
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले नेताओं के पार्टी बदलने का सिलसिला जारी है और उसमें बहुजन समाज पार्टी को लगातार झटके लग रहे हैं. गाजीपुर की मुबारकपुर सीट से विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के पार्टी छोड़ने के बाद बीएसपी को पूर्वांचल में एक और झटका लग सकता है. बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का कुनबा समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकता है. तिवारी के छोटे बेटे और चिल्लूपार विधानसभा सीट से बीएसपी विधायक विनय शंकर तिवारी ने शनिवार को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद विनय शंकर तिवारी का सपा में जाना तय माना जा रहा है.
उत्तर प्रदेश की मौजूदा सियासत में भले ही पंडित हरिशंकर तिवारी का नाम आज ज्यादा सुर्खियां ना बटोर रहा हो, लेकिन इस नाम से समूचे प्रदेश में कई पार्टियों के जातिगत गणित बनते और बिगड़ते रहे हैं. उत्तर प्रदेश में पहली बार जेल में रहते हुए चुनाव जीतकर अपनी धमक का एहसास कराने वाले हरिशंकर तिवारी का नाम सलाखों के पीछे रहने वाले माफियाओं से लेकर बाहुबली और राजनीति के धुरंधर तक बड़ी इज्जत से लेते रहे हैं. गोरखपुर के हाता से निकला फरमान कई चुनाव में जीत हार को तय कर चुका है.
गोरखपुर में वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच वर्चस्व की लड़ाई ने ही उत्तर प्रदेश में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का रंग भरा था. उत्तर प्रदेश की सियासत में यही वो दो नाम भी हैं जिनसे सियासत में बाहुबलियों की एंट्री की शुरुआत हुई. यूपी की चिल्लूपार विधानसभा से लगातार 6 बार के विधायक और कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मुलायम सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हरिशंकर तिवारी उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों के गुरु कहे जाते हैं. लेकिन साल 2007 में बीएसपी के राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को उनकी अपनी चिल्लूपार विधानसभा से हराया भी है.
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हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे कुशल तिवारी दो बार संत कबीर नगर से सांसद रहे हैं तो छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा से बीएसपी विधायक हैं. गणेश शंकर पांडे, हरिशंकर तिवारी के भांजे हैं और बीएसपी सरकार में विधान परिषद के सभापति रहे हैं. चर्चा तो यहां तक है कि विनय तिवारी के साथ तीन अन्य ब्राह्मण चेहरे भी सपा में शामिल हो सकते हैं.
BSP से ज्यादा BJP के लिए मुश्किल क्यों होगी?
उत्तर प्रदेश की मौजूदा बीजेपी सरकार में ब्राह्मणों की नाराजगी बड़ा सियासी मुद्दा रही है. जिस ब्राह्मण को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता था, अब बीजेपी सरकार में वही ब्राह्मण खुद को अकेला अछूता समझ रहा है. मौजूदा चुनाव में ब्राह्मण वोट बैंक की राजनीति का ही नतीजा था कि बीएसपी ने ब्राह्मणों के सम्मेलन की शुरुआत की तो बीजेपी ने प्रबुद्ध वर्ग और प्रतिनिधि सम्मेलन शुरू किए. वहीं समाजवादी पार्टी ने भी ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए भगवान परशुराम का नाम खूब लिया.
ऐसे में जहां बीजेपी 2017 के चुनावी इतिहास को दोहराने में एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, जातिगत सम्मेलन कर रही है, पीएम मोदी से लेकर सीएम योगी तक हर वर्ग के लिए हुए कामों को गिना रहे हैं. तो ऐसे में तिवारी कुनबे का सपा के साथ जाना बीएसपी से ज्यादा बीजेपी को परेशान करेगा. अब तक के चुनाव में नाराज ब्राह्मण वोटरों को मनाने के लिए बीजेपी कोई रणनीति नहीं बना पाई है. वहीं सपा में विनय शंकर तिवारी का आना नाराज ब्राह्मण वोटरों को एक ठिकाना जरूर देगा.