
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसान आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में चार किसान सहित आठ लोगों की हुई मौत के मामले को योगी सरकार डैमेज कंट्रोल करने में भले ही कामयाब रही हो, लेकिन घटना से हुए सियासी नुकसान की भरपाई बीजेपी के लिए मुश्किल है. लखीमपुर की घटना से सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि उत्तराखंड और पंजाब के किसानों में जबरदस्त गुस्सा दिखा है तो विपक्षी दल के नेता सड़कों पर बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाते नजर आए. ऐसे में चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में यूपी-उत्तराखंड के तराई वाले इलाके साथ-साथ पंजाब में बीजेपी को सियासी तौर पर इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है?
उत्तराखंड के तराई बेल्ट में दिखा गुस्सा
2022 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ बने माहौल को लपकने के लिए विपक्षी दल के नेता उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि पंजाब और उत्तराखंड के तराई इलाके में किसानों के समर्थन में खड़े नजर आए. लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर उत्तराखंड के तराई बेल्ट में किसानों ने जसपुर, काशीपुर, रुद्रपुर, गदरपुर, किच्छा, बाजपुर, सितारगंज और नानकमत्ता में जोरदार प्रदर्शन किया. इस इलाके में खेती-किसानी का लगभग पूरा काम सिखों के पास है और उनका यहां की सियासत में भी खासा प्रभाव है.
लखीमपुर घटना से पंजाब की सियासत गरमाई
वहीं, लखीमपुर खीरी की घटना से पंजाब में भी सियासत गरमा गई है और राज्य में लोगों में रोष है. घटना के विरोध में पंजाब में जगह-जगह प्रदर्शन किए गए. कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ प्रदर्शन कर रहे पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह ने राजभवन के बाहर प्रदर्शन किया. सिद्धू ने यूपी की योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला तो पंजाब के डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा पांच विधायकों के साथ पीड़ितों से मिलने के लिए लखीमपुर के लिए निकल पड़े थे. शिरोमणि अकाली दल का प्रतिनिधिमंडल भी लखीमपुर खीरी जाने का ऐलान किया है.
पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा को यूपी की योगी सरकार ने लखीमपुर खीरी आने की अनुमति नहीं दी थी, जिसके बाद पंजाब कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा के नेतृत्व में सड़क मार्ग से लखीमपुर खीरी के लिए रवाना हुआ था. हालांकि, यूपी पुलिस ने रंधावा और उनके साथी विधायकों को सूबे में एंट्री करते ही सहारनपुर में रोक लिया और उन्हें लखीमपुर खीरी नहीं पहुंचने दिया. पंजाब में पहले से ही किसान कृषि कानूनों को लेकर नाराज था और अब लखीमपुर की घटना ने उस आग को भड़काने का काम किया है.
उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पंजाब और उत्तराखंड में निश्चित रूप से बीजेपी की चिंता बढ़ी है क्योंकि किसान लीखमपुर वाकये से बुरी तरह भड़के हुए हैं. किसान आंदोलन के दौरान लखीमपुर खीरी में जिन चार किसानों को गाड़ी से कुचल कर मार दिया गया है, वो सभी सिख समाज से हैं. घटना का सीधा-सीधा आरोप बीजेपी नेता व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे पर लगा है, जिनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली गई है. ऐसे में यूपी-उत्तराखंड के तारई इलाके के साथ-साथ पंजाब की सियासत पर भी इसका असर पड़ना लाजमी है.
तराई बेल्ट की सियासत पर सिख वोटर का असर
यूपी के जिस लखीमपुर खीरी क्षेत्र में रविवार (3 अक्टूबर) को बवाल हुआ है, वो तराई के क्षेत्र में आता है. यहां बड़ी आबादी सिख समुदाय की रहती है.आजादी के समय भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के सिंध और पश्चिम पंजाब से बड़ी संख्या में सिख समाज के लोगों का पलायन हुआ तो यूपी और उत्तराखंड के विरल आबादी वाले तराई इलाके में आकर बसे.
यूपी में तराई बेल्ट के पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, बदायूं, लखीमपुर खीरी, रामपुर, सीतापुर और बहराइच से गोंडा तक फैला जबकि उत्तराखंड के तराई इलाकों में जसपुर, काशीपुर, रुद्रपुर, किच्छा, गदरपुर, बाजपुर, सितारगंज और नानकमत्ता तक है. यूपी और उत्तराखंड दोनों ही तराई इलाके में सिख समुदाय के लोग पेशे से खेती करने के साथ-साथ यहां सत्ता के खेल को बनाने और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं.
उत्तराखंड में बीजेपी का खेल न गड़बड़ा जाए
उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले की 9 विधानसभा सीटों में सिख और पंजाबी मतदाता अच्छी संख्या में हैं. इसके अलावा देहरादून और हरिद्वार के इलाके में भी सिख समुदाय काफी अहम है. कृषि क़ानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन की जिस तरह कयादत पंजाब के किसानों ने की है और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला है, उससे पंजाब के साथ-साथ उत्तराखंड और यूपी के तराई इलाके के सिख और पंजाबी मतदाता भी बीजेपी के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं. ऐसे में लखीमपुर खीरी की घटना ने उनके गुस्से को और भी बढ़ा दिया है.
कृषि कानूनों को लेकर बीते कुछ समय से जारी किसान आंदोलन की आंच को उत्तराखंड में कम करने के लिए ही बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने खटीमा से आने वाले विधायक पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की कमान सौंपी थी. सिख बहुल आबादी वाले इलाके से सीएम बनाकर इस आबादी को एक संदेश देने की कोशिश की गई थी. धामी को सीएम बनाने को राज्य और केंद्रीय नेतृत्व ने ऐसे प्रोजेक्ट किया कि इस पूरे इलाके के महत्व को समझते हैं साथ ही आंदोलनरत किसानों के गुस्से को कम करने की कोशिश की गई थी, लेकिन अब लखीमपुर खीरी की घटना ने उत्तराखंड के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को सियासी संजीवनी दी है.
उत्तराखंड की बात करें तो यहां हरिद्वार और उधमसिंह नगर के इलाक़ों में किसान आंदोलन का अच्छा असर है. इन दोनों जिलों में किसानों की अच्छी-खासी संख्या है और यह बीजेपी के लिए मुश्किल भरा साबित हो सकता है. देहरादून जिले के मैदानी इलाकों में भी विपक्ष किसानों के बीच बीजेपी के ख़िलाफ माहौल बनाने में जुटा है. हरीश रावत लगातार सूबे में दौरा करके यह बताने में जुटे हैं कि बीजेपी किस तरह से किसान विरोधी है. ऐसे में इससे निपट पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.
यूपी में विपक्ष आक्रमक
दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहा किसानों का आंदोलन बीते 10 महीनों से मोदी सरकार और बीजेपी के लिए सिरदर्द बना हुआ है. लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर किसनों का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया है. यूपी में सपा, बसपा, कांग्रेस और आदमी पार्टी सहित तमाम विपक्षी दलों ने पूरी तरह योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. प्रियंका गांधी अभी भी पुलिस की हिरासत में सीतापुर गेस्ट में है जबकि अखिलेश यादव को लखीमपुर जाने से रोका गया तो लखनऊ में ही सड़क पर धरना पर बैठ गए. शिवपाल यादव घर में नजरबंद किए गए तो दीवार फांदकर लखीमपुर के निकल गए, लेकिन बाद में उन्हें हिरासत में ले लिया गया.
कृषि कानूनों को लेकर किसान अभी तक जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ग़ाजियाबाद से लेकर गौतमबुद्ध नगर, मेरठ से लेकर मुज़फ्फरनगर और मथुरा तक, बाग़पत से अलीगढ़, आगरा और अमरोहा, बिजनौर और सहारनपुर तक प्रभावित करने वाले थे. वो अब सूबे की तराई वाले इलाक में भी अपनी ताकत दिखा सकते हैं.
यूपी में कहां कितने सिख-पंजाबी
सूबे की चुनावी राजनीति में सिख समुदाय के लोगों का कभी वोट बैंक भी नहीं रहा, लेकिन वक्त के साथ कभी कांग्रेस तो कभी सपा के साथ खड़े नजर आए. मोदी के केंद्रीय राजनीति में कदम रखने के बाद 2014 में बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ गए और तराई के बेल्ट में कमल खिलाने में अहम भूमिका रही है. यूपी की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर खासा असर है.
यूपी क पीलीभीत में 30000, बरखेड़ा में 28000, पूरनपुर में 40000, बीसलपुर में 15000 पुवायां में 30000, शाहजहांपुर में 15000, बहेड़ी में 35000, बरेली कैंट में 20000, रामपुर 16000, बिलासपुर में 20000, लखीमपुर खीरी में 23000 सिख समाज के वोटर हैं. इसके अलावा बाकी सीटों पर 5 हजार से 15 हजार के बीच है. ऐसे में पश्चिम यूपी के साथ-साथ तराई में भी बीजेपी के सियासी समीकरण को गड़बड़ा दिया है.