
राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. चुनावी साल में धोरों की धरती का सियासी तापमान बढ़ गया है. राजस्थान विधानसभा में राजेंद्र गुढ़ा ने अपनी ही सरकार को महिलाओं पर अत्याचार रोकने में विफल बता कठघरे में खड़ा कर दिया. मंत्री रहते विधानसभा में महिलाओं पर अत्याचार के बयान के साथ ही गुढ़ा की बोतल से निकले एक और जिन्न चुनावी साल में गहलोत सरकार के लिए गले की फांस बन गया है. वह है लाल डायरी.
चुनावी साल में लाल डायरी ने राजस्थान की सियासी तपिश बढ़ा दी है. विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) चुनावी साल में लाल डायरी को बड़ा मुद्दा बनाएगी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सीकर रैली से ये साफ हो गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल डायरी का जिक्र करते हुए अशोक गहलोत सरकार और कांग्रेस पार्टी पर जमकर वार किए. पीएम ने कांग्रेस पर सरकार के नाम पर लूट की दुकान चलाने का आरोप लगाया और राजस्थान की लाल डायरी को इसका सबसे ताजा उदाहरण बताया.
उन्होंने कहा कि लाल डायरी के नाम से कांग्रेस के बड़े नेताओं की हालत खराब है. लाल डायरी के पन्ने खुले तो अच्छे-अच्छे निपट जाएंगे, कांग्रेस सरकार का डिब्बा गुल हो जाएगा. पीएम मोदी के बयान से एक बात साफ हो गई. वो ये कि बीजेपी लाल डायरी के मुद्दे को विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से उठाएगी. लाल डायरी को लेकर पीएम मोदी ने वार किया तो गहलोत की सफाई आई. अशोक गहलोत ने लाल डायरी को कल्पना बताया और बीजेपी पर राजेंद्र गुढ़ा को मोहरे की तरह इस्तेमाल करने का आरोप मढ़ दिया.
लाल डायरी पर बीजेपी की रणनीति क्या?
राजस्थान की लाल डायरी वास्तविकता हो या कल्पना, विधानसभा चुनाव में गहलोत के लिए ये मुश्किलें बढ़ाती नजर आ रही है. पेपर लीक की घटनाओं को लेकर गहलोत सरकार पहले ही बैकफुट पर थी. अब बीजेपी की रणनीति लाल डायरी के सहारे भ्रष्टाचार को लेकर नैरेटिव सेट करने की है. बीजेपी को लाल डायरी के मुद्दे पर कांग्रेस को घेरना इसलिए भी आसान लग रहा है क्योंकि ये दावा कांग्रेस के ही एक विधायक, राजस्थान सरकार में मंत्री रहे नेता का है.
अशोक गहलोत बैकफुट पर क्यों?
लाल डायरी के मुद्दे पर अशोक गहलोत भी बैकफुट पर नजर आ रहे हैं. पीएम मोदी ने राजस्थान की धरती से राजस्थान सरकार पर लाल डायरी को लेकर वार किए तब गहलोत ने इसे कल्पना बताया. लाल डायरी को लेकर बैकफुट पर चल रहे गहलोत ने हालांकि ये जरूर कहा कि राजस्थान की जनता बीजेपी को लाल झंडी दिखाएगी. गहलोत के बैकफुट पर होने की तीन प्रमुख वजहें हैं- आरोप उस व्यक्ति ने लगाया जो बहुत करीबी था, चुनावी साल, पार्टी के किसी नेता का खुलकर समर्थन में न आना.
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अशोक गहलोत खुद भी कई बार राजेंद्र गुढ़ा की तारीफ कर चुके हैं. राजेंद्र गुढ़ा उस समय भी गहलोत के समर्थन में डटकर खड़े थे जब सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ हरियाणा के मानेसर चले गए थे. तब गहलोत की सरकार बचाने के लिए श्रेय गुढ़ा को भी दिया गया. अब राजेंद्र गुढ़ा ने ही विधानसभा में लाल डायरी लहराकर, लाल डायरी की बात की है. विधानसभा चुनाव में कुछ ही महीने का समय बचा है. राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले गहलोत भी ये बेहतर जानते हैं कि बीजेपी अगर इसे कैश कराने की रणनीति में सफल रही तो चुनाव में मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी.
सीएम गहलोत के बैकफुट पर होने की एक वजह इस मुद्दे पर तमाम बड़े नेताओं की चुप्पी भी है. राजेंद्र गुढ़ा के खिलाफ एक्शन तो हो गए. गहलोत ने महिलाओं पर अत्याचार वाले बयान के ठीक बाद ही गुढ़ा को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया. गुढ़ा को कांग्रेस से निष्कासित भी कर दिया गया लेकिन इस मुद्दे पर बड़े नेता गहलोत के समर्थन में खुलकर आने में झिझक रहे हैं.
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डायरी ने जब पलट दी थी सत्ता
डायरी का सत्ता कनेक्शन सियासत में नई बात नहीं. वीपी सिंह ने बोफोर्स घोटाले को लेकर स्वीडिश रेडियो ने एक खबर चलाई थी. बोफोर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर मार्टिन आर्डोबो की डायरी में एंट्री के आधार पर स्वीडिश रेडियो ने भारतीय नेताओं और अधिकारियों को करोड़ों रुपये रिश्वत दिए जाने का दावा किया था. राजीव गांधी उस समय प्रधानमंत्री थे. वीपी सिंह ने 1989 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को दम-खम के साथ उछाला और कांग्रेस को चुनाव में हार के साथ सत्ता गंवानी पड़ी थी.
इसी तरह एक समय बीजेपी का प्रमुख चेहरा रहे लालकृष्ण आडवाणी को भी डायरी की वजह से संसद की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ गया था. दरअसल, सीबीआई ने 1991 में भिलाई इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन के प्रबंध निदेशक सुरेंद्र कुमार जैन के फार्म हाउस पर छापेमारी की थी जिसमें दो डायरी बरामद हुई थीं. इनमें कोडवर्ड में कई नेताओं के नाम दर्ज थे. इन नेताओं को रिश्वत देने की बात थी.
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आडवाणी का नाम भी उछला. आडवाणी ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. हालांकि, आडवाणी को कोर्ट ने 1997 में बरी कर दिया था. इसी हवाला कांड से जुड़ी डायरी के फेर में पीवी नरसिम्हाराव की सरकार के कुछ मंत्रियों को भी इस्तीफा देना पड़ा था.