
केरल में लेफ्ट और कांग्रेस के अलावा बीजेपी भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी के तौर पर उभर रही है. वैसे केरल में बीजेपी एक राजनीतिक पार्टी के रूप में 1987 के विधानसभा चुनाव से अपनी मौजूदगी दज करा दी थी. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी है. पार्टी में अपने वयोवृद्ध नेता 86 साल के ओ राजागोपाल को मैदान में उतारा है.
राजगोपाल की अगुवाई में सफलता की उम्मीद
बीजेपी राजगोपाल की जीत के साथ केरल में पार्टी की पकड़ को मजबूत करना चाहती है. हालांकि 2011 के विधानसभा चुनाव में ही राजगोपाल को जीत की उम्मीद थी. लेकिन 6400 वोटों से हार गए. एक तरह से 2011 के विधानसभा चुनाव ने ही बीजेपी को आगे की राह दिखा दी, क्योंकि पार्टी को जीत तो एक भी सीट पर नहीं मिली थी लेकिन वोट फीसदी में बढ़ोतरी ने पार्टी के अंदर जान फूंक दी. बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार ओ राजागोपाल के नेतृत्व में पार्टी को करिश्माई सफलता मिलेगी. पार्टी ने 86 साल के राजागोपाल को नेमोम विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है.
जन संघ के दौर में पार्टी से जुड़े राजगोपाल
ओ राजगोपाल का जन्म 15 सितंबर 1929 को केरल के पालक्काड़ में हुआ है. इन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री गवर्मेंट विक्टोरिया कॉलेज पालक्काड़ से ली. इनकी पत्नी का नाम शांथा कुमारी है. राजगोपाल के एक बेटे हैं जिनका नाम श्यामाप्रसाद है. राजगोपाल दीनदयाल उपाध्याय की नीतियों से प्रभावित होकर 1960 में भारतीय जनसंघ से जुड़कर राजनीति में कदम रखा. राजनीति में कदम रखने से पहले राजगोपाल एक वकील के तौर पर जाने जाते थे. जनसंघ का दामन थामते ही पार्टी ने इन्हें राज्य का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. इन्होंने पहली बार 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ा. चुनाव में हार हुई. राजगोपाल अभी तक 6 बार केरल से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन सफलता नहीं मिली है.
अटल सरकार में मिली थी अहम जिम्मेदारी
हार में राजगोपाल की अपनी जीत को देखते हैं. हार के बावजूद ये जनता से बेहद करीब रहे. जिस वजह से साल-दर-साल केरल में बीजेपी की वोट फीसदी में बढ़ोतरी हुई. राजगोपाल अटल बिहारी वाजपेयी के बेहद करीब रहे हैं. जिसकी वजह से ये कई मंत्रीपद से नवाजे गए. इन्हें एनडीए सरकार के दौरान राज्यमंत्री भी बनाया गया था. राजगोपाल 1992 से 2004 तक मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद रहे. इमरजेंसी के दौरान इन्हें भी सलाखों में बंद कर दिया गया था.
निकाय चुनाव में जीत से बीजेपी उत्साहित
पिछले कुछ सालों में केरल की धरती पर बीजेपी की नींव मजबूत हुई है. इसी क्रम में पिछले साल केरल में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी को बड़ी जीत मिली. केरल में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के गढ़ में सेंधमारी करते हुए बीजेपी ने तिरुवनंतपुरम नगर निगम की 100 सीटों में से 33 सीटों पर जीत हासिल की. जबकि लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने 42 सीटों पर कब्जा किया. बीजेपी ने 17 ग्राम पंचायतों और एक नगरनिगम पर कब्जा करने के अलावा कई पॉकेट वार्डों में भी सीटें हासिल कीं.
RSS की पकड़ केरल में जमीनी स्तर पर
विपक्ष भी बीजेपी की उभार से घबराई हुई है. क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर अपनी वोट फीसदी से बीजेपी ने लोगों को चौंकाया था. साथ ही 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी स्थिति में सुधार लाने में सफल रही थी. 2011 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को 6 फीसदी वोट मिले थे जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 10 फीसदी तक हो गई. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह रहा कि बीजेपी तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस नेता शशि थरूर को कड़ी चुनौती देने में सफल रही. वहीं दूसरी ओर केरल में आरएसएस की पकड़ बेहद मजबूत है और इसी को बीजेपी इस बार भुनाने में जुटी है. बीजेपी केरल में इस बार बेहद आक्रामक तरीके से हिंदुत्व कार्ड भी खेलती नजर आ रही है.