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पीएम मोदी का दावा, बीआरएस का जवाब... तेलंगाना में बीजेपी के साथ क्यों नहीं जा सकते केसीआर?

तेलंगाना में चुनाव हैं और चुनावी साल में सूबे की सियासत गर्म हो गई है. पीएम मोदी ने दावा किया कि केसीआर ने उनसे कहा था कि एनडीए में शामिल होना चाहते हैं. इसे लेकर अब बीआरएस का जवाब भी आ गया है. बीआरएस संसद में कई मौकों पर सरकार के लिए संकटमोचक साबित हुई है. ऐसे में बीआरएस और बीजेपी तेलंगाना में क्यों साथ नहीं आ सकते?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर (फाइल फोटो) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 04 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 3:05 PM IST

तेलंगाना में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनाव से पहले सूबे की सियासत गर्मा गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को निजामाबाद में एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री केसीआर का जिक्र करते हुए कहा कि एकबार उन्होंने मुझसे कहा था कि हम भी एनडीए का हिस्सा बनना चाहते हैं. हैदराबाद नगर निगम में हमारा समर्थन करें. मैंने केसीआर से कहा कि मोदी आपके साथ नहीं जुड़ सकते, आपके कर्म ऐसे हैं.

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पीएम मोदी के इस बयान के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केसीआर पर हमला बोल दिया. राहुल गांधी ने कहा, "मैंने तो पहले ही कहा था कि बीआरएस का मतलब बीजेपी रिश्तेदार समिति है." मोदी के बयान के बाद सियासी हंगामा बरपा तो अब बीआरएस का भी जवाब आया है. केसीआर के पुत्र और बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव (केटीआर) ने पीएम मोदी के बयान को सफेद झूठ बताया है.

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केटीआर ने पीएम मोदी को फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखने की सलाह देते हुए कहा है कि वह महान स्क्रिप्ट राइटर और स्टोरीटेलर बनेंगे, ऑस्कर भी जीत सकेंगे. उन्होंने बीजेपी को बिगेस्ट झूठा पार्टी बताते हुए ये भी दावा किया है कि 2018 के चुनाव में पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर के लक्ष्मण के जरिए गठबंधन का प्रस्ताव भेजा था जिसे हमने अगले ही पल अस्वीकार कर दिया था. बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष ने सवालिया लहजे में कहा कि क्या दिल्ली के अप्रूवल के बिना ऐसा हो सकता है? हम लड़ाकू हैं, धोखेबाज नहीं.

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केटी रामाराव (फाइल फोटो)

पीएम मोदी के बयान, राहुल गांधी के बीआरएस पर वार और अब केटीआर की सफाई के बीच कई सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या तेलंगाना में बीजेपी और बीआरएस साथ आ सकते हैं? संसद में कई अहम मौकों पर बीआरएस के समर्थन ने सरकार का बेड़ा पार किया. ऐसे में बहस इसे लेकर भी शुरू हो गई है कि जब केंद्र में समर्थन से गुरेज नहीं है तो फिर केसीआर तेलंगाना में बीजेपी के साथ क्यों नहीं जा सकते?

वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर श्रीराम त्रिपाठी ने कहा कि समर्थन और गठबंधन लगते एक जैसे हैं लेकिन इनके बीच एक महीन रेखा होती है. गठबंधन प्रतिबद्धता की डोर की तरह है. बीआरएस के केंद्र सरकार को किसी मुद्दे समर्थन कर देने भर से ये नहीं मान लेना चाहिए कि गठबंधन हो जाएगा. बीआरएस जानती है कि बीजेपी के साथ गठबंधन का मतलब होगा उसे खड़े होने के लिए अपनी जमीन देना और मुझे नहीं लगता कि केसीआर ऐसा करेंगे.

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राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि केसीआर राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं कि सूबे की राजनीति में बीजेपी जैसी पार्टी को मजबूती से खड़े होने का अवसर दे दें. बीजेपी की राजनीति का आधार हिंदुत्व है और केसीआर की सियासत के सांचे में मुस्लिम मतदाता भी अहम किरदार हैं. एक फैक्टर ये भी है कि राज्य में संसाधन तो बीआरएस के ही खर्च होने हैं और लाभ बीजेपी को होगा.

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तेलंगाना, खासकर हैदराबाद में कई सीटें ऐसी हैं जिन पर जीत और हार तय करने में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. तेलंगाना में बीआरएस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम का गठबंधन है. असदुद्दीन ओवैसी का हैदराबाद और आसपास के इलाकों में अच्छा प्रभाव है. आधार तलाश रही बीजेपी के साथ जाने के लिए बीआरएस ओवैसी जैसे प्रभावशाली साथी को छोड़ने का फैसला लेगी? ऐसा नहीं लगता. अब असदुद्दीन ओवैसी और बीजेपी एक गठबंधन में रहेंगे, ये भी संभव नहीं दिखता.

दूसरा पहलू ये भी है कि बीजेपी अगर अकेले चुनाव मैदान में उतरती है तो बीआरएस की 10 साल की सरकार के कामकाज से नाराज मतदाताओं को कांग्रेस के साथ एक और विकल्प मिल जाएगा. केसीआर की रणनीति भी यही होगी कि एंटी बीआरएस वोट एकमुश्त किसी के साथ जाने की जगह विपक्षी पार्टियों में बंट जाए.

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साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सात फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीत सकी बीजेपी के लोकसभा चुनाव 2019 और 2020 के निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन ने बीआरएस और अन्य दलों की चिंता बढ़ा दी. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में 20 फीसदी वोट शेयर के साथ चार सीटें जीत लीं. विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो बीजेपी ने 21 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई थी तो वहीं 22 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे.

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बीजेपी के धर्मपुरी अरविंद ने सीएम केसीआर की बेटी के कविता को भी शिकस्त दे दी थी. ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के चुनाव में भी बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले और पार्टी 150 में से 48 वार्ड में जीत हासिल करने में सफल रही. इन दो चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के बाद बीजेपी नेताओं का मोरल हाई है तो वहीं केसीआर भी सतर्क हैं.

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