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UP Election: अयोध्या की राम मंदिर वाली सीट पर 10 साल में सबसे कम मतदान, राजा भैया के इलाके में भी वोटिंग फीकी

यूपी चुनाव के पांचवें चरण में सभी की निगाहें अयोध्या की राम मंदिर वाली सीट पर है तो सुर्खियों में राजा भैया की कुंडा सीट भी है. अयोध्या में सबसे कम वोटिंग राम मंदिर वाली अयोध्या सदर सीट पर हुई और कुंडा में भी पिछले साल से 6 फीसदी कम मतदान रहा. हालांकि, सिराथू सीट पर पिछली बार से ज्यादा वोटिंग रही.

अयोध्या की राममंदिर वाली सीट का वोटिंग पैटर्न अयोध्या की राममंदिर वाली सीट का वोटिंग पैटर्न
कुबूल अहमद/कुमार अभिषेक
  • नई दिल्ली/लखनऊ,
  • 28 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 11:31 AM IST
  • अयोध्या की राममंदिर वाली सीट पर सबसे कम वोटिंग
  • राजा भैया की कुंडा सीट पर 6 फीसदी कम मतदान
  • डिप्टी सीएम की सिराथू सीट पर वोटिंग में दिखा उत्साह

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण में रविवार को 12 जिलों की 61 सीटों पर 57.32 फीसदी मतदान रहा जबकि 2017 के चुनाव में इन्हीं सीटों पर 58.24 फीसदी वोटिंग रही थी. वहीं, अयोध्या की राममंदिर वाली सदर सीट पर 10 साल में सबसे कम वोटिंग इस बार हुई है तो प्रतापगढ़ में राजा भैया के इलाके में भी मतदाताओं में उत्साह नहीं दिखा. कुंडा सीट पर पांच फीसदी कम वोटिंग हुई तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सिराथू सीट पर पांच फीसदी ज्यादा मतदान रहा. ऐसे में देखना होगा कि यह वोटिंग पैटर्न क्या सियासी गुल खिलाता है? 

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अयोध्या सीट पर सबसे कम मतदान
अयोध्या जिले में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से राममंदिर वाली अयोध्या सदर सीट पर सभी की निगाहें हैं. अयोध्या जिले में 60.38 फीसदी वोट पड़े. सीटों की बात करें तो राममंदिर वाली अयोध्या सदर में जिलों की अन्य सीटों की तुलना में सबसे कम वोट पड़े. अयोध्या सीट पर 58.11 फीसदी वोट पड़े हैं. बीकापुर में 62.64 फीसदी, गोसाइगंज में 60.85 फीसदी, मिल्कीपुर में 60.04 फीसदी और रुदौली में 60.23 फीसदी वोट पड़े. इस तरह से रामंदिर वाली सीट पर सबसे कम वोटिंग रही. ऐसे में अब सवाल है कि आखिर जहां पर मंदिर का निर्माण हो रहा है, वहां सबसे कम क्यों मतदान हुआ? 

दस साल में सबसे कम वोटिंग 
अयोध्या सदर सीट पर साल 2012 में  60.70 फीसदी और साल 2017 में 61.5 फीसदी वोट पड़े. ये तब था जब राम मंदिर पर फैसला नहीं आया था. अब कोर्ट के फैसले के अयोध्या में रामलला के मंदिर का निर्माण तेजी से हो रहा है. इसके बाद भी अयोध्या के वोटर में उत्साह नहीं दिखा. पिछले 10 साल की तुलना में सबसे कम वोट पड़े हैं. तीन दशकों में बीजेपी को सिर्फ दो बार अयोध्या में हार का मूंह देखना पड़ा है. 2012 में सपा यहां से पहली जीती थी, लेकिन बीजेपी ने पांच साल छीन लिया था. सपा ने तेज नारायण पांडेय को उतारा तो बीजेपी ने मौजूदा विधायक वेद प्रकाश गुप्ता पर दांव लगाया है.

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राजा भैया के कुंडा में भी नहीं दिखा उत्साह
पांचवें चरण में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की कुंडा विधानसभा सीट सुर्खियों में रही. तीन दशक में पहली बार कुंडा सीट पर राजा भैया को सियासी चुनौतियों से जूझना पड़ा है. प्रतापगढ़ में कुल 7 विधानसभा सीटें है, जहां पर 52.65 फीसदी वोटिंग हुई है. राजा भैया के प्रभाव वाली कुंडा और बाबागंज सीट पर प्रतापगढ़ जिले में सबसे कम वोटिंग हुई है. कुंडा सीट पर 52.12 फीसदी, बाबागंज में 49.56 फीसदी, पट्टी में 56.60 फीसदी, प्रतापगढ़ सदर सीट में 52.25 फीसदी, रामपुर खास में 53.25 फीसदी, रानीगंज सीट पर 54.24 फीसदी और विश्वनाथगंज सीट पर 50.50 फीसदी वोटिंग रही.  

कुंडा सीट पर पिछली बार से कम मतदान
कुंडा विधानसभा सीट पर राजा भैया के खिलाफ सपा ने करीब 20 साल के बाद अपना प्रत्याशी उतारा था. कुंडा सीट पर सपा से राजा भैया के करीबी रहे गुलशन यादव मैदान में उतरे. रविवार को मतदान के दौरान दिनभर सपा बूथ कैप्चरिंग की शिकायत करती रही. गुलशन यादव पर पथराव भी हुआ. उनकी गाड़ी के शीशे तोड़ दिए गए. इसके आरोप राजा भैया पर लगे. कुंडा सीट पर कम वोटिंग की एक बड़ी वजह इस क्षेत्र में फैली अव्यवस्था और बूथ कैप्चरिंग की खबरें अहम वजह बनी. ऐसे में लोग घर से नहीं निकले. ऐसे में 2017 में 58 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसके तुलना में 6 फीसदी कम वोटिंग हुई और साल 2012 के बराबर रही. 

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डिप्टी सीएम केशव की सीट पर वोटिंग पैटर्न
पांचवें चरण में सबसे हाई प्रोफाइल सीट कौशांबी जिले की सिराथू है, जहां से बीजेपी में ओबीसी का बड़ा चेहरा और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य मैदान में थे, जिनके खिलाफ सपा से पल्लवी पटेल थीं. केशव प्रसाद मौर्य की सिराथू सीट पर खूब वोट पड़े, लेकिन चुनौती उतनी ही ज्यादा मिलती रही. कौशांबी जिले में 59.56 फीसदी वोटिंग रही. सिराथू सीट पर 60.05 फीसदी, चायल सीट पर 58.02 फीसदी और मंझनपुर सीट पर 60.53 फीसदी वोटिंग रही. 

दरअसल, सिराथू सीट कौशांबी जिले में आती है. यहां 36 फीसदी अनुसूचित जाति, 50 फीसदी ओबीसी हैं. एससी में पासी और ओबीसी में कुर्मी वोटर सबसे ज्यादा निर्णायक भूमिका में हैं. सिराथू में 1977 से लेकर 2017 तक की बात करें तो सिर्फ 2 बार बीजेपी ने जीत हासिल की है. साल 2012 और 2017 के चनाव में. 2012 में केशव प्रसाद मौर्य और 2017 में शीतला प्रसाद ने जीत पाई थी. जबकि बीएसपी ने चार बार यहां से जीत हासिल की. 

कौशांबी जिले में इंद्रजीत सरोज बड़े दलित नेता हैं, पिछड़ी और अनुसूचित जातियों के बीच उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है. अबकी बार वे बसपा छोड़कर सपा की साइकिल पर सवार होकर मंझनपुर सीट से उतरे हैं. दूसरी तरफ अपना दल की नेता पल्लवी पटेल सपा से सिराथू सीट से मैदान में उतरी हैं. पल्लवी पटेल की कुर्मी वोटर पर पकड़ रखती हैं. ऐसे में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के लिए के लिए सियासी चुनौतिया है. ऐसे में सभी की निगाहें सिराथू सीट पर है और देखना है कि केशव प्रसाद मौर्य दस साल पुराना करिश्मा दोहरा पाते हैं कि नहीं? 

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(अयोध्या से बनबीर, प्रतापगढ़ से सुनील यादव, कौशांबी से अखिलेश गौतम के इनपुट के साथ)


 

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