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बैकवर्ड, दलित और मुस्लिम, सपा का नया फॉर्मूला... यूपी में BJP के लिए कैसे बन रहा चुनौती

यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव ने बड़ी जीत दर्ज की है. इसी तरह रामपुर में बीजेपी और खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव में आरएलडी गठबंधन ने जीत दर्ज की. मैनपुरी में डिंपल को उतारने का अखिलेश का दांव हिट रहा. खतौली में जयंत चौधरी का फॉर्मूला भी हिट रहा जबकि रामपुर में सपा का दांव नहीं चला.

अखिलेश यादव. (फाइल फोटो-PTI) अखिलेश यादव. (फाइल फोटो-PTI)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:02 PM IST

उत्तर प्रदेश की मैनपुरी लोकसभा सीट और रामपुर व खतौली विधानसभा उपचुनाव के नतीजे गुरुवार 8 दिसंबर को घोषित हो गए. मैनपुरी सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) की उम्मीदवार डिंपल यादव ने बड़ी जीत दर्ज की तो वहीं आजम खान के गढ़ रामपुर में बीजेपी ने किला फतह कर दिया. जबकि बीजेपी की मजबूत सीट रही खतौली में आरलडी गठबंधन ने जोरदार जीत हासिल की है. 

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दरअसल, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी से दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की दोस्ती बनते-बनते रह गई थी, लेकिन उपचुनाव में तीनों नेता साथ आए. इस तरह से सपा-आरएलडी का बैकवर्ड, दलित और मुस्लिम का साथ रखना फॉर्मूला उपचुनाव में हिट रहा. सपा की नई सोशल इंजीनियरिंग उपचुनाव में सियासी संजीवनी बनी और उसके चक्रव्यूह में बीजेपी का मात खाना पड़ गया. 

यूपी के नगर निकाय और लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले होने वाले मैनपुरी, रामपुर और खतौली उपचुनाव पर पूरे देशभर की निगाहें लगी हुई थीं. मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के निधन के चलते उपचुनाव हुआ. आजम खान और विक्रम सैनी को कोर्ट से सजा मिलने के चलते रामपुर और खतौली सीट पर उपचुनाव हुए. उपचुनाव भले ही तीन सीटों के लिए हुए हों, लेकिन इसका असर भविष्य की सियासत पर भी पड़ना तय है. 

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सपा के सबसे मजबूत दुर्ग मैनपुरी-रामपुर को ढहाकर बीजेपी यूपी फतह का संदेश देना चाहती थी, जबकि खतौली सीट पर बीजेपी को मात देने के लिए आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने सियासी चक्रव्यूह रचा. उपचुनाव में बीजेपी ही नहीं बल्कि अखिलेश-जयंत-चंद्रशेखर की एकता का भी टेस्ट था, जिसमें वे सफल भी हुए. शिवपाल यादव ने मैनपुरी में डेरा जमाए रखा तो चंद्रशेखर ने रामपुर में सपा और खतौली में आरएलडी के प्रचार किया. उपचुनाव में मायावती के कैंडिडेट न उतरने का लाभ मैनपुरी में सपा तो खतौली में आरएलडी को मिला, लेकिन रामपुर में बीजेपी को फायदा हुआ. 

जयंत चौधरी ने बनाया नया फॉर्मूला 

जयंत चौधरी ने जाट-मुस्लिम तक अपनी पार्टी को सीमित रखने के बजाय पश्चिमी यूपी में सियासी समीकरण को देखते हुए खतौली सीट पर नया राजनीतिक प्रयोग किया. आरएलडी ने खतौली सीट पर सैनी समुदाय के कैंडिडेट उतारने के बजाय गुर्जर समुदाय के मजबूत नेता मदन भैया को उतारा और चंद्रशेखर आजाद के जरिए दलित समुदाय के वोटों का साधने का दांव चला. जयंत चौधरी का यह प्रयोग सियासी खतौली सीट पर बीजेपी के लिए चिंता सबब बना. योगी आदित्यनाथ सहित बीजेपी की तमाम नेताओं ने खतौली सीट पर प्रचार किया, लेकिन पार्टी उम्मीदवार राजकुमार सैनी के लिए जीत नहीं दिला सके.  

खतौली सीट मुजफ्फरनगर जिले में आती है और बीजेपी दो बार से यह सीट जीत रही है. मुजफ्फरनगर दंगे मामले में विक्रम सैनी को सजा हुई है, जिसके चलते उनकी सदस्यता हो गई. ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट काफी महत्वपूर्ण थी. इस सीट पर जाट-गुर्जर-सैनी-मुस्लिम वोटर काफी बड़ी संख्या में है. इसी समीकरण को देखते हुए जयंत ने इस बार सैनी और मुस्लिम के बजाय गुर्जर समाज पर दांव खेला. इस तरह जयंत ने अपने सियासी कंबिनेशन को मजबूत करने की रणनीति अपनाई और इसके लिए उन्होंने मदन भैया के जरिए गुर्जर-मुस्लिम-जाट समीकरण बनाया. 

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मैनपुरी में अखिलेश का दांव रहा हिट

मुलायम सिंह यादव की कर्मभूमि रही मैनपुरी सीट को बचाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने किसी तरह की कोई भी गुंजाइश नहीं छोड़ी. डिंपल यादव के नामांकन के बाद से अखिलेश मैनपुरी में डेरा डाले रहे और चाचा शिवपाल यादव के साथ भी अपने सारे गिले-शिकवे दूर कर लिए. बीते चुनाव में एक-दो सभाएं करने वाले सैफई परिवार ने इस बार गांव-गांव की दौड़ लगाई और घर-घर जाकर वोट मांगे. इस तरह मैनपुरी सीट पर अखिलेश का डिंपल को उतारने का दांव हिट रहा. 

मैनपुरी सीट पर अखिलेश-शिवपाल ना सिर्फ यादव और मुस्लिम वोटों को बल्कि ब्राह्मण, गैर-यादव ओबीसी और दलित समुदाय के वोटों को भी साधने के लिए कवायद करते नजर आए. उपचुनाव में कांग्रेस और बसपा ने अपने कैंडिडेट नहीं उतारे थे. ऐसे में दलित वोटों का बीजेपी के पक्ष में जाने की संभावना दिख रही थी, लेकिन अखिलेश ने दलित समुदाय से लेकर तमाम अलग-अलग जातियों को जोड़े रखने के लिए खुद मोर्चा संभाल रखा था. महिला वोटर्स को साधने के लिए डिंपल यादव खुद पसीना बहा रही थी. 

सपा का गढ़ माने जाने वाले ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों पर बीजेपी अपनी जीत का परचम लहरा चुकी है. कन्नौज, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, बदायूं, इटावा, आजमगढ़ और रामपुर जैसे इलाके शामिल हैं. मैनपुरी सैफई परिवार की घर की सीट मानी जाती है. मुलायम सिंह से लेकर धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव तक सांसद रहे हैं. यही वजह है कि बीजेपी यह सीट जीतकर पूरे देश में नया संदेश देना चाहती थी, जिसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दो बार प्रचार करने आना पड़ा तो केशव मौर्य सहित तमाम बीजेपी नेताओं ने डेरा जमाए रखा लेकिन अखिलेश-शिवपाल की जोड़ी ने बीजेपी को मैनपुरी सीट पर कमल खिलाने के लिए सफल नहीं होने दिया. शिवपाल ने अपनी विधानसभा क्षेत्र जयवंतनगर से डिपंल यादव को दो लाख से ज्यादा वोटों से जीत दिलाई है.

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रामपुर में खिला बीजेपी का कमल

रामपुर विधानसभा सीट सपा की मजबूत सीट मानी जाती थी. सपा ने आजम खान की सीट से आसिम राजा को उतारा तो बीजेपी से आकाश सक्सेना मैदान में थे. बीजेपी आजम के तमाम करीबी मुस्लिम नेताओं को अपने साथ मिलाया. रामपुर लोकसभा सीट को बीजेपी पहले ही अपने नाम कर चुकी थी और अब विधानसभा सीट पर भी कब्जा कर लिया है. रामपुर में कमल खिलने से सपा के साथ-साथ आजम खान को बड़ा झटका लगा है.  

आजम के तमाम सिपहसलारों के बीजेपी के खेम में खड़े हो जाने के चलते रामपुर सीट को बचाए रखना सपा को मुश्किल लग रहा था. आखिरी वक्त में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने रामपुर में पहुंचकर आजम खान को हौसला दिया और मुस्लिम वोटों के साथ-साथ दलित समुदाय को भी साधने की कवायद की गई. हालांकि, बीजेपी के दांव और सत्ता में रहना का उसे लाभ मिला जबकि सपा को इसी का नुकसान उठाना पड़ा. 

अखिलेश-जयंत-चंद्रशेखर की नई जोड़ी 

अखिलेश-जयंत चौधरी के साथ चंद्रशेखर आजाद का उपचुनाव में साथ आना यूपी के नए बनते समीकरण की ओर इशारा कर रही है. अखिलेश-जयंत चौधरी-चंद्रशेखर की तिकड़ी आगामी लोकसभा चुनाव में एक साथ मिलाकर उतरते हैं तो यूपी में बीजेपी और बीएसपी, दोनों के लिए राजनीतिक तौर पर कड़ी चुनौती हो सकती है. खासकर पश्चिमी यूपी में, जहां पर जाट, मुस्लिम, दलित वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम. दलित वोटबैंक के लिए चंद्रशेखर ट्रंप कार्ड साबित हो सकते हैं. इसके अलावा खतौली के बहाने गुर्जर समुदाय को भी साध जोड़ने की कोशिश की गई है.  

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बता दें कि पश्चिम यूपी में जाट 20 फीसदी के करीब हैं तो मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर हैं. इसके अलावा यूपी में गुर्जर भले ही तीन फीसदी हैं, लेकिन पश्चिमी यूपी में 15 फीसदी के करीब हैं. इस तरह से पश्चिम यूपी में अगर जाट-मुस्लिम-दलित-गुर्जर का समीकरण बनता है तो बीजेपी के साथ-साथ बसपा के लिए भी चुनौती खड़ी हो जाएगी. एक तरह से सपा-आरएलडी की बैकवर्ड, दलित और मुस्लिम की नई सोशल इंजीनियरिंग बीजेपी के लिए नई चुनौती बन गई है.

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