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UP Election: एक ओर पुत्र, दूसरी ओर शिष्य, क्या कहता है मुलायम की कर्मभूमि करहल का जातिगत समीकरण

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने गुरुवार को करहल सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. यह उनका पहला विधानसभा चुनाव होगा. करहल मुलायम सिंह यादव के लिए काफी खास मानी जाती है, क्योंकि यही वो जगह है जहां से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी.

अखिलेश यादव (File Pic) अखिलेश यादव (File Pic)
संतोष शर्मा
  • लखनऊ,
  • 07 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:59 AM IST
  • मुलायम सिंह का करहल से करीबी लगाव रहा है
  • अखिलेश और एसपी सिंह बघेल हैं आमने-सामने

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) में जिन सीटों पर प्रदेश देश और दुनिया की नजर लगी हुई है उन सीटों में सबसे महत्वपूर्ण सीट है मुलायम के गढ़ मैनपुरी की करहल सीट. करहल सीट के दंगल में एक तरफ मुलायम सिंह यादव के बेटे और सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhliesh Yadav) हैं तो दूसरी तरफ हैं मुलायम के शिष्य और कभी सिपहसालार रहे एसपी सिंह बघेल. ऐसे में यहां जानते हैं कि करहल सीट का इतिहास और जातिगत समीकरण क्या है?

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मैनपुरी, भोगांव किसनी और करहल ये 4 विधानसभा सीटें मैनपुरी जिले में आती है. अब अगर मैनपुरी जिले के जातीय समीकरण की बात करें तो करहल में सर्वाधिक 1.35 लाख यादव वोटर, 18000 बघेल, 35000 शाक्य, 12000 लोधी, 18000 मुस्लिम, 18000 ब्राह्मण, 25000 दलित वोटर हैं. साल 2017 के चुनाव में इस सीट पर सपा के सोबरन सिंह यादव ने बीजेपी की रमा शाक्य को हराकर जीत दर्ज की थी. 

मुलायम सिंह यादव ने की थी राजनीति की शुरुआत

यूं तो मुलायम सिंह यादव के परिवार का पुश्तैनी नाता इटावा के सैफई से है, लेकिन करहल उनकी जन्मस्थली, कर्म स्थली या हृदय स्थली से कम भी नहीं है. करहल वह जगह है जहां से मुलायम सिंह यादव की राजनीति की शुरुआत हुई. यहीं के जैन इंटर कॉलेज में मुलायम सिंह यादव शिक्षक थे, इसी करहल के नेता नत्थू सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव के अंदर पहलवान के साथ-साथ राजनीतिक पहलवानी के गुण भी देखें और उनको सबसे पहले करहल से ही चुनाव लड़वाया.

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करहल की जनता ने हमेशा ही लीक से हटकर वोट किया है. देश में जब कांग्रेस पार्टी की लहर थी, तो यहां प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, स्वतंत्र पार्टी, भारतीय क्रांति दल और जनता पार्टी का सिक्का चलता रहा. करहल में कांग्रेस सिर्फ एक बार 1980 में चुनाव जीती और यही हाल बीजेपी का था. बीजेपी भी सिर्फ एक बार साल 2002 में यहां से चुनाव जीती और वह भी सोबरन सिंह यादव ने यहां से बीजेपी का खाता खोला. वहीं, सोबरन सिंह यादव जिन्होंने 2017 में सपा के टिकट से चुनाव जीता और अब 2022 में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए अपनी सीट छोड़ दी है.

अखिलेश के खिलाफ मैदान में हैं एसपी सिंह बघेल

करहल का चुनाव इस बार भी कम रोचक नहीं है, क्योंकि एक तरफ मुलायम सिंह यादव के बेटे और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं तो दूसरी तरफ बीजेपी की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल ताल ठोक रहे हैं. एसपी सिंह बघेल वह शख्स हैं जो कभी मुलायम सिंह यादव के पीएसओ हुआ करते थे, जिनको मुलायम सिंह यादव ने ही राजनीति के गुर सिखाए थे और पहली बार चुनाव लड़वाया और जितवाया भी था. यानी एक तरफ बेटा है तो दूसरी तरफ शिष्य, दोनों की परीक्षा भी इस बार करहल की जनता के सामने होगी.

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सर्वे में भी सुरक्षित पाई गई है करहल सीट

सपा ने अखिलेश यादव की सुरक्षित सीट की पहचान करने के लिए आतंरिक सर्वे भी कराया था. इसमें करहल सीट को यादव बाहुल्य अन्य सीट गोपालपुर व गुन्नौर से अधिक सुरक्षित पाया गया है. ऐसे में पार्टी ने उनके लिए इस सीट को चुना है.

 

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