
बहराइच को ऋषियों की तपस्या के लिए सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा द्वारा बसाए गए एक विशेष नगर के रूप में जाना जाता है. इसलिए इसका एक पौराणिक नाम ब्रह्माइच था जो कालांतर में बहराइच के नाम से जाना जाने लगा. वहीं, एक मान्यता यह भी है कि भगवान राम के पुत्र लव और श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेन्नजीत ने इसे अपनी राजधानी भी बनाया था. इसके अलावा, ऐतिहासिक मान्यता के अनुसार, मध्यकाल में इस क्षेत्र पर भर राजवंश का शासन था इसलिए इसे भारिच भी कहा जाता था. महाराजा सुहेलदेव और चहलारी नरेश बलभद्र सिंह की कर्म भूमि के तौर पर बहराइच अपनी विशिष्ट ऐतिहासिक पहचान समेटे हुए है.
5237 वर्ग किलोमीटर में फैला भारत-नेपाल सीमा पर स्थित उत्तर प्रदेश का बहराइच जिला अपने घने और खूबसूरत जंगलों के साथ तेज गति से बहने वाली घाघरा और सरयू नदी के साथ पहाड़ी गेरुआ व कौडियाला नदियों के लिए मशहूर है. जंगली जानवरों बाघ, तेंदुआ, भालू, चीतल व हाथी बहुल कतर्निया सेंचुरी वाइल्ड लाइफ पर्यटन के दृष्टिकोण से बहराइच आकर्षण का प्रमुख केंद्र है जहां प्रति वर्ष देश-विदेश के सैलानी प्राकृतिक विहंगम नज़ारा देखने के लिए घूमने आते हैं.
6 तहसीलों और 14 विकासखंडों वाला बहराइच जिला उत्तर प्रदेश के देवीपाटन मंडल का हिस्सा है. इसकी दक्षिणी सीमा सूबे की राजधानी लखनऊ तक, पश्चिमी सीमा उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले तक, पूर्वी सीमा श्रावस्ती और गोंडा जिले तक, तो इसका उत्तरी छोर नेपाल के बांके जिले की अंतरराष्ट्रीय सीमा को छूता है. दलित-मुस्लिम बहुल बहराइच जिले के मतदाता संसदीय चुनाव में जहां बहराइच सुरक्षित और आंशिक कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र के सदस्य का चुनाव करते हैं, तो वहीं इस जिले में 7 विधानसभा सीटों के लिए भी अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं.
जिले की विधानसभा सीटों का समीकरण
बहराइच जिले में 2 लोकसभा सीट बहराइच सुरक्षित व आंशिक कैसरगंज शामिल है, और दोनों पर भाजपा के क्रमशः अक्षयवर लाल गोंड और ब्रज भूषण शरण सिंह चुनाव जीतकर संसद में इस क्षेत्र का नेतृत्व करते हैं. वहीं 17वीं विधानसभा के लिए 2017 में हुए चुनाव में जिले की 7 विधानसभा सीटों में 6 सीटों कैसरगंज, पयागपुर, महसी, बहराइच सदर, नानपारा और बलहा में भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब हुए. वहीं, मुस्लिम बहुल एक मात्र मटेरा विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने अपना परचम लहराया था.
विधायकों को लेकर असंतोष
मौजूदा समीकरण में जिले के लोगों में भारतीय जनता पार्टी के आधे से अधिक विधायकों को लेकर असंतोष है. जिले के कैसरगंज विधायक मुकुट बिहारी वर्मा और सदर विधायक अनुपमा जयसवाल को योगी मंत्रिमंडल में मंत्री पद से नवाजा जा चुका है, जिसमें कई सारे आरोप लगने के बाद अनुपमा जायसवाल को मंत्री पद से हाथ धोना पड़ा है और इसका प्रभाव विधायक अनुपमा जयसवाल की राजनीति पर साफ दिखाई भी पड़ रहा है, जबकि कैबिनेट मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा की बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य के दृष्टिगत उनके चुनाव न लड़ने की संभावना जताई जा रही है, तो साथ ही कई विधायकों के टिकट कटने की चर्चाओं का बाजार भी गर्म है.
बीजेपी और सपा के बीच कांटे की टक्कर
विधायकों को लेकर फैले असंतोष के चलते बहराइच में कुछ एक विधायकों को छोड़कर लगभग सभी सीटों पर सत्ताधारी दल के एक साथ कई उम्मीदवार अपनी दावेदारी की कमर भी कस चुके हैं, जिसके चलते टिकट बंटवारे में इन सीटों पर कार्यकर्ताओं में असंतोष और भी अधिक बढ़ने की संभावना है. इन सारे समीकरणों के मद्देनजर जिले की 7 विधानसभाओं में छह विधानसभाओं पर सपा भाजपा के बीच कांटे की टक्कर होने के आसार दिख रहे हैं.
सभी सीटों पर 2017 का जनादेश
1 - कैसरगंज विधानसभा...
2017 के चुनाव में कैसरगंज विधानसभा के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा, बसपा के खालिद खान और सपा के रामतेज यादव के बीच सिमटा था. इस चुनाव में 209536 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसमें भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा को 85212 मत, बसपा के खालिद खान को 57792 वोट और सपा के रामतेज यादव को 54117 मत प्राप्त हुए. जिसमें चुनाव बाद हुई मतगणना में भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा 27420 मतों से चुनाव जीत गए.
2 - पयागपुर विधानसभा....
2017 के चुनाव में पयागपुर विधानसभा के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा के सुभाष त्रिपाठी, सपा के मुकेश श्रीवास्तव और बसपा के मोहम्मद मुशर्रफ के बीच हुआ था. इस चुनाव में पयागपुर क्षेत्र के कुल 206193 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसमें भाजपा के सुभाष त्रिपाठी को 49.59% कुल 102254 मत, सपा के मुकेश श्रीवास्तव को 60713 मत, और बसपा के मोहम्मद मुशर्रफ को 29122 मत प्राप्त हुए, जिसमें चुनाव बाद हुई मतगणना में भाजपा के सुभाष त्रिपाठी ने सपा के मुकेश श्रीवास्तव को 41154 मतों के बड़े अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
3 - महसी विधानसभा
2017 के चुनाव में महसी विधानसभा के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा के सुरेश्वर सिंह, सपा कांग्रेस गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी अली अकबर पप्पू और बसपा के कृष्ण कुमार ओझा के बीच था. इस चुनाव में महसी क्षेत्र के 197137 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसमें चुनाव बाद हुई मतगणना में भाजपा के सुरेश्वर सिंह को 104654, कांग्रेस-सपा गठबंधन प्रत्याशी अली अकबर को 45685 और बसपा के कृष्ण कुमार ओझा को 34685 मत प्राप्त हुए. इस तरह भाजपा के सुरेश्वर सिंह ने कांग्रेस के अली अकबर पप्पू को 58969 मतों के बड़े अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
4 - बहराइच सदर विधानसभा
2017 में बहराइच सदर विधानसभा के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा की अनुपमा जयसवाल, सपा की रुबाब सईदा और बसपा के अजीत सिंह के बीच था. इस चुनाव में बहराइच सदर विधानसभा क्षेत्र के 213375 मतदातों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसमें चुनाव बाद हुई मतगणना में भाजपा की अनुपमा जयसवाल को 87479 वोट, सपा की रुबाब सईदा को 80777, वहीं बसपा के अजीत प्रताप सिंह को 36325 वोट मिले. इस तरह भाजपा प्रत्याशी अनुपमा जयसवाल ने सपा प्रत्याशी रुबाब सईदा को 6702 मतों के अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
5 - मटेरा विधानसभा
2017 के चुनाव में मटेरा विधानसभा के लिए मुख्य मुकाबला सपा प्रत्याशी यासर शाह, बीजेपी के अरुणवीर सिंह और बसपा प्रत्याशी सुल्तान अहमद खां के बीच था, जिसमें मात्र 39.45% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. चुनाव बाद हुई मतगणना में सपा के यासर शाह को सर्वाधिक 79188 मत, भाजपा प्रत्याशी अरुण वीर सिंह को 77593 और वहीं बसपा के सुलताम अहमद को 33482 मत प्राप्त हुए. मतगणना में सपा के यासर शाह ने भाजपा के अरुण वीर सिंह को 1595 मतों के बेहद कम मतों के अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
6 - नानपारा विधानसभा
2017 के चुनाव के लिए नानपारा विधानसभा से मुख्य मुकाबला भाजपा प्रत्याशी माधुरी वर्मा, सपा-कांग्रेस गठबंधन से वारिस अली और बसपा के अब्दुल वाहिद के बीच था. इस चुनाव में कुल 193040 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया. चुनाव बाद हुई मतगणना में भाजपा प्रत्याशी माधुरी वर्मा को 86312 मत, कांग्रेस उम्मीदवार वारिस अली को 67643 मत और वहीं बसपा के अब्दुल वाहिद को 25430 मत प्राप्त हुए. इस तरह भाजपा प्रत्याशी माधुरी वर्मा ने कांग्रेस के वारिस अली को 18669 मतों के अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
7 - बलहा (सु.) विधानसभा
बहराइच जिले की एक मात्र सुरक्षित सीट बलहा के लिए 2017 में हुए चुनाव के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा के अक्षयवर लाल गोंड, बसपा की किरण भारती और सपा के बंशीधर बौद्ध के बीच रहा, जिसमें भाजपा के अक्षयवर लाल गोंड को सर्वाधिक 104066 मत, बसपा की किरण भारती को 57446 वोट और वहीं सपा प्रत्याशी बंशीधर बौद्ध को 29272 मत प्राप्त हुए. इस तरह बीजेपी के अक्षयवर लाल गोंड ने बसपा की किरण भारती को 46620 मतों के बड़े अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
उपचुनाव में भी BJP
वहीं, 2019 में बलहा विधायक अक्षयवर लाल गोंड के बहराइच से सांसद चुन लिए गए. बाद में इस सीट के लिए वर्ष 2019 में हुए उपचुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा की सरोज सोनकर, सपा की किरण भारती और बसपा के रमेश चन्द्र गौतम के बीच था, जिसमें भाजपा की सरोज सोनकर को 89641 मत मिले और सपा की किरण भारती को 43154 मत प्राप्त हुए और इस चुनाव में भी बाजी भाजपा के हाथ लगी. सरोज सोनकर ने सपा की किरण भारती को 46487 मतों के बड़े अंतर से हराकर चुनाव जीत लिया.
जिले की प्रमुख राजनीतिक हस्तियां
पिछड़ेपन का दंश झेल रहे बहराइच जिले के मतदाताओं ने स्थानीय नेताओं के साथ बाहरी नेताओं को भी तरजीह देने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी, लेकिन इस क्षेत्र से चुनाव जीतकर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे राजनेताओं ने यहां की जनता को कई बार निराश किया. वहीं, इस क्षेत्र से जुड़े कई ऐसे भी राजनेता थे जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान इस क्षेत्र के विकास में अपनी अमिट छाप छोड़ी.
1 - ठाकुर हुकुम सिंह...
बहराइच के कैसरगंज निवासी ठाकुर हुकुम सिंह यूपी की सियासत में एक समय बेहद माना जाना चेहरा थे. उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट में बतौर राजस्व मंत्री ठाकुर हुकुम सिंह ने शिक्षा क्षेत्र के लिए बहराइच जिले में किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय की नींव रखी. एक समय किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय बहराइच के दूरदराज के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का एकमात्र केंद्र था. बहराइच जिले की चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए दूरदराज के कई जिलों समेत नेपाल के मरीजों के इलाज का एकमात्र केंद्र रहा जिला चिकित्सालय बहराइच ठाकुर हुकुम सिंह की ही देन माना जाता है. बहराइच जिला चिकित्सालय उस दौरान बने सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में से एक था.
2 - सरदार जोगेन्दर सिंह..
कांग्रेस हुकूमत के दौरान बहराइच की राजनीति में एक समय सरदार जोगिंदर सिंह का नाम बड़े राजनेताओं में शुमार किया जाता था. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से निकटता के कारण सरदार जोगिंदर सिंह को भारत के कई प्रदेशों का राज्यपाल बनाया गया था और वह इंदिरा गांधी के बेहद विश्वसनीय लोगों में शुमार किए जाते थे.
3 - रफी अहमद किदवई...
मूलतः बाराबंकी जिले से ताल्लुक रखने वाले रफी अहमद किदवई ने भी बहराइच की राजनीति में सक्रिय योगदान दिया. उनके इस क्षेत्र में सक्रिय होने के चलते इस क्षेत्र की जनता ने उन्हें भी यहां से बतौर सांसद अपना नेता चुनकर लोकसभा में भेजा था.
4 - केके नैय्यर और शकुंतला नैय्यर
भारत की राजनीति में जब भी अयोध्या के राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवाद की चर्चा की जाएगी तो केरल के अलेप्पी निवासी और फैजाबाद में 1949 के तत्कालीन जिलाधिकारी के के नैय्यर को भूल पाना असंभव होगा. कहा जाता है कि फैज़ाबाद के जिलाधिकारी रहते हुए केके नैय्यर ने ही 22/23 दिसंबर 1949 की रात में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम लला की मूर्ति रखवाने का काम किया था. उनके इस काम से भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बेहद नाराज हुए, लेकिन उनके विरोध के बावजूद भी केके नैय्यर अपने फैसले पर अडिग रहे. PM जवाहरलाल नेहरू ने उस दौरान उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को विवादित स्थल से मूर्ति हटवाने के लिए कहा, जिस पर सीएम ने जिलाधिकारी केके नैय्यर को रामलला की मूर्तियां वहां से हटवाने का आदेश दिया, लेकिन सीएम के आदेश पर उन्होंने जवाब दिया कि मूर्तियां हटवाने से पहले उन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए और आखिरकार अपनी धुन के पक्के जिलाधिकारी नैय्यर ने वहां ऐसे कार्य से माहौल बिगड़ने की बात कहकर सीएम के आदेश को नजरअंदाज कर दिया. जिलाधिकारी केके नैय्यर ने बाद में अपने पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली.
हिंदुत्व की राजनीति के पुरोधा बन गए थे केके नैयर
बाबरी मस्जिद में मूर्ति रखवाने वाले केके नैय्यर उस दौरान की हिंदुत्व राजनीति के पुरोधा बन गए, उनके इस काम के चलते बहराइच की जनता ने उन्हें अपने सिर पर बिठा लिया. इसका परिणाम सन 1962 के चुनाव में दिखाई पड़ा, जब जनसंघ के टिकट पर बहराइच और कैसरगंज लोकसभा से केके नैय्यर और उनकी पत्नी शकुंतला नैय्यर को एक साथ इस क्षेत्र की जनता ने सांसद चुन लिया. उस दौरान चुनाव जीतने के बाद ट्रक पर सवार होकर अपनी पत्नी के साथ जब के के नैय्यर का विजय जुलूस निकाला तो बहराइच की जनता ने उस ट्रक पर जबरदस्त फूलों की वर्षा की. उनकी पत्नी शकुंतला नैय्यर तो कैसरगंज लोकसभा से तीन बार सांसद चुनी गईं.
5 - मौलाना मुजफ्फर हुसैन
बहराइच की जनता ने हिंदुत्व की राजनीति करने वाले फैज़ाबाद के पूर्व जिलाधकारी केके नैय्यर को जहां सांसद चुना तो उसी मामले से जुड़े तत्कालीन बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक मौलाना मुजफ्फर हुसैन को भी इस क्षेत्र का संसद में प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया और मुजफ्फर हुसैन बहराइच लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर देश की संसद पहुंचे.
6 - आरिफ मोहम्मद खान
वर्तमान में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान की राजनीति को भी बहराइच में ही चमकने का अवसर मिला. आरिफ मोहम्मद खान को बहराइच की जनता ने 3 बार लोकसभा में चुनकर भेजा और वह राजीव गांधी और वीपी सिंह सरकार में मंत्री बने. सांसद आरिफ मोहम्मद खान ने शाहबानो प्रकरण पर लोकसभा में बयान देने के बाद राजीव गांधी मन्त्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिया था. आरिफ मोहम्मद खान बीएसपी के टिकट पर भी लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बने. इतना ही नहीं, अपनी सेकुलर छवि के चलते आरिफ मोहम्मद खान ने बहराइच से बीजेपी में शामिल होकर भगवा चोला ओढ़ लिया और उन्हें बतौर बीजेपी प्रत्याशी कैसरगंज लोकसभा क्षेत्र से उन्होंने अपनी किस्मत आजमाने का अवसर मिला, लेकिन वह उसमें कामयाब नही हो सके.
7 - बेनी प्रसाद वर्मा
बहराइच की राजनीति में सक्रिय रहने वाले पूर्व सांसद व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय बेनी प्रसाद वर्मा यूं तो बहराइच लोकसभा से कभी भी सांसद नहीं बने, लेकिन इस जिले के कैसरगंज क्षेत्र से उन्हें 4 बार और गोंडा संसदीय क्षेत्र से एक बार लोकसभा में जाने का अवसर मिला. दिवंगत बेनी प्रसाद वर्मा को कैसरगंज से सांसद रहते हुए देवगौड़ा सरकार में संचार मंत्री और गोंडा से सांसद रहते हुए मनमोहन सिंह सरकार में इस्पात मंत्री बनाया गया. दूरसंचार मंत्री रहते हुए बेनी प्रसाद वर्मा ने बहराइच के सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक संचार सेवाओं को पहुंचाने का काम किया.
8 - रुद्रसेन चौधरी
बहराइच और कैसरगंज के पूर्व सांसद रूद्र सेन चौधरी को भी बहराइच की जनता ने 3 बार लोकसभा में भेजने का काम किया. अपने जमाने के बेहद पढ़े-लिखे और किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले रूद्र सेन चौधरी की संघ में गहरी पकड़ थी जिसके चलते उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय मंत्री भी बनाया गया था. उनकी बीजेपी के तत्कालीन वरिष्ठ नेता अटल बिहारी बाजपेई और लालकृष्ण आडवाणी के साथ बेहद आत्मीयता थी. इन नेताओं की निकटता के कारण ही पूर्व सांसद रुद्रसेन चौधरी की जब मृत्यु हुई तो बीजेपी ने उनके पुत्र पदम सेन चौधरी को बहराइच की सियासत में आगे बढ़ाया और वह भी बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर दो बार बहराइच लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए.
9 - डॉ वक़ार अहमद शाह..
समाजवादी पार्टी सरकार में बेहद सक्रिय रहे डॉ. वकार अहमद शाह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के निकटवर्ती नेताओं में से एक थे. डॉ. वकार अहमद शाह की इस क्षेत्र से लोकप्रियता का अंदाजा उनके 23 वर्षों के लंबे कार्यकाल को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है. डॉक्टर शाह बहराइच सदर विधानसभा क्षेत्र से 1991 से 2017 तक लगातार 5 बार विधायक चुने गए. मुलायम सिंह की सपा सरकार में इनकी पैठ इतनी गहरी थी कि उसने सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और उनके अभिन्न सहयोगी पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा की दोस्ती को भी टूटने पर मजबूर कर दिया. डॉ. वकार अहमद शाह के विरुद्ध कार्यवाही न होने के चलते नाराज होकर समाजवादी पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम सिंह यादव के नाता तोड़ कर समाजवादी क्रांति दल का गठन कर लिया. हालांकि, डॉ. वकार की मौत के बाद 2017 में उनके स्थान पर चुनाव में उतरी उनकी पूर्व सांसद पत्नी रुबाब सईदा को हार का मुंह देखना पड़ा.
10 - मुकुट बिहारी वर्मा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बेहद पुराने कार्यकर्ताओं में से एक मुकुट बिहारी वर्मा बहराइच के कैसरगंज विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं. मौजूदा योगी सरकार में मुकुट बिहारी वर्मा सहकारिता विभाग का कैबिनेट मंत्री के तौर पर कार्यरत हैं. बहराइच की राजनीति में मंत्री मुकुट बिहारी अपनी साफ-सुथरी छवि के लिए जाने जाते हैं.
11- अनुपमा जयसवाल
वर्तमान में बहराइच सदर क्षेत्र से पहली बार चुनी गईं भाजपा विधायक अनुपमा जयसवाल जिले के बेहद पढ़े, लिखे और चर्चित नेताओं में शुमार की जाती हैं. श्रीमती जयसवाल 2017 के चुनाव मे बहराइच सदर से 5 बार के विधायक डॉ. वकार अहमद शाह की पत्नी पूर्व सांसद रुबाब सईदा को हराकर पहली बार विधानसभा पहुंची थीं. इस सीट से 23 वर्षों के बाद बीजेपी का खाता खुलने के चलते अनुपमा जायसवाल को योगी मंत्रिमंडल में बेसिक शिक्षा मंत्री बनाया गया, लेकिन बाद में उनके ऊपर कई सारे आरोप लगने के बाद उन्हें मंत्रिमंडल से हटा भी दिया गया.
12 - यासर शाह
बहराइच जिले की राजनीति में मौजूदा समय में एक मात्र मुस्लिम चेहरे के रूप में पूर्व कैबिनेट मंत्री स्वर्गीय डॉ वकार अहमद शाह के पुत्र यासर शाह सक्रिय हैं. अपने पिता की विरासत संभाल रहे यासर शाह को पहली बार 2012 के चुनाव में बहराइच जिले की मुस्लिम बहुल मटेरा विधानसभा से विधायक बनने का मौका मिला. इसी कार्यकाल में जब उनके पिता पूर्व कैबिनेट मंत्री डॉ वकार अहमद शाह की तबीयत बिगड़ी तो उन्हें अखिलेश सरकार में स्वतंत्र प्रभार का राज्य मंत्री बना दिया गया. वहीं, अखिलेश सरकार के कार्यकाल के अंतिम दिनों में यासर शाह का प्रमोशन कर उन्हें कैबिनेट मंत्री के तौर पर भी शपथ दिला दी गई. 2017 के चुनाव में यासर शाह को दूसरी बार विधायक बनने का अवसर मिला और वह जिले में सपा के एक मात्र विधायक बन कर विधान सभा पहुंचे.
सामाजिक और आर्थिक तानाबाना
एक समय उत्तर प्रदेश के बड़े जनपदों में शुमार किया जाने वाला बहराइच 22 मई 1997 को दो भागों में बंट गया. उस समय की तत्कालीन मायावती सरकार ने बहराइच जिले का उत्तर पूर्वी भाग काटकर श्रावस्ती जिले का निर्माण कर दिया. बावजूद इसके अभी भी बहराइच उत्तर प्रदेश के बड़े जिलों में शुमार किया जाता है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, कुल 3487731 जनसंख्या वाले बहराइच जिले में 1843884 पुरुष और 1643847 महिलाएं हैं, जिनमें 91.86% ग्रामीण और 8.14% शहरी क्षेत्र में निवास करते हैं.
6 तहसीलों में बांटा गया
इस जिले को सरकारी राजस्व के मामलों के निस्तारण के लिए जहां नवसृजित मोतीपुर और पयागपुर के साथ नानपारा, बहराइच सदर, महसी और कैसरगंज समेत कुल 6 तहसीलों में बांटा गया है, जिनमें जिले के 1387 राजस्व गांव शामिल हैं. तो दूसरी ओर, 1045 ग्राम पंचायतों के विकास के लिए विशेश्वरगंज, पयागपुर, हुजूरपुर, चितौरा, कैसरगंज जरवल, फखरपुर, रिसिया,नवाबगंज, बलहा, मिहींपुरवा, शिवपुर, महसी और तेजवापुर समेत कुल 14 विकासखंडों के माध्यम से ग्रामीण विकास योजनाओं को गति दी जा रही है. नगर विकास के लिए जिले में बहराइच व नानपारा नगर पालिका समेत कुल 4 नगर पंचायतों रिसिया, जरवल, कैसरगंज व पयागपुर के जरिये नगरीय योजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है. साक्षरता दर के मामले में बहराइच अभी आधे पायदान तक नही पहुंच सका है. 49.36% साक्षरता दर वाले इस जिले में 58.34% पुरुष व 39.18% महिला ही साक्षर हैं.
रेल नेटवर्क की परेशानी
आंशिक तौर से रेल नेटवर्क से जुड़े बहराइच के लोगों को सुदूरवर्ती क्षेत्रों में जाने के लिए मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश परिवहन की बसों पर निर्भर रहना पड़ता है. रेल लाइन नेटवर्क में भी बहराइच का विस्तार आधा अधूरा है. इस जिले में जहां ब्रॉडगेज रेल लाइन बहराइच से गोंडा तक, तो मीटरगेज रेल लाइन बहराइच से लखीमपुर के मैलानी तक संचालित है, जिस पर महज कुछ ट्रेनों के जरिये इस जिले की आंशिक आबादी लाभ पा रही है. जनपद की परिवहन सेवाओं के सुचारू आवागमन के लिए जहां बाराबंकी से नेपाल की सीमा तक राष्ट्रीय राजमार्ग-927 है, तो इसी को क्रॉस करते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 730 लखीमपुर से बहराइच वाया बलरामपुर होते हुए सिद्धार्थनगर वा महाराजगंज को जोड़ता है.
कृषि पर निर्भरता
कृषि क्षेत्र पर इस जिले की बड़ी आबादी की निर्भरता है और यही यहां के लोगों के प्रमुख आय का साधन है। कृषि उत्पादों में गन्ना, गेहूं चावल व मक्का के साथ दलहनी फसलों में एक समय बड़े पैमाने पर मसूर का उत्पादन होता रहा है. लेकिन अब जिले को यूपी में सर्वाधिक केला उत्पादन के लिए जाना जाता है. 5000 हेक्टेयर में हो रहे केले के उत्पादन के लिए केला बहराइच में ओडीओपी में चयनित किया गया है. जिले में गन्ने की पेराई के लिए 4 चीनी मिलें आईपीएल शुगर मिल जरवल, पारले शुगर मिल परसेंडी, सिंभावली शुगर मिल चिलवरिया, वहीं एक अन्य सरकारी कोऑपरेटिव चीनी मिल नानपारा संचालित है. बहराइच जिले का औद्योगिक विकास ना हो पाने के रोजगार के लिए लोगों का देश के सुदूरवर्ती क्षेत्रों मुंबई, दिल्ली, पंजाब व गुजरात समेत बड़े पैमाने पर खाड़ी देशों में पलायन होता है.