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अयोध्या से बसपा का यूपी मिशन शुरू, सतीश मिश्रा करेंगे रामलला के दर्शन, ब्राह्मण वोटों पर नजर

मायावती ने पूरे राज्य में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करने का फैसला लिया है. इसकी शुरुआत आज अयोध्या से की जा रही है. मायावती ने अपने सबसे खास नेता और ब्राह्मण फेस सतीश चंद्र मिश्रा को इसकी जिम्मेदारी दी है. हालांकि, ऐन मौके पर ब्राह्मण सम्मेलन का नाम बदलकर 'प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी' कर दिया गया है, लेकिन ये सिर्फ नई पैकिंग में पुराने माल जैसा है. 

बसपा प्रमुख मायावती (फोटो-PTI) बसपा प्रमुख मायावती (फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 12:05 PM IST
  • अयोध्या से हो रही है बसपा से राज्यव्यापी सम्मेलन की शुरुआत
  • पहले दिया था ब्राह्मण सम्मेलन नाम, अब बदला

खेल हो या सियासी बाज़ी, जो दांव चल जाता है वो ट्रंप कार्ड कहलाता है और जो फेल हो जाता है वो 'मंथन शाला' में चला जाता है. बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने भी कभी एक कार्ड खेला था, जिसको ब्राह्मण कार्ड माना गया.

यूपी की राजनीति में उनके इस दांव का ऐसा असर हुआ कि मायावती को पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री की गद्दी मिली. अब जबकि एक बार फिर सिर पर विधानसभा चुनाव है और बसपा को विरोधी तीन में-न तेरह में मानकर चल रहे हैं, तो मायावती ने एक बार फिर यही पुराना तीर तरकश से निकाला है. 

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मायावती ने पूरे राज्य में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करने का फैसला लिया है. इसकी शुरुआत आज अयोध्या से की जा रही है. मायावती ने अपने सबसे खास नेता और ब्राह्मण फेस सतीश चंद्र मिश्रा को इसकी जिम्मेदारी दी है. हालांकि, ऐन मौके पर ब्राह्मण सम्मेलन का नाम बदलकर 'प्रबुद्ध वर्ग संवाद सुरक्षा सम्मान विचार गोष्ठी' कर दिया गया है, लेकिन ये सिर्फ नई पैकिंग में पुराने माल जैसा है. 

दलित-ब्राह्मणों के गठजोड़ वाले बसपा के इस मिशन की शुरुआत की जगह भी काफी अहम है. इस मिशन का आगाज रामनगरी अयोध्या से हो रहा है. एक तरफ जहां राम मंदिर निर्माण के क्रेडिट के साथ बीजेपी खड़ी है, वहीं बसपा भी यहीं से अपने सबसे अहम एजेंडे का आगाज कर रही है. 

मंदिर दर्शन-आरती-दुग्धाभिषेक का कार्यक्रम

बसपा के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा अयोध्या में आज हनुमान गढ़ी में दर्शन-पूजन करेंगे. इसके बाद वो रामलला के दर्शन करेंगे. सरयू के तट पर 100 लीटर दूध से दुग्धाभिषेक भी करेंगे. आरती में शामिल होंगे. संतों से आशीर्वाद लेंगे. यानी दलितों की पार्टी के नाम से पहचान रखने वाली बसपा के दूसरे सबसे बड़े नेता आज अयोध्या में पूरे धार्मिक अवतार में नजर आएंगे. 

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ब्राह्मणों के साथ बीजेपी की सरकार में अन्याय!

बसपा की तरफ से इन तमाम क्रियाओं को दरअसल ब्राह्मण समाज को अपनी ओर आकर्षित करने वाला माना जा रहा है. 2017 में बीजेपी की सरकार आने के बाद जब योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उसके बाद जाति को लेकर काफी चर्चा हुई. कई बार नेताओं ने सार्वजनिक मंचों से ये कहने का प्रयास किया कि मौजूदा सरकार में ब्राह्मणों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं हो रहा है. यहां तक कि जब बिकरू कांड के बाद गैंगस्टर विकास दुबे को पुलिस एनकाउंटर में मारा गया तो उस वक्त भी जाति को लेकर खूब चर्चा हुई. 

अयोध्या में सतीश चंद्र मिश्रा

मायावती ने हाल ही में जब इस सम्मेलन की घोषणा की थी तो प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ये कहा था कि ब्राह्मण समाज दुखी है, ब्राह्मण समाज के लोगों ने बड़ी संख्या में बीजेपी के बहकावे में आकर उसे वोट दिया. मायावती ने ये भी कहा था कि ब्राह्मणों के साथ कितना गलत हो रहा है, अब ब्राह्मण बीजेपी को वोट नहीं देंगे, ना ही बीजेपी के बहकावे में आएंगे. 

कुल मिलाकर यूपी में 2022 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देजनर ब्राह्मण वोटरों पर सबकी नजर है. सपा से लेकर कांग्रेस तक, दोनों ही दल ब्राह्मण समाज को लेकर वैक्यूम नजर आ रहा है. लिहाजा, वो उन्हें अपनी तरफ लाने के प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं. अब बसपा भी पूरे तरीके से इस मिशन में उतर गई है. 

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बसपा को ब्राह्मणों का साथ दिला चुका है सत्ता

दरअसल, बसपा की इस पहल के पीछे एक बड़ी वजह भी है. दलितों और दबे-कुचले समाज की आवाज उठाकर सियासत में आने वाली मायावती ने 2007 के विधानसभा चुनाव में एक ऐसा प्रयोग किया जो बेहद सटीक और सफल साबित हुआ.

मायावती ने बड़ी संख्या ब्राह्मण समाज के नेताओं को टिकट दिए. इसका असर ये हुआ कि बसपा के टिकट पर 41 विधायक चुनकर आए. इसकी बदौलत ने बसपा को बंपर जीत मिली और पार्टी ने 206 सीटों पर फतह हासिल की. ये जीत मायावती के लिए अप्रत्याशित थी और रिकॉर्ड भी. मायावती ने पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई. 

तब से अब तक मायावती और उनकी राजनीतिक हैसियत कम होती जा रही है. 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा की सीटें घटकर 80 पर आ गईं. 2017 में और भी बुरा हाल हुआ और बसपा को महज 19 सीटों पर जीत मिली. लोकसभा चुनाव में भी बसपा शून्य तक पहुंच गई.

ऐसे में मायावती ने एक बार फिर ब्राह्मण समाज की तरफ अपना रुख किया है. अब देखना होगा कि पूरे राज्य में होने जा रहे इन सम्मेलनों का ब्राह्मण समाज पर क्या असर होता है और अगले साल फरवरी-मार्च में होने जा रहे चुनावों में बसपा को इससे कितना माइलेज मिलता है. 

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