निपटते हैं. 

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क्षेत्रीय संतुलन साधने की चुनौती

पंजाब की सियासत में बने रहने के लिए सिख और हिंदू समुदाय के बीच ही संतुलन बनाने के साथ क्षेत्रीय बैलेंस बनाए रखना भी एक बड़ा चैलेंज है. पंजाब में मालवा, माझा, दोआबा क्षेत्रों में बंटा हुआ और हर इलाके में अलग-अलग जातीय समीकरण और नेताओं का सियासी वर्चस्व है. कांग्रेस के पास इस समय ऐसा कोई नेता नहीं है जो पंजाब के हर क्षेत्र में अपनी मजबूत पैठ साबित कर सके. यह रुतबा केवल कैप्टन अमरिंदर सिंह को ही हासिल था, लेकिन अब कांग्रेस ने उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बना दिया है, जो दोआबा क्षेत्र से आते हैं. यह इलाका दलित बहुल माना जाता, लेकिन मालवा हिंदू और माझा सिख प्रभावी है. ऐसे में चन्नी दोआबा के साथ-साथ माझा और मालवा के बीच कैसे संतुलन बनाकर रखते हैं. 

किसानों का विश्वास जीतना

पंजाब की सियासत में किसान काफी अहम फैक्टर हैं. कृषि कानूनों को लेकर पंजाब से ही किसानों का आंदोलन शुरू हुआ है और अभी तक जारी है. चरणजीत सिंह चन्नी के सामने किसानों के विश्वास को बनाए रखना और उन्हें अपने पक्ष में करना एक बड़ी चुनौती है. अकाली दल से लेकर आम आदमी पार्टी तक किसानों को साधने में जुटी है. ऐसे में कांग्रेस के सामने भी किसानों को साधकर रखना होगा. यह काम अब चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम के तौर पर करना होगा, क्योंकि किसानों की नाराजगी के चलते बीजेपी ग्रामीण इलाकों में कार्यक्रम तक नहीं कर पा रही है. 

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पंजाब में बिजली मुद्दा

पंजाब में नंबर दो से नंबर वन बनने के लिए आम आदमी पार्टी तमाम बड़े वादे कर रही है, जिसमें 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का भी वादा किया है. पंजाब में बिजली एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. नवजोत सिंह सिद्धू बिजली के मुद्दे पर अमरिंदर सिंह को घेरते रहे हैं. ऐसे में नए सीएम बन चरणजीत सिंह चन्नी को बिजली मुद्दे को हरहाल में हल करने का दबाव होगा. यह देखना होगा कि बिजली समस्या से कैसे निजात दिलाते हैं और आम आदमी के फ्री बिजली देने के वादे की काट भी कैसे तलाशते हैं. 

बेअदबी मामले पर एक्शन

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर की कुर्सी जाने में गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी मामला भी अहम कारण बना है. बेअदबी मामले पर अभी तक कोई एक्शन नहीं हुआ है, जिसे लेकर कांग्रेस के तमाम नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को घेरते रहे हैं. चरणजीत  सिंह चन्नी सीएम बनते ही बेदअबी मामले को लेकर अपना नजरिया रखना होगा और आरोपियों को लेकर सख्त एक्शन लेना होगा. सिख समुदाय के बीच यह एक अहम मुद्दा है, जिसे आम आदमी पार्टी जबरदस्त तरीके से उठा रही है. 

 

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