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Budaun Assembly Seat: हर बार विधायक बदलते हैं यहां के मतदाता, इस बार थमेगा ये सिलसिला?

बदायूं विधानसभा सीट पर साल 1989 और 1991 में बीजेपी के टिकट पर कृष्ण स्वरूप वैश्य जीते थे. इसके बाद से 2017 तक, कोई भी निवर्तमान विधायक लगातार दूसरी दफे विधानसभा नहीं पहुंच सका.

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अंकुर चतुर्वेदी
  • बदायूं,
  • 14 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 7:43 PM IST
  • 1991 के बाद लगातार दो दफे चुनाव नहीं जीता कोई विधायक
  • बीजेपी के महेश चंद्र गुप्ता हैं बदायूं विधानसभा सीट से विधायक

यूपी के बदायूं जिले की छह विधानसभा सीट में से एक है बदायूं विधानसभा सीट. बदायूं यूपी की राजधानी लखनऊ से 288 किलोमीटर और दिल्ली से 269 किलोमीटर दूर है. बदायूं में यातायात के लिए सड़क और रेल मार्ग, दोनों का ही विकल्प है. 11वीं सदी के एक अभिलेख में इस नगर का तत्कालीन नाम वोदामयूता बताया गया है. इस अभिलेख के मुताबिक उस समय बदायूं तब पांचाल देश की राजधानी थी. बदायूं जिला रुहेलखंड क्षेत्र में आता है.

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ताजुलमासिर के लेखक ने बदायूं पर कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण का वर्णन करते हुए इस नगर को हिंद के प्रमुख नगरों में माना है. बदायूं के स्मारकों में जामा मस्जिद भारत की मध्य युगीन इमारतों में शामिल है जिसका निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था. इसका निर्माता इल्तुलमिश था. अलाउद्दीन ने अपने जीवन के अंतिम साल बदायूं में ही बिताए थे. अकबर के दरबार का इतिहास लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी यहां कई साल तक रहे थे. बदायूंनी का मकबरा बदायूं का प्रसिद्ध स्मारक है. इसके अतिरिक्त इमादुल्मुल्क की दरगाह (पिसनहारी का गुम्बद) भी यहां की प्राचीन इमारतों में शामिल है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

बदायूं विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो 1951 में ये सीट बदायूं नॉर्थ विधानसभा सीट नाम से अस्तित्व में आई थी. पहले विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर निहालउद्दीन विधायक बने और 1957 के विधानसभा चुनाव में इस सीट का नाम बदायूं हो गया. बदायूं विधानसभा सीट से निर्दलीय टीका राम विजयी हुए.

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बदायूं विधानसभा सीट से 1962 में कांग्रेस, 1967 में रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) ने जीत दर्ज की. 1969 में भारतीय जनसंघ और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर कृष्ण स्वरूप वैश्य और 1974 में फिर से कांग्रेस जीती. 1980 में कांग्रेस के श्रीकृष्ण गोयल, 1985 में कांग्रेस के प्रमिला भदावर जीतीं और यही इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार की अंतिम जीत थी.

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बदायूं विधानसभा सीट से 1989 और 1991 के चुनाव में बीजेपी के कृष्ण स्वरूप वैश्य चुनाव जीते लेकिन इसके बाद कोई भी विधायक लगातार दूसरी दफे यहां से विधानसभा नहीं पहुंच सका है. 1991 से 2017 तक हर चुनाव में बदायूं की जनता ने अपना विधायक बदला है. 1993 में समाजवादी पार्टी (सपा) के जोगेंद्र सिंह अनेजा, 1996 में बीजेपी ये सीट जीती. साल 2002 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के विमल कृष्ण अग्रवाल जीते जो आगे चलकर सपा में शामिल हो गए. 2007 में बीजेपी के महेश चंद्र गुप्ता और 2012 में सपा के आबिद रजा विधायक निर्वाचित हुए. इस सीट से बीजेपी को छह, कांग्रेस को तीन, सपा को दो दफे जीत मिली.

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2017 का जनादेश

बदायूं विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने महेश चंद्र गुप्ता को टिकट दिया. बीजेपी के महेश चंद्र ने सपा के आबिद रजा को 16466 वोट के अंतर से हरा दिया. बसपा के उम्मीदवार को इस विधानसभा सीट पर तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा.

सामाजिक ताना-बाना

बदायूं विधानसभा सीट के सामाजिक समीकरणों की बात करें तो ये मुस्लिम बाहुल्य सीट है. इस विधानसभा क्षेत्र में जाटव, मौर्य, शाक्य, यादव, ठाकुर, वैश्य, लोधी वोटर भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं. वाल्मीकि, धोबी, खटीक, कायस्थ, साहू, राठौर, कुर्मी, कश्यप और पाली जाति के मतदाता भी अच्छी तादाद में हैं.

विधायक का रिपोर्ट कार्ड

बदायूं विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक महेश चंद्र गुप्ता प्रदेश सरकार में नगर विकास राज्यमंत्री हैं. महेश चंद्र गुप्ता विकास के दावे करते हैं लेकिन उनके विभाग की ओर से भी कोई उल्लेखनीय कार्य इस इलाके में नहीं कराया गया है.

 

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