
उत्तर प्रदेश के बंदुलेखंड की सियासत में एक समय डाकू ददुआ उर्फ शिव कुमार पटेल की तूती बोलती थी. ददुआ आतंक का पर्याय बना गया था, उसके बिना बुंदेलखंड में एक पत्ता भी नहीं हीलता था. पाठा के जंगलों के उसकी परछाई तक कभी पुलिस छू नहीं सकी थी. ददुआ के बिना आशीर्वाद के पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक के चुनाव नहीं लड़े जाते थे. ददुआ को 'बुंदेलखंड का वीरप्पन' भी कहा जाता था, लेकिन सियासत में अति महत्वकांक्षा उसे ले डूबी और बसपा सरकार में एसटीएफ ने उसे मार गिराया था.
ददुआ के बेटे-भतीजे को सपा का टिकट
ददुआ को मरे हुए 14 साल गुजर गए हैं, लेकिन चित्रकूट और बांदा इलाके में आज भी उसके नाम पर सियासत खत्म नहीं हो सकी. ददुआ भले ही डकैत रहा हो, लेकिन बुंदेलखंड के कुर्मी समाज में उसकी छवि का असर था. इसी समीकरण को देखते हुए समाजवादी पार्टी ने ददुआ के बेटे और भतीजे दोनों को ही तीसरी बार प्रत्याशी बनाया है. ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल को मानिकपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया है तो भतीजे राम सिंह पटेल को प्रतापगढ़ की पट्टी सीट से उतारा है.
बता दें कि वीर सिंह पटेल और राम सिंह पटेल दोनों ही साल 2012 के चुनाव में सपा के टिकट पर जीतकर विधायक बने थे, लेकिन 2017 के चुनाव में बीजेपी से मात खा गए थे. वीर सिंह 2012 में चित्रकूट सीट से जीत दर्ज की थी, लेकिन सपा ने इस बार उन्हें मानिकपुर से टिकट दिया है जबकि राम सिंह पटेल को उनकी परंपरागत पट्टी सीट से प्रत्याशी बनाया है. पट्टी और मानिकपुर सीट पर पांचवें चरण के 27 फरवरी को मतदान होना है, जिसके लिए 1 फरवरी से नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.
ददुआ ने अपराध की दुनिया में ऐसे रखा कदम
बता दें की वीर सिंह पटेल ने अपने पिता ददुआ के जिंदगी में ही सियासत में कदम रख दिया था और चित्रकूट से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे. 90 के दशक में वीर सिंह पटेल के पिता ददुआ का आतंक था. चित्रकूट के रैपुरा थाना क्षेत्र के देवकली गांव में पैदा हुआ ददुआ के पिता का नाम राम प्यारे पटेल था. ददुआ के पिता को कुछ सामांती लोगों ने गांव में नंगा करके घुमाया था और फिर हत्या कर दी थी.
इसी एक घटना ने शिवकुमार पटेल को जिंदगी भर के लिए ददुआ के रूप में बदल डाला. इस तरह ददुआ साढे चार दशक पहले बागी हुआ था और उसने जरायम की दुनिया में अपना कदम रखा. उसने 1975 में पहली लाश गिराई और फिर अपराध की दुनिया में उसके कदम आगे ही बढ़ते चले गए. 2007 में एनकाउंटर तक ददुआ के ऊपर लूट, डकैती, हत्या, अपहरण जैसे करीब ढाई सौ मामले दर्ज थे.
बुंदेलखंड में ददुआ की सियासी तूती बोलती थी
बुंदेलखंड में कुर्मी, दलित और आदिवासी कार्ड की बदौलत पूरे इलाकों में ददुआ ने अपनी पैठ बना ली थी. गरीबों के लिए ददुआ एक मसीहा बन गया था. शोषित और वंचित समाज में उसकी इमेज रॉबिनहुड की रही. चित्रकूट, बांदा, हमीरपुर, फतेहपुर, प्रतापगढ़, प्रयागराज, मिर्जापुर, कौशांबी की विधानसभा की सीटों पर ददुआ का बोलबाला था. चुनाव में ददुआ बकायदा फरमान जारी करके वोटिंग का आदेश देता था.
ददुआ ने सबसे पहले बसपा को समर्थन किया. ददुआ के बदौलत ही रामसजीवन सिंह सांसद और विधायक बने तो दद्दू प्रसाद जैसे बसपा नेता मंत्री और विधायक रहे. आरके पटेल को भी ददुआ का समर्थन मिला तो श्यामा चरण गुप्ता भी उन्हीं के बदौलत लोकसभा पहुंचे थे. राजनीतिक महत्वकांक्षा से ददुआ ने भी पाला बदल लिया और 2004 में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी को सपोर्ट कर दिया. जिस ददुआ ने पहले बुंदेलखंड के जंगलों में हाथी दौड़ाई थी, उसने अब साइकिल चलवा दी.
मायावती सरकार में ददुआ का एनकाउंटर
ददुआ के बेटे वीर सिंह पटेल और भाई बालकुमार पटेल ने 2003 में सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. वीर सिंह पटेल 2004 में निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष बने. बसपा से अदावत मंहगी पड़ी और 2007 में मायावती सरकार के आने के बाद ददुआ का एनकाउंटर कर दिया गया. बाल कुमार पटेल को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और कुर्मी समुदाय का बसपा से मोहभंग हुआ.
ददुआ जीते जी खुद नेता नहीं बन पाए, लेकिन परिवार का राजनीतिक करियर सेट कर गए. 2009 के लोकसभा चुनाव में बालकुमार पटेल मिर्जापुर से सांसद चुने गए और 2012 के चुनाव में ददुआ के बेटे और भतीजे विधायक बने. वीर सिंह की पत्नी ममता पटेल जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं. वीर सिंह साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय के हाथों हार गए तो राम सिंह बीजेपी के मोती सिंह के हाथ मात खानी पड़ी. सपा ने एक बार फिर से राम सिंह और वीर सिंह को टिकट देकर चुनाव में उतारा है. ऐसे मं देखना है कि इस बार क्या विधानसभा पहुंच पाते हैं कि नहीं?