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UP Exit Poll: अखिलेश यादव को नहीं रास आ रहा गठबंधन, पिछली बार राहुल तो इस बार जयंत के साथ जोड़ी रही फ्लॉप

Exit Poll UP 2022: सपा ने इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए रालोद, सुभासपा, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और प्रगतिशील मोर्चा से गठबंधन किया. सभी पार्टियों को सीटें भी दी गईं. लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, सपा का गठबंधन जनता को पसंद आता हुआ नहीं दिख रहा है.

अखिलेश यादव और जयंत चौधरी अखिलेश यादव और जयंत चौधरी
aajtak.in
  • लखनऊ,
  • 08 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST
  • एग्जिट पोल में सपा की सीटें बढ़ रहीं, लेकिन इतनी नहीं कि सरकार बना ले
  • एग्जिट पोल में यूपी में बीजेपी को बहुमत का अनुमान

Exit Poll UP 2022: यूपी में चुनाव नतीजों से पहले एग्जिट पोल बीजेपी की प्रचंड जीत की ओर इशारा कर रहे हैं. वहीं, समाजवादी पार्टी इस बार भी नंबर दो पर सिमटती नजर आ रही है. यूपी चुनाव की शुरुआत से सपा और बीजेपी के बीच ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा है. यही वजह है कि सपा ने बीजेपी को सत्ता से बाहर करने के लिए रालोद समेत कई छोटी पार्टियों से गठबंधन किया था. यहां तक कि इस बार वे अपने चाचा शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा को भी साथ लाए थे. लेकिन 2017 और 2019 की तरह इस बार भी अखिलेश का दांव उल्टा पड़ता हुआ नजर आ रहा है और बीजेपी की सरकार बनती नजर आ रही है. 

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सपा ने रालोद समेत कई पार्टियों से किया गठबंधन

सपा ने इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए रालोद, सुभासपा, महान दल, अपना दल (कमेरावादी) और प्रगतिशील मोर्चा से गठबंधन किया. सभी पार्टियों को सीटें भी दी गईं. लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक, सपा का गठबंधन जनता को पसंद आता हुआ नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि सपा को इस बार भी नंबर दो की पार्टी के तौर पर संतोष करना पड़ सकता है. 

सपा की सीटें बढ़ रहीं, लेकिन इतनी नहीं कि सरकार बना ले

 इंडिया टुडे-एक्सेस माय इंडिया के सर्वे में बीजेपी को 288-326 सीटें मिलती दिख रही हैं. वहीं, सपा 71-101 पर सिमटती नजर आ रही है. यानी 2017 की तुलना में अखिलेश यादव की सीटों में इजाफा हुआ है. 2017 में सपा को 47 सीटें मिली थीं. वहीं, वोट प्रतिशत भी 22 से 36% होने का अनुमान है. 

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2017 और 2019 में सपा का गठबंधन फॉर्मूला हुआ फेल

यह पहला मौका नहीं है, जब अखिलेश यादव का गठबंधन फॉर्मूला फेल होता नजर आ रहा है. इससे पहले 2017 विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया था. राहुल गांधी और अखिलेश यादव कई मौकों पर साथ प्रचार करने भी पहुंचे थे. रैलियों में भीड़ भी काफी हुई थी. लेकिन दोनों पार्टियों का वोट आपस में कन्वर्ट नहीं हुआ था. यही वजह थी कि सपा 2012 की तुलना में 224 सीटों से सिमट कर 47 पर आ गई थी. वहीं, कांग्रेस की सीटें 28 से कम होकर 7 सीटें रह गई थीं. 

2019 में बसपा के गठबंधन भी नहीं आया था काम

2017 में मिली हार से सबक न लेते हुए सपा ने 2019 लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. अखिलेश यादव और मायावती एक मंच से प्रचार भी करने पहुंचे थे. लेकिन सपा और बसपा का वोट आपस में कन्वर्ट होता नहीं दिखा था. यही वजह थी कि सपा सिर्फ 5, जबकि बसपा 10 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि, 2014 की तुलना में बसपा को गठबंधन का फायदा मिला था. 2014 में बसपा का जहां खाता भी नहीं खुला था, वहीं, उसे 2019 में गठबंधन के बल पर 10 सीटें मिल गई थीं. जबकि सपा को कोई फायदा नहीं मिला था. 

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पार्टियां साथ आ रहीं, लेकिन वोट कन्वर्ट नहीं हो रहा

सपा लगातार तीसरे चुनाव में गठबंधन के साथ उतरी. लेकिन एग्जिट पोल में सपा को इससे कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. हम 2017 और 2019 के नतीजे देखें तो साफ हो जाता है कि पार्टियां मतभेद भुलाकर साथ आ सकती हैं, लेकिन वोट कन्वर्ट नहीं होते. 

2012 में सपा को 29.2% और कांग्रेस को 11.6% वोट मिले थे. दोनों पार्टियां अलग अलग चुनाव लड़ी थीं. लेकिन 2017 में दोनों पार्टियों ने साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा. लेकिन सपा को 22% और कांग्रेस को 6.3% वोट मिला. यानी दोनों पार्टियों का पूरा वोट कन्वर्ट नहीं हुआ.

2014 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा अलग अलग चुनाव लड़ी थीं. इस चुनाव में सपा को 22.3% जबकि बसपा को 19.8% वोट मिला था. वहीं, 2019 में जब दोनों साथ आकर लड़ी तो बसपा को 19.4%, सपा को 18.1% वोट मिला. यानी दोनों पार्टियों का वोट एक साथ गठबंधन को नहीं मिला. 

 

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