
लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी को मात देने के लिए उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा ने गठबंधन से कांग्रेस को अलग रखकर चुनावी मैदान में उतरने जा रहे हैं. गठबंधन में दोनों दल चौधरी अजित सिंह की पार्टी आरएलडी को अपने साथ रखना चाहती है, लेकिन सीट शेयरिंग का पेच फंसा हुआ है. सियासी तौर पर देखा जाए तो आरएलडी के पास कांग्रेस, बीजेपी और सपा-बसपा तीनों के साथ जाने के विकल्प खुले हुए हैं, लेकिन अजित सिंह की पहली पसंद अखिलेश-मायावती हैं.
सपा-बसपा गठबंधन
आरएलडी हर हाल में सपा-बसपा के गठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है. चौधरी अजित सिंह इस बात को बाखूबी समझते हैं कि महज जाट मतों से सहारे चुनावी जंग नहीं फतह की जा सकती है. ऐसे में सपा-बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से दलित और मुस्लिम वोट भी उनकी झोली में होगा. इस तरह से वो अपनी परंपरागत सीटें बचाने में कामयाब हो सकते हैं.
सूबे में सपा-बसपा के बन रहे गठबंधन में आरएलडी औपचारिक हिस्सा होगी, लेकिन सीटों को लेकर अभी भी असमंजस बना हुआ है. गठबंधन आरएलडी को 3 सीटें देना चाहता है, लेकिन वह 6 सीटें मांग रही है. हालांकि सूत्रों की मानें तो चौधरी अजित सिंह को अगर अखिलेश और मायावती चार सीटें भी देने को तैयार हो जाते हैं तो इनकी पहली पसंद यही गठबंधन होगा. ऐसा नहीं होता है तो फिर दूसरे विकल्प के तौर पर वह विचार कर सकती है.
कांग्रेस गठबंधन
चौधरी अजित सिंह के लिए दूसरे विकल्प के तौर पर कांग्रेस के दरवाजे खुले हुए हैं. सपा-बसपा गठबंधन के बाद कांग्रेस दूसरे क्षेत्रीय दलों को साथ गठबंधन की संभावना तलाश रही है. माना जा रहा है कि शिवपाल यादव सहित छोटे दलों के साथ मिलकर कांग्रेस नया गठबंधन बना सकती है, ऐसे में अजित सिंह को भी साथ लाने की कोशिश होगा.
कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने आजतक से कहा कि अजित सिंह अगर उनके साथ आते हैं तो फिर सपा-बसपा गठबंधन का महत्व पश्चिम यूपी में नहीं रह जाएगा. वहीं, आरजेडी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुकी है और यूपीए-2 में सरकार में शामिल रही थी. इस तरह से कांग्रेस के साथ भी जाने का वह फैसला कर सकते हैं.
तीसरा विकल्प एनडीए
आरएलडी के लिए तीसरे विकल्प के तौर पर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के दरवाजे भी खुले हैं. अजित सिंह एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं. इतना ही नहीं 2009 के लोकसभा चुनाव में आरएलडी बीजेपी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी थी. विपक्ष की एकजुटता को देखते हुए बीजेपी भी दूसरे दलों को एनडीए में हिस्सा बनाने की कोशिशों में है. ऐसे में आरएलडी अगर बीजेपी के साथ हाथ मिला लेती हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है.