
पंजाब में दलित समुदाय से चरणजीत सिंह चन्नी पहले ऐसे नेता हैं, जिन्हें राज्य के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला है. कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए नवजोत सिंह सिद्धू, सुनील जाखड़, अंबिका सोनी और सुखजिंदर सिंह रंधावा के नामों पर चर्चाएं चल रही थी, लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी के नाम पर मुहर लगी. ऐसे में सवाल उठता है कि चन्नी के सीएम चयन के पीछे क्या वजह रहीं, जिनके चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह के विकल्प के तौर पर उन्हें कमान सौंपी गई.
चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाकर कांग्रेस ने हर किसी को हैरान कर दिया है. कैप्टन मंत्रिमंडल में चरणजीत टेक्निकल एजुकेशन और इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग मंत्री थे. चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री हैं. इससे पहले पंजाब में सीएम के पद पर हमेशा ही जाट सिख का बोलबाला रहा है, लेकिन कांग्रेस ने पंजाब में जाट मुख्यमंत्री की धारणा को भी तोड़ दिया है और दलित सीएम बनाकर कांग्रेस ने एक तीर से कई समीकरण साधे हैं.
1.दलित फैक्टर
देश में सबसे ज्यादा दलित आबादी पंजाब में ही है, यहां पर 32 फीसदी के करीब दलित हैं. हालांकि, कुछ लोगों को मानना है कि जनगणना के बाद राज्य में दलितों की आबादी बढ़कर 38 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. पंजाब में वैसे तो जाट सिखों की आबादी केवल 20 फीसदी है, लेकिन राज्य की सियासत में इन्हीं का दबदबा रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी के जरिए दलितों को साधने का दांव चला है.
पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटों में से 36 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. कांग्रेस के पास 20 दलित विधायक हैं, जिनमें से तीन को कैप्टन सरकार में मंत्री बनाया गया था. ऐसे में राज्य में दलित सीएम बनाने की लंबे समय से मांग थी. कांग्रेस ने जाट सिख से आने वाले नवजोत सिंह सिद्दू को प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है तो सत्ता की कमान दलित समुदाय से आने वाले चन्नी को देकर जातीय संतुलन बनाने की भी कोशिश की है.
2. विपक्ष के दलित कार्ड का काउंटर
पंजाब की सियासत में विपक्ष दलित कार्ड को जबरदस्त तरीके से खेल रहा था. शिरोमणि अकाली दल ने बसपा के साथ मिलकर सत्ता में वापसी पर दलित डिप्टी सीएम बनाने का वादा कर रखा था तो बीजेपी दलित मुख्यमंत्री बनाने का वादा कर रही थी. वहीं, आम आदमी पार्टी भी दलित वोटों के सहारे सत्ता में आने के लिए दलित उपमुख्यमंत्री की बाद कह रही थी. ऐसे में कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही दलित सीएम के सपने को साकार करने के लिए चरणजीत सिंह चन्नी को उतार दिया. इस तरह कांग्रेस ने विपक्ष के दलित कार्ड को काउंटर करने की कवायद की है.
3. दलित के साथ सिख चेहरा भी
पंजाब की सत्ता की कमान संभालने वाले चरणजीत सिंह चन्नी सिर्फ दलित ही नहीं बल्कि वो सिख भी हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफा देने के बाद कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में पहले हिंदू कार्ड खेलने की कोशिश की और वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी को मुख्यमंत्री बनाने का दांव चला था, लेकिन उन्होंने कह दिया कि पंजाब में कोई हिंदू नहीं बल्कि सिख सीएम होना चाहिए. इसके चलते सुनील जाखड़ की दावेदारी खारिज हो गई. ऐसे में सुखजिंदर सिंह रंधावा ने जाट सिख के नाते सीएम बनाने के लिए खुद की दावेदारी पेश कर दी, लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू उनकी राह में रोड़ा बन गए. ऐसे में दो जाट सिख के बीच खींचतान में कांग्रेस हाईकमान ने दलित सीएम के तौर पर मुहर लगा दी. इससे कांग्रेस को चन्नी के सीएम बनाने से न तो सिख जाट और न ही हिंदू वोट के नाराज होने का खतरा है.
4. सभी खेमो में बेहतर पकड़
कांग्रेस पंजाब में खेमो में बटी हुई है और इसी के चलते कैप्टन अमरिंदर सिंह की कुर्सी गई है. हालांकि, अपनी राजनीतिक सूझबूझ के लिए जाने जाने वाले चन्नी पार्टी में विरोधी खेमे से बातचीत करने में सक्षम होंगे. वो पंजाब के माझा इलाके के उन तीन मंत्रियों के करीबी हैं, जिन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला था. ऐसे में कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी किसी दलित को निशाना बनाना मुश्किल होगा. नवजोत सिंह सिद्धू के लिए भी चरणजीत सिंह चन्नी के लिए टारगेट करना आसान नहीं होगा.
5. जमीनी पकड़ वाले नेता
पंजाब की सियासत में चरणजीत सिंह चन्नी जमीनी स्तर से उठकर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे हैं. खरड़ नगर काउंसिल के प्रधान पद से राजनीतिक यात्रा शुरू करने वाले चरणजीत सिंह चन्नी जमीनी पकड़ वाले नेता माने जाते हैं. वो पहली बार निदर्लीय विधायक चुने गए थे और बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया था और तीसरी बार विधायक बनाकर आए हैं. पंजाब की सियासत में तकनीकी शिक्षा मंत्री के तौर पर वो खासे लोकप्रिय रहे. उन्होंने युवाओं को रोजगार देने के लिए रोजगार मेलों का आयोजन करवाया. नए कॉलेज और केंद्र खोलने के पीछे भी लगातार लगे रहे. पार्टी को उम्मीद है कि वो एक ऐसे राज्य में नौकरी और शिक्षा देने में सक्षम होंगे, जहां से युवाओं का पलायन हो रहा है.