
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी गठबंधन फाइनल कर अब माहौल बनाने के लिए उतरे हैं. अखिलेश-जयंत मंगलवार को पश्चिमी यूपी में बीजेपी को अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास दिलाने के लिए मेरठ रैली में एक साथ पहली बार नजर आएंगे. किसान आंदोलन के चलते सभी की निगाहें सपा-आरएलडी की रैली पर है, जहां से पश्चिमी यूपी के लिए दोनों ही नेता सियासी संदेश देते नजर आएंगे.
विरासत से सियासत में आए अखिलेश-जयंत
यूपी की सियासत में अखिलेश-जयंत चौधरी दोनों ही नेता अपने-अपने पिता की राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं. हालांकि, एक दौर में जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजित सिंह के मुख्यमंत्री बनने के आरमानों पर अखिलेश के पिता मुलायम सिंह ने पानी फेर दिया था. 1989 चुनाव में जनता दल की जीत के बाद चौधरी अजित सिंह का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित हो चुका था, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने ऐसा दांव चला कि वो सीएम बनने का सपना संजोते रह गए और खुद मुलायम सिंह सीएम बन बैठे.
इस सियासी घटना के चलते सिर्फ अजित सिंह और मुलायम सिंह यादव के बीच ही दूरियां पैदा नहीं की बल्कि उसने चौधरी चरण सिंह का जनाधार रही दो शक्तिशाली किसान जातियों जाट और यादव को भी विभाजित कर दिया था. हालांकि, सपा और आरएलडी दोनों ही पार्टियां एक ही राजनीतिक धारा से निकली है. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण के शिष्य मुलायम सिंह यादव ने सपा का गठन किया तो बेटे चौधरी अजित सिंह ने आरएलडी की बुनियाद रखी. एक दौर में दोनों ही नेता जनता दल में हुआ करते थे.
1989 में अजित सिंह के अरमानों पर फिरा पानी
अस्सी के दशक में जनता पार्टी, जन मोर्चा, लोकदल (अ) और लोकदल (ब) ने मिलकर जनता दल का गठन किया. चार दलों की एकजुट ताकत ने असर दिखाया. गैर-कांग्रेसी विपक्षी दलों को 208 सीटों पर जीत मिली थी. यूपी में उस समय कुल 425 विधानसभा सीटें थी, जिसके चलते जनता दल को बहुमत के लिए 14 अन्य विधायकों की जरूरत थी. जनता दल की ओर से मुख्यमंत्री पद के दो उम्मीदवार थे. लोकदल (ब) के नेता मुलायम सिंह यादव और दूसरे चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत की दावेदारी कर रहे उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह थे.
जनता दल की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए चौधरी अजित सिंह का नाम तय हो चुका था. चौधरी अजित सिंह शपथ लेने के तैयारियां कर रहे थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने ऐसा दांव चला कि जनमोर्चा के विधायक अजित सिंह के खिलाफ खड़े हो गए और मुलायम को सीएम बनाने की मांग कर बैठे. इस तरह अजित सिंह मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं ली और मुलायम सिंह सीएम बन गए.
डीपी यादव मुलायम के लिए बने कर्णधार
केंद्र में उस समय जनता दल की सरकार थी और विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री थे. यूपी में पार्टी की जीत के साथ ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि अजित सिंह मुख्यमंत्री होंगे और मुलायम सिंह यादव उपमुख्यमंत्री. अजित सिंह अपनी ताजपोशी के लिए लखनऊ पहुंचे तो मुलायम सिंह यादव ने उपमुख्यमंत्री पद ठुकरा कर सीएम पद की दावेदारी कर दी ऐसे में वीपी सिंह ने फैसला किया कि मुख्यमंत्री पद का फैसला लोकतांत्रिक तरीके से विधायक दल की बैठक में गुप्त मतदान के जरिए होगा. इसके बाद फिर जो हुआ, वह सूबे की रोचक राजनीति का एक बड़ा किस्सा है.
पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के आदेश पर मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमन भाई पटेल बतौर पर्यवेक्षक यूपी भेजे गए. केंद्र के द्वारा भेजे गए पर्यवेक्षकों के द्वारा एक बार कोशिश की गई कि मुलायम सिंह यादव यूपी के उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर लें, लेकिन, मुलायम सिंह इसके लिए तैयार नहीं हुए. मुलायम ने तगड़ा दांव खेलते हुए बाहुबली डीपी यादव की मदद से अजीत सिंह के खेमे के 11 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया. इस काम में उनकी मदद बेनी प्रसाद वर्मा भी कर रहे थे.
मुलायम से पांच वोट से हारे चौधरी अजित
जनता दल के विधायक दल की बैठक के लिए दोपहर में विधायकों को लेकर गाडियों का काफिला विधानसभा में मतदान स्थल पर पहुंचा. विधायक अंदर थे और सारे दरवाजे बंद कर दिए गए. बाहर जनता दल के कार्यकर्ताओं का हुजूम लगातार मुलायम सिंह यादव जिंदाबाद के नारे लगा रहा था और दोनों ओर से समर्थक बंदूक लहरा रहे थे. जनता दल विधायक दल की बैठक में हुए मतदान में अजित सिंह महज 5 वोट से हार गए और मुलायम सिंह अचानक मुख्यमंत्री बन गए.
चौधरी अजित सिंह को लखनऊ से मुलायम सिंह यादव के मुकाबले हार कर लौटना पड़ा. इस घटना के चलते अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच सियासी दीवार खड़ी हो गई. यह सिर्फ अजित सिंह और मुलायम सिंह यादव तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उसने चौधरी चरण सिंह का जनाधार रही दो शक्तिशाली किसान जातियों जाट और यादव को भी विभाजित कर दिया. यादव वोट सपा के साथ जुड़ गया तो जाट चौधरी अजित सिंह से साथ जुड़ गया.
वहीं, अब मुलायम-अजित सिंह की विरासत उनके बेटे संभाल रहे हैं और उनके सामने अपने-अपने सियासी वजूद को बचाए रखनी चुनौती है. ऐसे में दोनों ही नेताओं ने मिलकर 2022 के चुनाव में किस्मत आजमाने का फैसला किया है. इसी कड़ी में पहली बार जयंत चौधरी और अखिलेश यादव मेरठ में मिशन-यूपी का आगाज करेंगे. पश्चिमी यूपी में एक बार से चौधरी चरण सिंह के हार्डकोर्ट वोटबैंक माने जाने वाली किसान जातियों को एकजुट करने की कवायद करते नजर आएंगे?