
राजस्थान चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पांच साल बाद पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर ली है. बीजेपी को 116 सीटें मिलती नजर आ रही हैं तो वहीं सत्ताधारी कांग्रेस 68 के आंकड़े तक ही पहुंच पा रही है. राजस्थान की जनता के इस जनादेश की वजह क्या है? कांग्रेस की बड़ी हार के पीछे पांच मुख्य कारण क्या हैं?
1- गुटबाजी
कांग्रेस चुनाव के कुछ महीने पहले तक गुटबाजी से जूझती नजर आई. सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की खींचतान का भी कार्यकर्ताओं पर असर पड़ा, जनता के बीच गलत संदेश गया. हालांकि, चुनाव से ठीक पहले दोनों ही नेता हम साथ-साथ हैं का संदेश देते नजर आए लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
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कांग्रेस जहां गुटबाजी से जूझती रही, वहीं बीजेपी ने अंतर्कलह को कहीं बेहतर तरीके से हैंडल किया. सीएम फेस का ऐलान दोनों ही दलों ने नहीं किया, लेकिन कांग्रेस की ओर से सीएम अशोक गहलोत ही अघोषित सीएम फेस थे. वहीं, बीजेपी ने गुटबाजी से पार पाने के लिए वसुंधरा राजे को न सिर्फ सीएम फेस घोषित करने से परहेज किया बल्कि बड़े नेताओं को चुनाव मैदान में उतार दिया. नतीजा ये हुआ कि नेताओं ने अपनी साख बचाने के लिए उस सीट पर जोर लगाया और इसका सकारात्मक असर आसपास की सीटों पर भी पड़ा.
2- चुनाव का मोदी बनाम गहलोत हो जाना
राजस्थान का चुनाव मोदी बनाम गहलोत हो जाना भी कांग्रेस को भारी पड़ा. पीएम मोदी के चेहरे ने कांग्रेस के जातिगत जनगणना के दांव की धार भी कुंद कर दी. पीएम मोदी ने राजस्थान में ताबड़तोड़ चुनावी रैलियां कीं वहीं कांग्रेस की ओर से प्रचार का भार सीएम गहलोत के कंधों पर अधिक नजर आया. चुनाव प्रचार के लिए राहुल गांधी मैदान में उतरे तो लेकिन वह भी महज खानापूर्ति ही लगा. चुनाव पूरी तरह से मोदी बनाम गहलोत हो गया और इसका लाभ भी बीजेपी को मिला.
3- भारी पड़ा कन्हैयालाल हत्याकांड
राजस्थान चुनाव में बीजेपी ने उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड का मुद्दा खूब उठाया. बीजेपी की ये रणनीति भी असर लाती नजर आ रही है. उदयपुर, मारवाड़ रीजन में आता है. राजस्थान की राजनीति में कहा जाता है कि जो मेवाड़ जीता, वह राजस्थान जीता. बीजेपी को जीत मिलती नजर आ रही है तो उसके पीछे कन्हैयालाल हत्याकांड के साथ ही कानून-व्यवस्था के मुद्दे का भी अहम रोल माना जा रहा है.
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4- लुभावनी योजनाओं पर भारी पेपर लीक- लाल डायरी
अशोक गहलोत की सरकार ने चुनावी साल में एक के बाद एक चुनावी दांव चले. चिरंजीवी योजना के तहत हेल्थ इंश्योरेंस की लिमिट बढ़ाकर 50 लाख रुपये करने का वादा किया. सस्ते गैस सिलेंडर समेत कई लुभावनी योजनाओं पर पेपर लीक, लाल डायरी और भ्रष्टाचार के आरोप भारी पड़े. चुनाव के बीच लाल डायरी के कुछ पन्ने भी सामने आए जिसका मतदाताओं के बीच प्रतिकूल मैसेज गया.
5- बागियों ने किया डेंट
कांग्रेस की हार के पीछे बागी भी बड़ी वजह माने जा रहे हैं. कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बाद कई नेताओं ने पार्टी से बगावत कर बतौर निर्दल उम्मीदवार ताल ठोक दी. कुछ बीजेपी और दूसरे दलों के टिकट पर भी मैदान में उतर गए. इन बागियों ने भी कांग्रेस को डेंट किया है. इसके ठीक उलट बीजेपी ने एक-एक बागी को मनाने के लिए बड़े नेताओं को जिम्मेदारी दी और उनको मनाने की पूरी कोशिश की. कई बागी मान भी गए और बीजेपी को इसका लाभ मिलता नजर आ रहा है.