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अखिलेश यादव के सामने क्यों सियासी तौर पर मजबूर नजर आ रहे हैं शिवपाल यादव 

अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के रिश्ते पर जमीं बर्फ पिघलती नहीं दिख रही. शिवपाल खुले तौर पर अखिलेश को सीएम बनाने और सपा के साथ हाथ मिलाने के लिए बेताब हैं, लेकिन अखिलेश यादव न तो उन्हें राजनीतिक तवज्जो दे रहे हैं और न ही मिलने का समय. ऐसे में शिवपाल आखिर क्यों अखिलेश यादव के सामने सियासी तौर पर इतने मजबूर नजर आ रहे हैं? 

शिवपाल यादव और अखिलेश यादव शिवपाल यादव और अखिलेश यादव
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली ,
  • 09 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 2:10 PM IST
  • शिवपाल यादव सपा से गठबंधन करने को बेचैन
  • शिवपाल को अखिलेश नहीं दे रहे सियासी तवज्जो
  • सपा से अलग होकर सफल नहीं रहे शिवपाल यादव

समाजवादी पार्टी में कभी मुलायम सिंह यादव के बाद नंबर दो की हैसियत रखने वाले शिवपाल यादव सियासत की ऐसी राह पर आ खड़े हुए हैं, जहां अखिलेश यादव के साथ उनके रिश्ते पर जमीं बर्फ पिघलती नहीं दिख रही. शिवपाल खुले तौर पर अखिलेश को सीएम बनाने और सपा के साथ हाथ मिलाने के लिए बेताब हैं, लेकिन अखिलेश यादव न तो उन्हें राजनीतिक तवज्जो दे रहे हैं और न ही मिलने का समय. ऐसे में शिवपाल आखिर क्यों अखिलेश यादव के सामने सियासी तौर पर इतने मजबूर नजर आ रहे हैं? 

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शिवपाल का छलका दर्द

आजतक के यूपी पंचायत कार्यक्रम में अखिलेश यादव को लेकर शिवपाल यादव का दर्द छलका है. उन्होंने कहा, 'नेताजी (मुलायम सिंह यादव) हमेशा परिवार को साथ लेकर चले. गांव को और समाजवादी पार्टी को भी एक परिवार की तरह साथ लेकर चले. उन्होंने दुश्मनों को भी गले लगाया और आगे बढ़ते रहे. भतीजा (अखिलेश) भी उसी राह पर चले तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है. हमने तो कई दफे अखिलेश से मिलने का समय मांगा, लेकिन अब तक नहीं मिला है.'

शिवपाल यादव ने 2022 विधानसभा चुनाव के लिए भतीजे अखिलेश यादव को आशीर्वाद देने के सवाल पर कहा कि चाचा शब्द में आत्मीयता है. कौन नहीं चाहेगा आशीर्वाद देना. हम चाहते हैं कि समान विचारधारा वाले सभी धर्मनिरपेक्ष दल साथ आएं और 2022 में विजयी हों. मेरी पहली और सबसे बड़ी प्राथमिकता समाजवादी पार्टी है.' साफ है कि शिवपाल यादव सपा के साथ ही गठबंधन करना चाहते हैं.

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अखिलेश नहीं दे रहे चाचा को भाव

वहीं, शिवपाल को लेकर जब पूछा गया तो अखिलेश यादव ने कहा कि फोन पर बात हो जाएगी, अभी इसीलिए मिलना ठीक नहीं है क्योंकि वो मुख्यमंत्री जी तारीफ करते हैं. हालांकि, अखिलेश ने कहा कि उनका भी एक दल है. उनके लिए जसवंत नगर सीट छोड़ दी गई है. इसके अलावा उनके जो साथी हैं, अगर वो समीकरण व परिस्थियों के लिहाज से ठीक होंगे तो उन पर भी विचार किया जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा कि सरकार बनाए और सम्मान पाएं. 

अखिलेश यादव की बातों से साफ जाहिर होता है कि शिवपाल को वो पहले जैसा न तो सियासी तवज्जो देना चाहते हैं और न ही उनके लिए बहुत ज्यादा सीटें देना चाहते हैं. जसंवतनगर सीट छोड़कर दूसरी किसी सीट देने के मूड में नहीं है. वहीं, जब अखिलेश से पूछा गया कि शिवपाल संगठन और रणनीति तौर पर अहम भूमिका सपा के लिए अदा कर सकते हैं तो उन्होंने कहा कि सपा का संगठन मजबूत है और कार्यकर्ता पूरी मेहनत से काम कर रहे हैं. अखिलेश ने सपा के लिए शिवपाल की उपयोगिता के सवाल को घूमा गए जबकि शिवपाल लगातार सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने और अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने की रट लगाए हुए हैं. 

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चाचा-भतीजे में अदावत

बता दें कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह कुनबे में वर्चस्व की जंग छिड़ गई थी. इसके बाद अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी पर अपना एकछत्र राज कायम कर लिया था. अखिलेश यादव और शिवपाल यादव के बीच गहरी खाई हो गई थी. हालांकि, मुलायम सिंह यादव सहित पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने दोनों नेताओं के बीच सुलह की कई कोशिशें कीं, लेकिन सफलता नहीं मिली. 

मुलायम परिवार की कलह का खामियाजा सपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ा. अखिलेश को सत्ता गवांनी पड़ी और पार्टी भी टूट गई और मुलायम की पार्टी और परिवार दोनों ही बंट गए. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव ने अपने समर्थकों के साथ समाजवादी मोर्चे का गठन किया और फिर कुछ दिनों के बाद उन्होंने अपने मोर्चे को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) में तब्दील कर दिया. लोकसभा चुनाव 2019 में शिवपाल यादव ने भाई रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के खिलाफ फिरोजाबाद सीट से मैदान में उतर गए और चाचा-भतीजे दोनों को चुनावी मात खानी पड़ी.

सपा से अलग होकर फेल रहे शिवपाल

शिवपाल यादव सपा में रहते हुए सियासी तौर पर काफी ताकतवर माने जाते थे और सूबे के तमाम जिलों में उनके समर्थक की बड़ी फौज थी. लेकिन, सपा से अलग होनेके बाद बहुत बड़ा करिश्मा नहीं दिखा सके हैं. फिरोजाबाद संसदीय सीट पर महज एक लाख वोट ही मिल सका और बाकी सीटों पर उनके प्रत्याशी 5 से 20 हजार वोटों में सिमट गए. पिछले साल हुए उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामीण विकास बैंकों के हुए चुनाव में शिवपाल के समर्थकों को बीजेपी के हाथों करारी मात खानी पड़ी. 

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हालांकि, 1991 से अब तक सहकारिता के क्षेत्र में सपा और खासकर 'यादव परिवार' का एकाधिकार रहा है. यहां तक कि मायावती के दौर में भी सहकारी ग्रामीण विकास बैंक पूरी तरीके से यादव परिवार के कंट्रोल में ही रहा, लेकिन बीजेपी ने शिवपाल यादव के तिलिस्म तोड़कर कब्जा जमा लिया. शिवपाल सिंह यादव ग्रामीण विकास बैंक के सभापति रहे हैं, लेकिन अब बीजेपी का कब्जा हो गया है.

2017 के विधानसभा, 2019 के लोकसभा और कॉपरेटिव के चुनाव के बाद शिवपाल के  सामने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की चुनौती है. ऐसे में शिवपाल सपा के साथ हाथ मिलाकर अपनी खोई हुई राजनीतिक ताकत को दोबारा से हासिल करना चाहते हैं, जिसके लिए शिवपाल कई बार सार्वजनिक रूप से सपा के साथ गठबंधन करने और अखिलेश को सीएम बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन अखिलेश यादव उन्हें कोई खास अहमियत अब नहीं देना चाहते हैं. इसीलिए कह दिया है कि सरकार बनाए और सम्मान पाएं.

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