
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में भी वोटिंग होनी है. मथुरा जिले की सभी सीटों के लिए बीजेपी, बसपा, कांग्रेस और सपा-आरएलडी ने अपने-अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. मथुरा ऐसा जिला है, जहां सपा को अभी तक चुनावी सफलता नहीं मिल सकी है. मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक मथुरा में जीतने के लिए हर कोशिश कर चुके हैं, लेकिन जीत नहीं मिली.
हालांकि, भगवान श्रीकृष्ण को यदुवंशी कुल का माना जाता है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजतक के कार्यक्रम में भगवान श्रीकृष्ण को अपना कुल देवता भी बताया था. अखिलेश ये भी कह रहे हैं कि उनके सपने में भगवान श्रीकृष्ण आ रहे हैं.
सपा का गठन 1992 में हुआ था. तब से तीन बार मुलायम सिंह यादव और एक बार अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहे, लेकिन कृष्ण नगरी मथुरा से सपा की साइकिल पर सवार होकर कोई भी नेता विधानसभा नहीं पहुंच सका.
मथुरा में न सपा का विधायक, न सांसद
साल 1992 से लेकर 2019 तक हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सपा न तो मथुरा में किसी सीट पर विधायक बना और न ही कभी कोई सांसद चुना गया है. इस बार सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरे हैं और सप ने मथुरा के दो सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसके बाद भी उसके सामने बीजेपी, बसपा और कांग्रेस से कड़ी चुनौती है.
कान्हा की नगरी मथुरा में जीत के लिए मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव ने जयंत चौधरी के साथ हाथ मिलाकर सियासी प्रयोग करने की कवायद की है. इसी के तहत 2 सीटों पर सपा चुनाव लड़ रही है जबकि तीन सीटों पर आरएलडी मैदान में है. हालांकि, मांट विधानसभा सीट पर सपा और आरएलडी दोनों ही पार्टियां फ्रेंडली चुनावी मैदान में है. देखना है कि इस बार सपा को क्या सियासी सफलता मिलती है.
मथुरा का सियासी समीकरण सपा के खिलाफ
दरअसल, मथुरा जाट और ब्राह्मण बहुल जिला माना जाता है. यहां पर सपा का कोर वोटबैंक यादव और मुस्लिम बड़ी संख्या में नहीं है. मथुरा जिले में यादव समाज के करीब 17 गांव और 24 मजरा हैं. यहां मतदाताओं की बात करें तो जिले में करीब 70 से 80 हजार यादव वोटर जबकि मथुरा और वृंदावन सीट पर 15 से 20 हजार यादव समाज का वोट है. मथुरा सीट पर तो मुस्लिम वोटर है, लेकिन बाकी दूसरी सीटों पर बहुत बड़ी संख्या में नहीं है.
मथुरा जिले के सियासी समीकरण पक्ष में नहीं होने के चलते समाजवादी पार्टी को यहां सफलता नहीं मिल पाती है. मथुरा के जातीय समीकरण को देखें तो जाट वोटर यहां निर्णायक भूमिक में है, जो सभी पांचों सीटों पर अपना असर रखता है. इसी के चलते मथुरा रालोद का गढ़ माना जाता है. जाट के बाद ब्राह्मण वोटर यहां अहम भूमिका में है तो ठाकुर वोटर भी कम नहीं है. ठाकुर-ब्राह्मण कैंबिनेशन के साथ अन्य ओबीसी जातियों के वोटों के दम पर बीजेपी पिछले चुनाव में पांच में से चार सीटें जीतने में कामयाब रही थी.
बीजेपी ने मथुरा में काटा एक विधायक का टिकट
मथुरा जिले में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें छाता, बलदेव, गोवर्धन, मथुरा सदर और मांट सीट है. पिछले चुनाव में बीजेपी ने पांच से चार सीटों पर जीत दर्ज की थी और एक सीट मांट बसपा को मिली थी. बीजेपी ने इस बार मथुरा जिले में अपने चार में तीन विधायकों को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है जबकि गोवर्धन सीट से जीते विधायक का टिकट काट दिया है.
बीजेपी ने मथुरा से श्रीकांत शर्मा, छाता से चौधरी लक्ष्मी नारायण, बलदेव से पूरन प्रकाश, गोवर्धन से ठाकुर मेघश्याम सिंह और मांट से राजेश चौधरी को टिकट दिया है. गोवर्धन से पिछले चुनाव में बीजेपी के टिकट से जीते कारिंदा सिंह का टिकट काट दिया गया है. इसी प्रकार मांट क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर पिछला चुनाव लड़े एसके शर्मा इस बार मौका नहीं मिल सका है.
सपा-आरएलडी गठबंधन के मथुरा में प्रत्याशी
सपा-आरएलडी गठबंधन के तहत रालोद ने छाता से तेजपाल सिंह, गोवर्धन से प्रीतम सिंह, बलदेव से बबीता देवी और मांट से योगेश नौहवार को अपना प्रत्याशी बनाया है. हालांकि, मांट सीट से सपा ने भी संजय लाठर को प्रत्याशी घोषित कर दिया है और मथुरा सीट पर हाथरस जिले की सादाबाद के पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल को कैंडिडेट बनाया है. वहीं, बसपा और कांग्रेस ने भी अपने-अपने कैंडिडेट घोषित कर दिए हैं. कांग्रेस ने मथुरा सीट पर पूर्व विधायक प्रदीप माथुर को उतारा है.
बता दें कि समाजवादी पार्टी के गठन के बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से पहली बार सपा प्रत्याशी के रूप में जय प्रकाश यादव चुनाव लड़े, जिन्हें बसपा का समर्थन भी हासिल था. इसके बावजूद वो जीत नहीं सके. 2012 और 2017 के चुनाव में मथुरा की मांट विधानसभा सीट से अखिलेश यादव के नजदीकी संजय लाठर भी चुनाव लड़े, लेकिन उनके हाथ भी जीत नहीं लग सकी. हालांकि, संजय लाठर 51 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहे थे. इसीलिए कांग्रेस ने फिर से उन्हें चुनावी मैदान में उतारा है. ऐसे में देखना है कि इस बार मथुरा में सपा का खाता खुलता है कि नहीं?